बिल्कुल गाय जैसे: चरखा पांडे की कहानियाँ: झिलमिलाती गलियाँ, #2
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छात्र जीवन में, माँ-बाप से दूर होने का ग़म तो हर किसी को होता है। लेकिन जब उसी ग़म से भरे जीवन में कुछ कहानियाँ ऐसी मिल जाएँ जो दुखी जीवन में सुख के तड़के का काम करें तो काली बदरी भी अपना रुख़ मोड़ती हुई दिखती है।
S. H. Wkrishind
एस एच व्कृषिंद ने दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित विषय में बीएससी पूरा किया। तीन चीजें उन्हें सबसे ज्यादा पसंद हैं - पहली लेखन, दूसरी प्रकृति और तीसरी संगीत। स्नातक होने के साथ ही लेखक बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए साहित्य की दुनिया में उनका पहला कदम एक काल्पनिक साहित्यिक रचना के माध्यम से रहा।
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बिल्कुल गाय जैसे - S. H. Wkrishind
पहले संस्करण के लिए
इस किताब में चित्रित सभी घटनाएँ पहले प्रकाशित हुई सभी संस्करणों का शुद्ध रूप हैं। पहले प्रकाशित सभी संस्करण, जो अलग-अलग शीर्षकों से और लेखक के मूल नाम से प्रकाशित हुई थीं, इस संस्करण के प्रारूप थे। पहले प्रकाशित हुई किसी भी संस्करण या इस संस्करण का लेखक के या फिर किसी अन्य के व्यक्तिगत जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं हैं। और अगर किसी के व्यक्तिगत जीवन की कहानी इस रचना में चित्रित किसी भी घटना से मिलती-जुलती है तो वह सिर्फ़ एक संयोग है।
पिछले सभी प्रारूपों में कुछ ऐसी घटनाएँ भी थीं जो लेखक ने किसी और के सुझाव से लिखा था, जो पढ़ने पर पाठक के मन में कुछ अलग ही असर डालती थीं। पिछले सभी प्रारूप सिर्फ़ परीक्षण के उद्देश्य से प्रकाशित किए गए थे।
- एस. एच. व्कृषिंद
समर्पित
मैं अपने माता-पिता को धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने मुझे मेरे इस काम के लिए प्रोत्साहित किया।
मैं उन सभी लोगों का भी धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने जाने-अनजाने में आलोचनाओं के ज़रिए आगे बढ़ने में मेरी मदद की।
- एस. एच. व्कृषिंद
इज़हार
"बंद पलकों के नीचे सुन्न हुई आँखें थी, मन तो कहीं बेहोश हुआ फैला था।
पलकें खुलीं और कपाट खुले तो सिर्फ़ एक ग़ज़ल थी।।"
पार्क में तरह-तरह के लोगों का आना जाना लगा रहा। मैं (लेखक) पार्क के अंदर एक पेड़ के नीचे, कंक्रीट से बने बेंच के एक छोर पर बैठ कर उसी बेंच के दूसरे छोर पर बैठे तर्पण की आत्मकथा को सुनता रहा...
एक तरफ मेरे (तर्पण) और प्रिया के बीच की कहानी शादी पर आकर रुकी हुई थी तो वहीं दूसरी तरफ अर्पिता के मन में भी अंकुर के लिए प्यार के बीज पल रहे थे। कोचिंग से वापस आने के बाद, अपना काम पूरा करने के बाद, हमारा वो पुराना धन्धा चलता रहा। ...अरे वही, छत पर बैठ कर गप्पे-सप्पे लड़ाना। समय बीतता गया आखिरकार वो समय आ ही गया जब अर्पिता ने अपने दिल की बात अंकुर से बोल डाला। वो भी एक ऐसे दिन जिस दिन एक प्रेमी अथवा प्रेमिका अपने दिल की बात अपने पसंदीदा बन्दे या बंदी के सामने व्यक्त करता है।
दरअसल, यह दिन वैलेंटाइन डे
था। हम लोग आपस में वैलेंटाइन डे के बारे में बातें कर रहे थे। जैसे की- यह दिन क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे क्या राज है?
इसके बारे में बात करना अर्पिता ने ही शुरू किया था। यह मान लो की वह पूरी तैयारी के साथ आई हुई थी। उसने इस दिन का पूरा इतिहास रट रखा था। पहले तो उसने अंकुर से इस दिन के दूसरे और नामों के बारे में प्रश्न किया। लेकिन अंकुर ने इसके बारे में नहीं में उत्तर दिया। उसने कहा की उसे इस दिन के बारे में कुछ नहीं पता है। जैसे ही अंकुर ने इस दिन के बारे में कहा की उसे इसके बारे में कुछ नहीं पता है। अर्पिता ने उसे डफर
... ऐसा कह कर बुलाया। यार! कुछ तो जानकारी रखा करो। अंकुर ने कहा- क्या करूँगा, मैं? ऐसे दिन के बारे में जानकर, जिस दिन कुछ लोगों को तो अपना प्यार मिल जाता है तो वहीं उसी दिन कुछ लोगों का दिल भी टूट जाता है। वैसे भी कौन सा मुझे इस पर क्विज-कम्पटीशन करना है। ऐसे फालतू दिन के बारे में जानकारी रखने का मुझे कोई शौक नहीं है। तब अर्पिता ने कहा- अच्छा ठीक है, मत जानो। चलो कोई नहीं, अगर तुम्हें नहीं पता तो मैं ही बता देती हूँ।
दरअसल, इस दिन को रोमांटिक हॉलिडे, संत वैलेंटाइन डे अथवा फीस्ट ऑफ़ संत वैलेंटाइन जैसे कई नामों से जाना जाता है। यह दिन प्यार और लगाव के लिए मनाया जाता है। यद्यपि, इस दिन को पब्लिक हॉलिडे घोषित नहीं किया गया है। फिर भी इस दिन को लगभग सभी देशों में मनाया जाता है और मनाया भी क्यों न जाए? प्यार करने वाले तो हर जगह होते हैं। इस दिन के बारे में ढेर सारी कहानियाँ प्रसिद्ध हैं। कई प्रारंभिक ईसाई शहीदों का नाम वैलेंटाइन था। १४ फरवरी को मनाया जाने वाला वैलेंटाइन डे, रोम के वैलेंटाइन और टर्नी के सम्मान में मनाया जाता है। इसी तरह से इस ‘डे’ को कई लोगों की जिंदगी से जोड़ा जाता है।
वह प्यार भरी इस ज्ञानवर्धक कहानी को सुना ही रही थी की तभी अंकुर ने उसे बीच में टोका- तुम ये सब हमें क्यों सुना रही हो?
अत्सर ने कहा-