Memory, Mind & Body - (मेमोरी, माइंड एंड बॉडी)
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-एम.एन. बैंकटचलैया
भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश (भारत सरकार)
बिस्वरूप की तकनीक को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। -
डॉ. किरण बेदी, आई, पी.एस.
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Memory, Mind & Body - (मेमोरी, माइंड एंड बॉडी) - Biswaroop Roy Chowdhury
मैटर
विचार गोष्ठी (सेमिनार)
उपस्थित सज्जनो! नमस्कार
किसी विषय को कैसे समझें, उससे संबंधित प्रश्नों को कैसे याद करें, अपनी मेमोरी को कैसे तेज बनाएं; देखी, सुनी और अनुभव की गई जानकारी को तुरंत याद करने के लिए क्या करें? या फिर क्या करें कि देखी, सुनी गई बात दिमाग में इस तरह बैठ जाए कि जब आवश्यकता हो, उसे झट से याद किया जा सके? ये सवाल हम सबके दिमाग में उठते हैं।
आपने देखा होगा कि अक्सर हम सुनी या पढ़ी गई बात भूल जाते हैं। प्राय: ऐसा होता है कि किसी वस्तु को देखने के लिए हम एक कमरे से दूसरे कमरे में जाते हैं लेकिन वहां जाकर भूल जाते हैं कि हम क्या देखने आए हैं। ऐसी स्थिति में हम फिर पहले वाले कमरे में जाते हैं और वहां पहुंचते ही हमें वह वस्तु याद आ जाती है। आखिर ऐसा क्यों होता है?
अभी पांच मिनट पहले ही मैंने चाबियां कहीं रखी थीं लेकिन अब वे मिल नहीं रही हैं। मेरा पेन कहां है? मेरी एक पुस्तक अति आवश्यक है लेकिन अब वह मिल नहीं रही है। ध्यान नहीं आ रहा कि मैंने उसे कहां रख दिया।
इस तरह की बातें हमारे साथ प्रतिदिन ही होती हैं। इससे बचने के लिए हम अपना आवश्यक सामान बहुत सोच-समझ कर सुरक्षित स्थान पर रखते हैं, फिर भी समय पर उसे ढूंढ़ने के लिए हमें पूरे कमरे और कभी-कभी पूरे घर में चक्कर लगाने पड़ते हैं।
क्या आपने कभी गंभीरता से सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? यह समस्या अगर पढ़ाई में हो तो और अधिक परेशानी खड़ी करती है। एक छात्र को अपना अधिकांश समय पढ़ाई में लगाना होता है। उसे छह घंटे स्कूल में, तीन या चार घंटे ट्यूशन में और दो-चार घंटे घर पर पढ़ने के लिए देने होते हैं। जब परीक्षाएं सिर पर होती हैं तो परीक्षा केंद्र में घुसने के कुछ मिनट पहले तक छात्र महत्त्वपूर्ण सूत्रों और तथ्यों को रटने में लगा रहता है, लेकिन इसके बावजूद जब वह परीक्षा भवन में पेपर खोलता है तो प्रश्नपत्र में पूछे गए प्रश्नों में, जिसे उसने सुबह ही दोहराया था और जो उसे अच्छी तरह याद भी था, इस वक्त वह भूल चुका होता है या फिर उसके बीच-बीच के कुछ वाक्य ही उसे याद रहते हैं। काफी प्रयास करने के बाद भी जब उसे पूरा उत्तर याद नहीं आता तो वह हारकर कॉपी जमा कर देता है और अपने घर चल देता है। मजेदार बात यह है कि अब उसे वह पूरा उत्तर अपने आप याद आ रहा है। ऐसे में उसे बड़ा पछतावा होता है कि आखिर परीक्षा भवन में यह उत्तर क्यों याद नहीं आया। ऐसा आमतौर पर हम सबके साथ होता है लेकिन इससे एक बात तो साफ़ है कि यदि परीक्षा के बाद किसी समय भी आपको पूरा उत्तर याद आ जाता है तो आप उसे भूले नहीं हैं, बल्कि वह आपके दिमाग के ही किसी कोने में मौजूद था। वैज्ञानिकों का मानना है कि आदमी का दिमाग किसी बात को नहीं भूलता। हमने जो कुछ भी देखा, सुना और पढ़ा है वह हमेशा के लिए हमारे दिमाग में रिकॉर्ड हो जाता है।
‘‘समस्या किसी बात को याद करने या याद रखने की नहीं होती बल्कि अधिकतर याद की हुई बात के समय पर याद आ जाने की होती है।’’
इस संबंध में और चर्चा करने से पहले मैं आपको कुछ दिखाना चाहूंगा। नीचे विज्ञान से संबंधित कुछ सूत्र और संख्याएं दी हुईं हैं, इन्हें याद करने का प्रयास कीजिए। सोचिए कि इन्हें याद करने में आपको कितना समय लगेगा।
41 82 69 71 23 50 14 00 25 55 87 41 23
39 85 11 47 59 88 52 26 25 84 13 00
01 02 05 03 69 94 10 74 50 39 80 04 78
20 04 78 90
H2 So4; r², Sin²Ø + Cos² = 1, HC1, NaC1, H² = P² + B² etc.
मैं जानता हूं आप में से अधिकतर यही कहेंगे कि ऐसी सूची याद कर पाना बहुत कठिन है। मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत भी हूं, परंतु क्या आपको अंदाजा है कि इस सूची को याद करने में मुझे कितना समय लगेगा। मेमोरी तकनीक की सहायता से मैं इसे पढ़ते-पढ़ते ही याद कर सकता हूं। जी हां! मेरे लिए इन्हें बस एक बार पढ़ लेना ही काफी है, क्योंकि इन्हें याद करने के लिए मैंने क्रिसमस का सामान्य-सा नियम अपनाया है।
क्रिसमस (CRISMAS)
C- कंसंट्रेशन अर्थात् एकाग्रता‒ कोई बात जो आपने याद की है और अब आप उसे दिमाग में लाना चाहते हैं तो आपको एकाग्रता की आवश्यकता होगी। यह तो आप भी मानेंगे कि किसी पाठ या उत्तर को पढ़ने, समझने और उसे याद करने के लिए एकाग्रता की आवश्यकता होती है। अब प्रश्न यह है कि एकाग्रता आए कैसे। एकाग्रता वास्तव में रुचि (इंट्रेस्ट) से आती है। अब हमें यह पता होना चाहिए कि किसी बात में रुचि कैसे उत्पन्न की जाए। उत्तर है एसोसिएशन या संबंध स्थापित करके।
A- एसोसिएशन अर्थात् संबंध स्थापित करना‒ कल्पना कीजिए कि आप किसी काम से कहीं जा रहे हैं। रास्ते में आप देखते हैं कि सड़क के एक ओर कोई दुर्घटना हो गई है और भीड़ एकत्रित हो गई है। ऐसी स्थिति में आप भीड़ में शामिल होने की अपेक्षा शायद अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाना पसंद करें, परंतु तभी आपको कोई बताता है कि दुर्घटना आपके पड़ोसी के साथ हुई है। क्या अब भी आप आगे बढ़ जाएंगे? शायद नहीं, क्योंकि अब आपकी उसमें रुचि उत्पन्न हो गई है। ज़रा सोचिए! यह रुचि कब उत्पन्न हुई? जब दुर्घटना का संबंध आपके पड़ोसी से जुड़ा, तभी न। संबंध जोड़ने का महत्त्व इसी एसोसिएशन से साफ़ हो जाता है।
R- रिडिक्यूलस थिंकिंग अर्थात् बेतुकी सोच‒ बिल्कुल अलग, अद्भुत या अजीबो-गरीब बातें हमारे दिमाग में ज़्यादा लंबे समय तक रहती हैं। किसी साधारण-सी जानकारी को असाधारण या अनोखा बनाकर हम उसे लंबे समय तक याद रख सकते हैं।
I- इमैज़िनेशन अर्थात् कल्पना‒ आपने अक्सर देखा होगा कि किसी व्यक्ति को देखकर आप उसे चेहरे से तो पहचान लेते हैं पर उसका नाम भूल जाते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि आपको उस व्यक्ति का नाम तो याद रहता हैं पर उसका चेहरा आपको पहचाना-सा नहीं लगता। क्या यह बेतुकी स्थिति नहीं है? खैर! इससे पता चलता है कि आपकी देखने की क्षमता कितनी सुदृढ़ है। आप जिन बातों या वस्तुओं को अच्छी तरह देखते हैं, उन्हें देर तक याद रखते हैं। आप अपने दिमाग की आदत जानते हैं। इसलिए जब आप कक्षा में पढ़ रहे होते हैं तो कहीं कुछ भूल न जाएं, इस डर से लेक्चर सुनते समय उसके नोट्स बनाते जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप तीन घंटे तक फिल्म देखते रहते हैं तो उसके नोट्स बनाने की आवश्यकता आपको क्यों नहीं पड़ती। ऐसा क्यों होता है? क्योंकि आपका दिमाग जानता है कि आप फिल्म में दिखाई जा रही घटनाओं को क्रम से सही-सही याद रखने में सक्षम हैं, जबकि कक्षा में सुने गए लेक्चर के बारे में यह सच नहीं होता, क्योंकि यहां सब कुछ सुना-सुनाया है अर्थात् ईअर मेमोरी पर आधारित है, इसलिए आपको इसके नोट्स बनाने पड़ते हैं।
आप में से कुछ कहेंगे कि वे फिल्म के नोट्स इसलिए नहीं बनाते क्योंकि वह उनके लिए इतनी महत्त्वपूर्ण नहीं होती, जितना कि कक्षा का लेक्चर, लेकिन मैं आपसे गारंटी से कह सकता हूं कि यदि आपको किसी क्विज़ में बैठा दिया जाए, जिसमें आपसे उस फिल्म के बारे में प्रश्न किए जाएं तो आप पाएंगे कि उस फिल्म में दिखाई गई छोटी-से-छोटी बात भी आपको अच्छी तरह से याद है।
S- स्लीप अर्थात् नींद‒ ध्यान रखिए एकाग्रता का संबंध सीधे नींद से होता है। सोते समय भी आपका दिमाग जागता रहता है। यहां तक कि जब आप सोते हैं तो आपका दिमाग और अधिक ऑक्सीजन लेता है, क्योंकि जिस समय आप सोते हैं आपका दिमाग दिन-भर में ग्रहण की गई बातों और जानकारियों को रिकॉर्ड करता रहता है, इसलिए आपको कभी अपने सोने के समय के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं और जिनके सोने और जागने का समय तय नहीं है, वे एकाग्रता की समस्या से जूझते रहते हैं। यहां स्वाभाविक रूप से आप जानना चाहेंगे कि आपको कितने घंटे सोना चाहिए। अब चूंकि सबकी दिनचर्या, काम और खाना खाने की आदत अलग-अलग है, इसलिए सोने की अवधि भी अलग-अलग ही है। हालांकि यदि आप नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दे देते हैं तो इसका पता लगा लेंगे।
जब आप सुबह जल्दी सोकर उठते हैं, तो दिन-भर स्वयं को थका हुआ तो महसूस नहीं करते।
इसी तरह जब आप देर से सोकर उठते हैं तो भी क्या ऐसा ही महसूस करते हैं।
क्या आप मानते हैं कि यह लगभग ऐसा ही है, जैसे आपके दिमाग में कोई इंडीकेटर लगा हो जो आपको कम या अधिक सोने के बारे में लगातार याद दिलाता रहता हो।
अब दूसरा प्रश्न उठता है कि क्या दोपहर को सोना चाहिए? ध्यान रहे, दोपहर की एक नींद सुबह की दो नींद के बराबर होती है, लेकिन ऐसा केवल तब होता है जब आप इसे अपनी आदत बना लें। वे लोग जो दोपहर की नींद रोज नहीं लेते बल्कि दस-पंद्रह दिन में एक बार सोते हैं, उन्हें ऐसी नींद से थकान ही मिलती है। इसका कारण यह है इससे आप अपने सोने का चक्र तोड़ रहे होते हैं। परीक्षाओं के समय जो छात्र अपने सोने का समय घटा देते हैं। उन्हें इसी तरह की समस्या से दो-चार होना पड़ता है।
एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमारा दिमाग पहली और अंतिम बात को बड़े प्रभावशाली ढंग से याद रखता है, इसलिए हमेशा यह प्रयास कीजिए कि दिन-भर में पढ़ी गई बातें सोने के एक घंटा पहले ही दोहराएं और सुबह उठने के बाद एक घंटे तक कोई नया टॉपिक ही पढ़ें।
S-स्लीप लर्निंग अर्थात् पढ़ाई के मध्य अंतराल‒ इसका महत्त्व विशेषकर उन छात्रों के लिए है जो लंबे समय तक पढ़ना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में आपने अनुभव किया होगा कि पढ़ते समय पहले एक घंटे तक अधिक तरोताजगी रहती है। बाद में जैसे-जैसे समय बढ़ता जाता है, आपकी एनर्जी और उत्साह में कमी आने लगती है। अंत में तो ऐसा लगने लगता है कि पढ़ी गई बात दिमाग के अंदर जाने की अपेक्षा बाहर जा रही है। ऐसी स्थिति में अंतराल या गैप देकर पढ़ने से लाभ होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पचास मिनट बाद भूलने का चक्र आरंभ होता है, इसलिए यदि आप कई-कई घंटे तक पढ़ना चाहते हैं तो हर पचास मिनट बाद स्वयं को दस मिनट का अंतराल दें। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इस दस मिनट में आप पढ़ाई या इससे जुड़ी कोई बात न सोचें। इन दस मिनट के खाली समय में आप चाय-नाश्ता कर सकते हैं, संगीत सुन सकते हैं या फिर आस-पास टहल सकते हैं। इससे आपके अंदर नई स्फूर्ति उत्पन्न होगी जो आगे पढ़ने के लिए आपको तैयार करेगी।
M- नीमॉनिक अर्थात् सहायक मेमोरी‒ इसके अंतर्गत कुछ तकनीकें आती हैं, जिनसे मेमोरी को बढ़ाया जा सकता है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वालों को यह जान लेना आवश्यक है कि उनके सिर्फ़ विषय ज्ञान की ही परीक्षा नहीं ली जाती, बल्कि उस विषय से जुड़े तथ्य उन्हें कितनी जल्दी याद आ जाते हैं, इस बात का भी टेस्ट होता है। ऐसी परीक्षाओं में सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितने कम समय में कितने अधिक-से-अधिक तथ्यों को प्रस्तुत कर सकते हैं।
इस प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में अधिकतर छात्रों के साथ यह समस्या रहती है कि जवाब आते हुए भी वे अधिकांश प्रश्नों के उत्तर निर्धारित समय में नहीं दे पाते। आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि इस तरह की परीक्षाओं में टॉपर भी 60 प्रतिशत अंक ही ला पाते हैं। दो या तीन वर्षों की मेहनत के बाद आप विषय से संबंधित ढेर सारी जानकारी प्राप्त तो कर लेते हैं, लेकिन इसके साथ-साथ परीक्षा में ये जानकारी समय पर और तेजी से याद आ जाए, क्या आप इसके लिए कोई मेमोरी तकनीक सीखते हैं? क्या आप ऐसी कोई तकनीक जानते हैं या आपने कभी ऐसी तकनीक का सहारा लिया है? यदि आप ऐसी किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं या उसकी तैयारी करने की योजना बना रहे हैं तो इस तरह की तकनीक की आपको अति आवश्यकता होगी और इसमें नीमॉनिक आपको काफ़ी मदद करेगा।
क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि परीक्षा के समय किसी प्रश्न का उत्तर जब बार-बार ध्यान करने के बाद भी याद नहीं आता तो बेचैनी-सी महसूस होती है। इसी तरह बहुत प्रयास करने के बावजूद दिमाग में फालतू के विचार आने बंद नहीं होते, तब भी काफ़ी परेशानी महसूस होती है परंतु इससे एक बात साफ़ हो जाती है कि हमारे दिमाग की एक स्पष्ट कार्यशैली है, जो सूचनाओं को याद करने या भूलने में हमारी सहायता करती है।
इसे निम्नलिखित उदाहरण से समझिए‒ क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आपको कोई जाना-पहचाना व्यक्ति मिला, लेकिन उसका नाम आपको याद नहीं आ रहा। आप बार-बार स्वयं से पूछते हैं कि आखिर आप उस व्यक्ति से कहां मिले थे? उसके बाद लगातार यह प्रक्रिया चलती रहती है। तब भी आपको याद नहीं आता तो आप यह मान बैठते हैं कि आप यह सूचना भूल चुके हैं और इसके साथ ही आप उसके बारे में सोचना बंद कर देते हैं परंतु अचानक एक दिन आपको याद आता है कि अरे हां! उसे मैंने शिमला में देखा था। यदि ऐसा है तो यह बात निश्चित है कि यह सूचना आपके दिमाग में कहीं-न-कहीं थी। अब आप पूछ सकते हैं कि आखिर जब यह जानकारी दिमाग में थी तो उस समय क्यों नहीं याद आई। दरअसल हमारे दिमाग को किसी भी जानकारी को याद करने के लिए एक निश्चित संकेत की आवश्यकता होती है, और जब तक यह संकेत नहीं मिलता तब तक हमारा दिमाग उसकी प्रतीक्षा करता रहता है। संकेत मिलते ही संबंधित जानकारी स्वत: सामने आ जाती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारा दिमाग भी बिल्कुल कंप्यूटर की तरह कार्य करता है। कंप्यूटर की तरह ही इसमें कोई सूचना सुरक्षित रखने और उसे समाप्त करने के लिए अलग-अलग कमांड्स की आवश्यकता होती है।
यदि आप दिमाग के काम करने के ढंग के बारे में समझ सकें तो आपका कार्य अधिक सरल और सुविधाजनक हो सकता है।
निम्नलिखित उदाहरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए‒
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आपने रात बारह बजे तक पढ़ाई की और उसके बाद घड़ी में पांच बजे का अलार्म लगाकर इस उम्मीद से सो गए कि अलार्म बजते ही उठ जाऊंगा और पढ़ाई शुरू कर दूंगा, लेकिन सुबह जब अलार्म बजने लगा तो आपने यह सोचकर उसे बंद कर दिया कि थोड़ी देर और सो लूं, पढ़ाई तो बाद में भी की जा सकती है। ऐसा क्यों होता है? रात को आपके विचार कुछ और थे, सुबह वे विचार बदल गए। इसका अर्थ यह है कि आपके दिमाग में ऐसा कुछ है जो आपके विचारों को संचालित और नियंत्रित करता है। अब आप जानना चाहेंगे कि आखिर यह चीज़ क्या है। यह सब आप नीमॉनिक के माध्यम से समझ सकते हैं। इसकी सहायता से आप दिमाग की कार्यशैली के बारे में जान सकेंगे, जो आपके संपूर्ण जीवन को नियंत्रित करने में सहायक होगी।
हमेशा याद रखिए कि आपके प्रसन्न होने, दुखी होने, गुस्सा होने, रोने, हंसने, चिंता करने, निराश होने आदि में आपकी मेमोरी का विशेष योगदान रहता है। मेमोरी पॉवर के बिना ऐसी किसी भावना का अस्तित्व नहीं हो सकता। यदि इस समय आप दुखी या चिंतित हैं तो इसका अर्थ है कि आपका दिमाग किसी ऐसे विचार पर काम कर रहा है, जिसका संबंध चिंता या दु:ख से रहा है। अब यदि आप उस विचार को दिमाग से निकाल दें तो आपकी चिंता या दु:ख दूर हो सकता है। इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि आपके विचार, आपकी भावनाएं और आपके कार्य सभी आपकी मेमोरी द्वारा संचालित और नियंत्रित होते हैं। अब, क्या आप नहीं सोचेंगे कि आप विश्व की नीमॉनिक तकनीकों का प्रयोग कर अपने जीवन को बेहतर बनाएं? स्कूल-कॉलेजों में इस प्रकार की तकनीक की जानकारी नहीं दी जाती है। इस कारण आप स्थिति पर नियंत्रण नहीं रख पाते, बल्कि स्थितियां आपको नियंत्रित करती रहती हैं।
नीमॉनिक तकनीकों के संबंध में और अधिक चर्चा करने से पहले मैं चाहूंगा कि आप स्वयं का एक टेस्ट लें यानी कुछ परीक्षण करें। यह छोटा-सा टेस्ट बहुत महत्त्वपूर्ण है।
उस दृश्य के बारे में सोचिये या याद कीजिए, जब आप अपने परिवार के साथ डायनिंग टेबल पर लंच के लिए बैठे हैं और अचानक आपकी मम्मी को ध्यान आता है कि टेबल पर नमक नहीं है। वे आपको बताती हैं कि नमक किचन में नीचे वाली अलमारी में रखा है, जाकर ले आओ। आप यह कहकर मना करते हैं कि आपको नहीं मिलेगा; आप नहीं जाएंगे। आपकी मम्मी एक बार फिर आपसे नमक लाने के लिए कहती हैं, लेकिन आप उठने के मूड में नहीं हैं। आप फिर वही बहाना बनाते हैं। इस बार आपकी मम्मी कुछ गुस्से में आकर आपसे कहती हैं। आप मन मारकर उठ तो जाते हैं, लेकिन नीचे की अलमारी समेत कई जगह ढूंढ़ने के बावजूद नमक आपको नहीं मिलता। तब आप मम्मी को बुलाते हैं। मजबूर होकर आपकी मम्मी को किचन में आना पड़ता है और पहली बार में ही नीचे की अलमारी में नमक मिल जाता है। तब आप सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि जिस जगह इतना ढूंढ़ने पर भी नमक नहीं