Meri Mohabbat Ko Salam
By Rani Verma
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न रुकेगी ये मोहब्बत कभी।
एक वक्त ऐसा आएगा,
हमारी दास्तान सुनाएगा हर कोई।
ख्वाहिश है खुदा से बस इतनी,
हमारी इस पाक मोहब्बत का,
मजाक न बनाए हर कोई।
...इसी संकलन
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Meri Mohabbat Ko Salam - Rani Verma
शायरी
कविताएं
1. हमारी मोहब्बत की दास्तान सुनाएगा हर कोई
न झुकेगी ये मोहब्बत कभी,
न रुकेगी ये मोहब्बत कभी।
एक वक्त ऐसा आएगा,
हमारी मोहब्बत की दास्तान सुनाएगा हर कोई।
न खौफ़ है हमें मर जाने का,
न गम है हमें जिंदगी न जी पाने का,
अफसोस रहेगा तो हमें बस इस बात का,
हमारा पूरा वक्त एक दूसरे के साथ न बिता पाने का।
ख्वाहिश है खुदा से बस इतनी,
हमें मौत आ जाने के बाद की
न इल्जाम लगाए हमारी मोहब्बत पर कोई,
न दाग लगाए हमारी मोहब्बत पर कोई।
हमारी इस पाक मोहब्बत का,
मजाक न बनाए हर कोई।
2. हक न दिया हमने इस जमाने को
जफा का हक न दिया हमने इस जमाने को,
फिर भी ये जमाना हम पर जफा कर बैठा।
मोहब्बत को गुनाह मानकर,
हम पर जुल्म कर बैठा।
नजदीक आए जब वो हमारी मोहब्बत में हमारे,
तो हर इंसा हमारा कातिल बन बैठा।
न समझा कोई इंसा हमारी मोहब्बत को,
तो हर कदम पे वो खुदा हमारे साथ बैठा।
जफर मिली मेरी मोहब्बत को, जब मुझे पा जाने में,
तो मेरा खुदा उस जश्न में, मुझे एक तोहफा दे बैठा।
3. इंसा को न बदल पाओगे
मजबूर न होता है इंसा,
वक्त उसे मजबूर बना देता है।
न रोता है इंसा कभी,
उसे वक्त रुला देता है।
मैं क्या बताऊँ वक्त के फेर को,
वक्त तो हर पल बदलता रहता है।
तुम लाख कोशिश कर लो इंसा,
पर इंसा को न बदल पाओगे,
क्योंकि एक वक्त ही तो ऐसा है,
जो इंसा को बदल देता है।
4. जिंदा रहने दो मोहब्बत के परवानों को
मैं कहती हूँ इस जहाँ में इन्सानों को,
जिंदा रहने दो मोहब्बत के परवानों को।
दगा न दे कोई मोहब्बत अपनी मोहब्बत को,
तो साथ रहने दो उन्हें और जी जाने दो।
जख्म खाता है हर आशिक मोहब्बत में,
न जी पाता है हर आशिक मोहब्बत में।
जलील करता है हर कोई मोहब्बत में डूबे उस परवाने को,
पिंजरे में बंद करता है हर कोई मोहब्बत में डूबे उस परवाने को।
उड़ा दो उन्हें कहीं आसमानों में,
खोलकर बंद पिंजरे को।
जहां उन्हें कोई न कहे,
मोहब्बत में जुदा हो जाने को।
5. खुदा महबूब से मिला दे हमें
दुआ करते हैं, खुदा महबूब से मिला दे हमें,
तो महफिलें रक्स सजा दें हम।
उस महफिल में शरीक हुए हर इंसा को,
हमारी मोहब्बत का अफसाना सुना दें हम।
वक्त बेवक्त न हो जाए,
सूरज से चाँद न हो जाए।
हमारे जेहन में उनकी गहरी मोहब्बत,
गमों में न डूब जाए।
उनके इंतजार में, उनकी यादों की शाम में,
हमारा जनाजा न निकल जाए।
उनकी जिंदगी का नूर,
फिर अंधेरे में तब्दील न हो जाए।
6. ये जालिम जमाना
बन्दिशें तो लगाएगा हर इंसा जब मोहब्बत करोगे,
साथ महबूब या महबूबा का जब तुम दोगे।
बहा दोगे कतरा-कतरा और जब तुम मोहब्बत निभा दोगे,
ये जालिम जमाना जुल्म ढाएगा तुम पर कितना,
मौत को गले लगाएगा तुम्हारे कितना।
वो