लॉकडाउन-२१
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यह पुस्तक लॉकडाउन 21 हम में से प्रत्येक की यात्रा है, जो कोविड-19 के प्रकोप को जी चुके हैं। यह पुस्तक उन लोगों के लिए एक शुरुआत है, जिनको सत्य जानने की प्यास है |
भाविन शास्त्री
लॉकडाउन -21 के लेखक भवानी शास्त्री जीवन, संगीत और आध्यातमिक खोज की निरंतर यात्रा पर है।वह एक प्रख्यात गीतकार हैं, जो अपने संगीत के माध्यम से प्यार और शांति का सन्देश बांटते हैं। भाविन शास्त्री एक ऐसी शख्स हैं जो मानवीय भावनाओं को समझते है और अपना जीवन एक साक्षी की तरह जीते हैं।
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लॉकडाउन-२१ - भाविन शास्त्री
प्रस्तावना
अब उन्हें पता चलता है कि मौत तब नहीं होती जब आप शारीरिक रूप से अपने प्राण त्याग दें या साँस का चलना रुक जाए। सही अर्थों में मृत्यु वह होती है जो यात्रा के दौरान कई बार आपको झकझोरती है | आपकी चेतना को जगाती है और फिर आपका खुद के हीं नये रूप से मिलना होता है। पहली बार जब उसने अंत को अपने सामने खड़ा देखा था, तब अपने अंतर्मन की व्याकुलता उसे स्पष्ट दिखाई दी थी। अपनी साँसों की हलचल को एकांत में साफ़ सुन पाया था वह। इस मृत्यु के भय को जीते हुए, उसके साथ लड़ाई से शुरू करके स्वीकार भाव तक की पूर्ण समर्पण की यात्रा ही एकमात्र मानव जीवन की उपलब्धि है। जिस तरह से धीरे-धीरे वह अपने जीवन में करुणा और साक्षी भाव का अनुसरण करता है वह जागरूकता की निशानी है। बहरहाल, यात्रा अभी जारी है।
यह पुस्तक लॉकडाउन-२१ हम में से प्रत्येक की यात्रा है, जो कोविड-१९ के प्रकोप को जी चुके हैं। यह पुस्तक उन लोगों के लिए एक शुरुआत है, जिनको सत्य जानने की और उसे समझने की जिज्ञासा है।
यह पुस्तक प्रत्येक व्यक्ति के आंतरिक मंथन और आध्यात्मिक प्रयास के बारे में है, जो संकट में छुपे अवसर को देखने में सक्षम है।
लॉकडाउन-२१- मैं से मसीहा का सफ़र
जब हमारे विचार स्थिर होते हैं, तभी हम अंतर्मन की पुकार को साफ सुन पाते हैं|
मानव की आज की वास्तविक स्थिति को जब उसके भीतर के दबे हुए डर के सामने लाकर खड़ा कर दे तो इंसान असल में जगता है| जब उसे एहसास होता है अपनी निर्बलता का और असहाय होने का फिर वह सहारा ढूंढने का प्रयास करता है और ये सहारा उसका खुद का विश्वास या ऐसा कह ले कि अंधविश्वास होता है| अब चाहे यह विश्वास उसका किसी व्यक्ति पर हो या किसी संस्थान पर या कि उस ईश्वर पर जो की सारी सृष्टि का निर्माता है|वह एक भरोसा जो इंसान को अपनी सोच से मिलता है, वही उसकी ताकत हर कठिन परिस्थिति में बनता है|
हम काफी समय से विश्वास और अंधविश्वास के द्वंद्व में फंसे हुए हैं | पर ये अब भी नहीं जानते कि ज्यादा शक्तिशाली इनमें से क्या है| विश्वास या भरोसा साधारणतया कुछ कारणों पर आधारित होते हैं जैसे कि अनुभव या कोई घटना या कुछ आँकड़े| वहीँ पर अंधविश्वास का कोई प्रमाणित कारण नहीं होता| हम कह सकते हैं कि जैसे बच्चों को माता-पिता भगवान के सामने हाथ जोड़ना सिखाते हैं, फिर धीरे धीरे वह एक आदत बन जाती है अंधविश्वास कुछ ऐसा ही होता है|
हमारा विश्वास हो या अंधविश्वास इसको हम खुद बनाते हैं, तय करते हैं और हमारी खुद की सोच पर आधारित होता है लेकिन फिर ऐसा होता है कि हम ही उस पर निर्भर करने लगते हैं| कोई समस्या हमारे सामने आती है तो हम अपनी सोच से उसका आंकलन कर उसका उपाय ढूंढने लगते हैं|
पर तब क्या, जब आपकी सोच और आपका विश्वास दोनों ही असफल होने लगे आपको उपाय बताने में|
आज हम एक ऐसी भयावह परिस्थिति में आ पहुँचे हैं, जहाँ हमारे भय को किसी विश्वास की मरहम-पट्टी काम नहीं आ रही है| हमें बचने का कोई रास्ता नहीं दीख रहा है| आज जब हर एक आदमी डरा, टूटा हुआ और परेशान है तो एक नई शुरुआत होने का अवसर बन रहा है| अंतर्यात्रा की शुरुआत|
खुद के प्रस्थापित विश्वास और अंधविश्वास से कोई समाधान होता ना दिखने पर अब हमारी खोज की दिशा भीतर की तरफ मुड़ रही है| क्योंकि अब तक जो था वो बाहरी परिस्थितियों पर आधारित था| आज इंसान को शायद ये समझ आया है कि उसकी आस्था की दिशा सही नहीं थी| सालों से जीवंत आस्था को झटकने के लिए बहुत बड़ी चुनौती का सामने आना आवश्यक है| और आज मृत्यु के डर के रूप में वह चुनौती हमारे सामने खड़ीं है|
डर......आखिर क्या है इंसान का सबसे बड़ा डर? अगर हम स्वयं से पूछे तो हर एक इंसान का जवाब एक ही होगा| मृत्यु| उससे बड़ा कोई और डर नहीं| यह बात सच है कि अंत निश्चित है और सबको पता भी है, पर वही अंत जब सामने खड़ा हो जाये तो हम बरदाश्त नहीं कर पाते| स्वीकार तो दूर |
आज पूरा विश्व एक ऐसे ही रोंगटे खड़े करने वाली परिस्थिति में इस डर का सामना कर रहा है| हर तरफ मौत, बीमारी और तकलीफ इतनी भारी तादाद में देखना आसान नहीं है|
कुछ समय पहले तक जो राष्ट्र अपनी बहुमुखी-प्रतिभा और बहुआयामी ताकत का दिखावा करते नहीं थकते थे वह सब आज एक साथ इस विषम-परिस्थिति से ग्रसित हैं| सब निर्बल, सब असहाय, ऐसी समस्या आ खड़ी थी जिसका कोई तोड़ अभी के लिए नहीं है|
***
दिन-२०- वह मसीहा
खोया हुआ, उलझा सा, जब कुछ खुद से बेखबर था मैं,
मिला वह तब, जिसने ढूंढ निकला मुझे
पाया होगा दिशाहीन् मेरा अस्तित्व,
डूबता समुंदर में कभी तो कभी भटकता रेगिस्तान में,
आकाल में बारिश की बूंदे, धमनियों में चल रहे जीवन का संचार,
उठती टिस पर मरहम , और हर उलझन की सुलझन,
आशा से भरी आँखे, उम्मीद भरी मुस्कान
वसीभूत करने वाला उजाला लिए, थामा, जब थमने लगी थी साँसें |
मुझमें समाया, सबसे ओझल वह, मेरे वजूद में ही शामिल वह|
वह मसीहा मेरा, शांत, सरल, चंचल भी, रास्ता भी और मंजिल भी|
******************************
आइसोलेशन में खोज का सफ़र अकेले शुरू कैसे हुआ था, याद नहीं है उसे, अकेले हुआ था शायद, या फिर शुरुआत ही उसके साथ हुई यह भी ध्यान नहीं | आज ज़रूरी है हमारा उससे मिलना जो इस सफ़र में हमेशा उसके साथ रहा| उसकी शक्ति बनकर कभी तो कभी आशा बनकर, अंधकार में कभी, कभी डर में, कभी जवाब तो कभी दिशा बनकर|
लॉकडाउन में हमेशा बात की है उसने एकांत की, शुरू तो हुआ था बोझिल करनेवाले अकेलेपन से, फिर बाद में एकांत बना , जब आनंद आने लगा अपने साथ| पर आज जरूरी है हम उसकी बात करे जो उसके साथ इस पुरे सफ़र में रहा |वह कभी अकेला रहा हीं नहीं, शायद अकेला वह इससे पहले था, सभी होते हैं पर समझ नही पाते जब तक वह प्रत्यक्ष अपने खालीपन को अनुभव नहीं कर लेते|
हाँ, ये मसीहा उसके जीवन में वह तेज़ बन कर आया, जिसमे पहले तो आँखे चौंधिया गयी उसकी| पर धीरे धीरे वह उसके अंतर्मन के अंधकार को मिटा कर उज्जवलित करने लगा|वह तो अनजान था अपने मन के विषाद से, लेकिन फिर उसी अद्भुत शक्ति ने उसको उस हर कोने से अवगत कराया जो कि धीरे-धीरे कष्टदायी हो गये थे, और उनका उसे कोई ज्ञान भी नही था| कोई भी बात तब खुद-ब-खुद कम महसूस होने लगती है जब हम उसको जानने लगते हैं, तो इसलिए उन्हें जानना ज़रूरी है|
वह घबराया