Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

संयम की जीत
संयम की जीत
संयम की जीत
Ebook141 pages1 hour

संयम की जीत

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

'' जैसे ही मैं ने आप का चेहरा अपनी ओर किया. मैं चौंक गई. वे आप नहीं थे. यह देख कर मैं डर गई. मैं ने उसे दूर हटाने की कोशिश की. मगर, वह मुझ से जम कर चिपट गया था. वह केवल आईलवयू आईलवयू कहे जा रहा था. उस की सांसे बहुत गरम थी.

'' मैं ने बहुत कोशिश की. उस से छूटने की. मगर, उस की पकड़ से छूट नहीं सकी. उसे वास्ता दिया कि मैं एक ब्याहता स्त्री हूं. मैं अपने पति के लिए बैठी थी. मगर, वह नहीं माना. मैं बेबस सी उस की बांहों में छटपटाती रही.

'' उस ने अपने मन की मरजी पूरी कर ली. तब उस ने मुझे छोड़ा. मगर, तब वह मुझे छोड़ कर रोने लगा. उसे इस बात का दुख था कि उस ने अपने मनोवेग में वह सब कुछ कर लिया जो उसे नहीं करना चाहिए था.

'' वह मेरे पैर में लिपट गया. मुझे माफ कर दो भाभी. वह कहे जा रहा था. मगर, मेरे मुंह से निकला— तुम्हें माफ करने से मेरी इज्जत वापस नहीं आ जाएगी. मैं अपने पति के लिए तैयार बैठी थी उन्हें सब कुछ देना चाहती थी. तुम ने मुझे लूट लिया. अब मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नही रही.

''यह सुन कर वह रोने लगा. बोला— भाभीजी! मैं नालयक हूं. मुझे जीने का अधिकार नहीं है. मैं ने दुष्कर्म किया है. मुझे सजा मिलना चाहिए. तुम ऐसा करों कि पुलिस को बुला लो. मुझे उस के सुपुर्द कर दो. कह कर वह फुटफुट कर रोने लगा.

Languageहिन्दी
Release dateSep 15, 2020
ISBN9781393062622
संयम की जीत

Related to संयम की जीत

Related ebooks

Reviews for संयम की जीत

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    संयम की जीत - Omprakash Kshatriya

    अनुक्रमणिका

    आप को समर्पित

    जिन्हें लगता है कि यह उन की कहानी है. उन के दिल के बहुत करीब है. उन सभी भावुक हृदय, दुखी या प्रसन्न युवाओं के लिए ही यह लिखी गई हैं. इस से किसी का मनोरंजन, आनंद या खुशी की अनुभूति होती है तो मेरी मेहनत सार्थक होगी. इस कारण यह आप सभी को समर्पित हैं.

    तमाम युवा दंपति के लिए सादर समर्पित हैं.

    प्राक्कथन—

    ––––––––

    कभीकभी जीवन में अप्रत्याशित घट जाता हैं. हमें जिस की कल्पना नहीं होती है वह घटना घट जाती हैं. कभीकभी बिना घटना के भी व्यक्ति घटना की कल्पना अपने मन में कर लेता हैं.

    यह घटना दूसरों पर आरोपित कर लेता हैं. उसे लगता हैं कि ऐसा हुआ होगा. या ऐसा हो रहा है. फिर जैसी उस की कल्पना होती है उसे सच मान लेता हैं. तब जिस पर घटना आरोपित की गई हैं उस का जीवन चरित्र और चीजें उसे वैसी ही दिखने लगती हैं. यही कारण है कि वह उसे जीने लगता हैं.

    सपने बंद आंखों से वही देखे जाते हैं जैसा कि हम चाहते हैं. ये चाहते ही हैं जो सपनों में साकार होती हैं. जिन की वजह से अधिकांश व्यक्ति के प्रवाह बाहर निकल जाते हैं. जिसे सपने ज्यादा आते हैं वह ज्यादा सुखी और चिंतामुक्त नजर आता हैं.

    यही नजरिया हरेक व्यक्ति के मस्तिष्क में होता हैं. जिस का चश्मा उस ने पहना होता हैं चीजें वैसी ही दिखाई देती हैं. हरे चश्मे से सूखी सफेद घास भी हरी दिखाई देती हैं.

    रमन के साथ ऐसा ही हुआ. उस मालुम था कि वह बाप नहीं बन सकता हैं. जब उसे मालुम हुआ कि उस की पत्नी सावित्री उस के बच्चे की मां बनने वाली है तब उस के मनमस्तिष्क पर हथौड़े रूपी मानसिक विचार का प्रहार हो गया. वह उसे सह नहीं पाया. उस के जीवन के भूचाल रूपी इस तूफान ने उसे झकझौर कर रख दिया. तब उस ने सावित्री को न चाहते हुए भी घर से निकाल दिया.

    मगर, उस के पिता की बातें या यूं कहे कि उन की बातों का मान रखने के लिए वह ससुराल चला गया. रास्ते भर वह वापस लौटने का प्रयास करता रहा. मगर, रास्तें में क्या हुआ?

    वह मजबूर हो कर ससुराल चला गया. वहां उस ने देखा कि उसी पाप के बीज का जन्म हो चुका था जिस की वजह से उस ने सावित्री को छोड़ा था. आखिर क्या मजबूरी थी कि सावित्री उस पाप के बीज से छुटकारा नहीं पा सकी. उस ने क्याक्या दुख देखे. वाकई वह पाप का बीज था या कुछ ओर?

    ऐसे अनगिनत सवालों से रूबरू होता रमन आगे बढ़ता जाता. आखिर किन पात्रों ने उस के साथ क्या किया था?  सावित्री ने जानबूझ कर वह पाप किया था?  उस पाप को करने वाला कौन था?  उस का नाम जान कर रमन पर क्या बीती?  ऐसे बहुत से अनगिनत सवाल है. जिन का उत्तर रचनाकार ने खोजने की कोशिश की है.

    सावित्री के संयम से इन पर जीत हुई?  या सावित्री ने जो किया था उसे सजा मिली. रमन मुन्ने को अपना पाया या नहीं? जैसे बहुत से अनसुलझे सवाल है जिन का जवाब आप को इस रचना में मिलेगा.

    रचनाकार को विश्वास है कि यह रचना पढ़ने पर पाठकों को मनोरंजन होगा. उसे आनंद आएगा. उस के मनोभावों का रेचन होगा. उस के मन में उमड़नेघुमड़ने वाले सवालों को दिशा मिलेगी. तब उसे जीवन के वास्तविक और अनसुलझे रहस्यों से दोचार होने का मौका मिलेगा.

    आशा है इस रचना को पढ़ कर आप आनंद की अनुभूति करेंगे. इस की अच्छाईबुराई से रचनाकार को पत्र लिख कर अवगत करवाएंगे. क्यों कि आप के पत्र से रचनाकार को पता चल पाएगा कि वह इस रचना को लिखने में कहां तक सफल हुआ है. आशा है आप पत्र जरूर लिखेंगे

    इसी आशा के साथ

    आप का साथी

    ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'

    पोस्ट आफिस के पास, रतनगढ़

    जिलानीमच मप्र .458226

    9424079675

    opkshatriya@gmail.com

    बदचलन सावित्री

    पिता ने करवट बदली. एक लंबी सांस ली. फिर कुर्सी पर बैठे हुए अनिल से बोले,'' तुम दोनों तो बहुत अच्छे दोस्त हो?''

    ''जी अंकल!'' अनिल ने चाय की चुस्की लेते हुए पूछा, '' आप कहना क्या चाहते हैं?''

    कब से उन्हें अपनी ओर निहारते हुए अनिल देख रहा था. उन की मूक आंखें बहुत कुछ कहना चाहती थी. मगर, वे रमन के डर से बोल नहीं पा रहे थे. जब अनिल ने रमन को काम में व्यस्त देखा तो पूछा लिया.

    '' अपने दोस्त को समझाओं. कब तक अपनी बीवी को नहीं लाएगा?'' किसनलाल ने मुरझाई हुई आंखों से कहा, '' मैं कब तक जिंदा रहने वाला हूं. चाहता हूं कि रमन और उस की बीवी का घर बस जाए.''

    अनिल के लिए यह अप्रत्याशित था. उसे यह पता नहीं था रमन अपनी बीवी को क्यों नहीं लाना चाहता है? रमन ने उसे इस बारे में कभी नहीं बताया था. शायद, वह घर की बात उसे बताना नहीं चाहता था. या ओर कोई विशेष कारण रहा होगा. इस कारण से अनिल को जिज्ञासा हुई. क्या कारण हो सकता है?

    '' क्या हुआ था अंकलजी. दोनों के बीच झगड़ा हुआ था क्या ?'' उस ने कनखियों से कमरे की ओर देखा. रमन इस वक्त कंप्युटर पर काम कर रहा था. उस का ध्यान उसी में लगा हुआ था. जब से कोरोना वायरस का प्रकोप चला है उस का अधिकांश काम कंप्युटर से ही हो रहा था. इसलिए वह अपने काम में व्यस्त था.

    किसनलाल ने कमरे की ओर निगाहें कर के धीरे से कहा,'' इन के बीच कुछ मामला हुआ था?  क्या था?  मुझे पता नहीं है. मगर, इस की बीवी इस से नाराज हो कर चली गई थी.''

    '' आप को नहीं बताया रमन ने?''

    '' नहीं!''

    '' क्यों?'' अनिल ने पूछा.

    ''पता नहीं,'' किसनलाल बोले.

    '' मैं पूछ कर देखूंगा.'' अनिल ने कहा तो किसनलाल बोले, ''नहीं बेटा ! तू मत पूछना. अनिल को अच्छा नहीं लगेगा. हो सकता है कि वह मुझ पर नाराज हो जाए. आप ने घर की बातें बाहर क्यों बताई है ? मुझ से सीधे पूछ सकते थे.''

    किसनलाल अपने मन में दबी बातें बोल गए. उन के मन में अजीब सी उलझन थी. वे चाहते थे कि कोई उन की बातें सुनें. ताकि उन के मन का गुब्बार निकल जाए. इसलिए नहीं चाहते हुए भी उन्हों ने अनिल से अपने मन की बातें कह दी.

    अनिल को लगा कि वाकई रमन के पिता ठीक बात कह रहे हैं. उस ने कभी घर की बातें बाहर नहीं कीं. वह उस का पक्का दोस्त था. मगर,जब से रमन की शादी हुई है तब से वह मन की बातें नहीं कहता था. इसलिए उस ने किसनलालजी से कहा, ''शायद, कुछ बात है जिस की वजह से अनिल भाभीजी को नहीं ला रहा हैं. मगर, क्या बात है?  आप को पता होगी?  या फिर उस ने कभी इशारें में आप से कुछ कहा हो?''  अनिल ने धीरे से

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1