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मसीह‚ “मैं हूं ”
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About this ebook

मसीह, "मैं हूं" एक किताब है कि सात प्रतीकात्मक "मैं हूं" मसीह के बयानों की पड़ताल है, जो अपने चरित्र और मानव जाति के लिए अपने रिश्ते के पहलुओं को प्रकट । यह तीन वर्गों में लिखा है, जिनमें से पहले उन सात बयानों में से प्रत्येक बताते है और कैसे वे हम से संबंधित हैं । दूसरा खंड जॉन 6 पर एक फुलर कमेंट्री प्रदान करता है, मसीह का दावा "जीवन की रोटी," एक सुसंगत व्याख्या है कि जरूरत की गई है बनाए रखने । तीसरा खंड तब जॉन 15 पर एक गहरी टिप्पणी प्रदान करता है, मसीह की खुद को दाख की बारी के "बेल" के रूप में पेश करता है, जॉन द्वारा दर्ज शब्दों और वाक्यांशों का एक ताज़ा अध्ययन के साथ।

इस पुस्तक सात "मैं हूं" मसीह के बयानों पर निबंध की एक सबसे उत्कृष्ट श्रृंखला प्रस्तुत करता है। इसे मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया था, तब किताब का हिंदी में अनुवाद किया गया। लेखक विनम्रतापूर्वक अपने भोग के लिए पूछता है के रूप में आप इन निबंध पढ़ा--आप के लिए कोई कीमत पर की पेशकश की और अपने पढ़ने के आनंद और लाभ के लिए इरादों का सबसे अच्छा के साथ ।

डॉ केनेथ पी Lenz चर्च मंत्रालयों में पच्चीस से अधिक वर्षों के लिए सेवा की है और एक पादरी के रूप में । उन्होंने दो कॉलेजों और एक बाइबल संस्थान के धर्म और बाइबिल-धर्मशास्त्र संकायों पर भी सेवा की है। पाठ्यक्रम केन सिखाया गया है "नए नियम का सर्वेक्षण," "ईसाई सोचा का इतिहास," और "नए नियम पत्र," दूसरों के बीच में शामिल हैं । उन्होंने छात्रों को उनके लेखन कौशल में मदद करने के लिए "गहन लेखन" पाठ्यक्रम भी सिखाया है । उनकी अर्जित पीएचडी में पूर्वी रूढ़िवादी चर्च के इतिहास और पूजा में जोर शामिल था, और वह हर्मेन्यूटिक्स (बाइबिल व्याख्या) के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करता है। केन और उसकी प्यार पत्नी, हेलेन, तीन वयस्क बच्चे हैं: कैरी, इवान, और Bryce (जिसे इस किताब को समर्पित है) ।
इस लेखक द्वारा अन्य पुस्तकों में (अंग्रेजी में) शामिल हैं:
जल बपतिस्मा और आत्मा बपतिस्मा: जैसा कि शास्त्रों में पढ़ाया जाता है
स्वीकारोक्ति और भोज: जैसा कि शास्त्रों में पढ़ाया जाता है
रूढ़िवादी चर्च: एक इंजील का परिप्रेक्ष्य
भगवान के बेटे "परित्यक्त," उसका बलिदान "पूरा!"

Languageहिन्दी
PublisherKen Lenz
Release dateDec 20, 2020
ISBN9781005564001
मसीह‚ “मैं हूं ”
Author

Ken Lenz

Dr. Kenneth P. Lenz has served for over twenty-five years in church ministries and as a chaplain. He has also served on the religion faculty and Bible/theology faculty of several colleges. Courses Ken has taught include “Understandings of Religion,” “History of Christian Thought,” "Survey of the New Testament," and “New Testament Epistles,” among others. He has also taught “writing intensive” courses to help students in their writing skills. His earned Ph.D. included an emphasis in Eastern Orthodox Church history and liturgy, and he excels in the area of hermeneutics (biblical interpretation). Ken and his wife, Helen, have three grown children: Carrie, Evan, and Bryce.Books by this author include a trilogy published by Xlibris (offered in print and as e-books), which include:- Water Baptism and Spirit Baptism: As Taught in the Scriptures (398 pages)- Confession and Communion: As Taught in the Scriptures (108 pages)- God’s Son “Forsaken,” His Sacrifice “Finished!” (136 pages)E-books by this author published through Smashwords, include:- The Orthodox Church: An Evangelical Perspective- Water Baptism and Spirit Baptism: Expanded Edition- Branches of the Vine: A Fresh Look at John 15- The Bread of Life: A Consistent Sense of John 6- Christ, the "I Am" (in both English and Hindi)- Lordship Salvation: An Evangelical Perspective- Biblical SalvationFor more information, visit www.KenLenz.com

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    मसीह‚ “मैं हूं ” - Ken Lenz

    मेरी पुस्तक के हिंदी अनुवाद के लिए मैं आभा बैंजामिन का बहुत अधिक आभारी हूं और अपने हिंदी पाठकों को भी हृदय से धन्यवाद देता हूं कि आपकी रूचि इस पुस्तक के विषय को पढ़ने में हुई।

    यह मेरे लिए बहुत अच्छा होगा अगर मैं आपका स्वागत करते हुए कुछ मूलभूत विश्वास के अर्थ को भी समझाऊं जो इस प्रस्तुतीकरण का आधार हैं। इनमें से कुछ विश्वास को मैं हिंदु बंधुओं के ‘‘सनातन धर्म ’’ से जोड़ना चाहता हूं। उदाहरण के लिए, हिंदु धर्म में अनेक देवताओं का वर्णन है और ‘‘ब्रह्मा ’’ को सर्वोच्च आत्मा माना गया है। श्रुति और स्मृति पर आधारित पवित्र धर्मशास्त्रों व शिक्षा के प्रति बहुत सम्मान पाया जाता है। इसके साथ ही एक सामान्य विश्वास पाया जाता है कि हमारे कार्यकलाप (कर्म) अच्छे या बुरे होते हैं और हम हमारी करनी का फल भुगतते हैं। मसीही विश्वास में परमेश्वर और बाइबल के उपर विश्वास रखा जाता है और यह माना जाता है कि हमारे कर्म का फल —— यहां इस संसार में और इस संसार के बाद अनंतकाल में भी मिलता है।

    यह पुस्तक मसीही विश्वास के अनुसार जीवित परमेश्वर पर आधारित है जिन्होंने स्वयं को इस जगत के सामने अपने लिखित वचन के द्वारा प्रकट किया। इस वचन को मानवीय लेखकों के द्वारा परमेश्वर से ‘‘प्रेरित’’ होकर हूबहू उसी रूप में लिखा गया है जैसा परमेश्वर हमारे लिए प्रकट करना चाहते थे। यहां ‘‘प्रेरित’’ होने का अर्थ है कि परमेश्वर ने उन लेखकों के हदय और विचारों ‘‘में’’ अपने श्वास को ‘‘फूंका।’’ मसीहत का परमेश्वर एकमात्र सर्वोच्च सत्ता है जिन्होंने सारी सृष्टि का निर्माण किया और हमसे —— इस स्तर तक प्रेम किया कि उन्होंने अपने लिखित वचन को हमारा मार्गदर्शन करने के लिए दिया और अपने जीवित वचन को (यीशु मसीह के रूप में) हमें पाप से बचाने के लिए दे दिया।

    परमेश्वर को ‘‘त्रिएकत्व’’ कहकर संबोधित किया गया है जिसका अर्थ है कि परमेश्वर ने स्वयं को तीन रूपों में प्रकट किया है: जिन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा कहा गया है। इन पदों को परमेश्वर के निजी स्वभाव को प्रकट करने के लिए किया गया है परंतु बिना लिंग भेद के। परमेश्वर आत्मा हैं। तौभी, ऐसा कालक्रम आया कुछ (2000) वर्ष पहले कि परमेश्वर हमारे समान ही एक मनुष्य अर्थात यीशु मसीह में —— अर्थात परमेश्वर देह में —— प्रकट हुए जबकि सब सीमाओं से परे जाकर वह परमेश्वर और पवित्र आत्मा भी थे। मसीही लोग परमेश्वर अर्थात उनके तीन रूप की बात करते हैं, जबकि हमें यह धारणा समझ नहीं आती है तौभी यह पूरी तरह हमारे अनुभव से बाहर की बात नहीं है। उदाहरण ले लीजिए (H2O) पानी के तीन रूप होते हैं। पानी (बर्फ) के रूप में ठोस है (वाष्प) के रूप में गैस है, ठीक वैसे ही द्रव रूप में पानी ही है। इनमें से प्रत्येक तीनों शुद्ध रूप से H2O ही हैं। बेशक, सारे उदाहरण एक स्थान पर जाकर कहीं न कहीं थोड़े अलग से होते हैं, इसलिए इस उदाहरण के मूल में जो सत्यता है, उसे थामें रहिए, इस उदाहरण का इतना अधिक भी विश्लेषण मत कीजिए।

    इसके अतिरिक्त, यह भी सत्य है कि हमारी सीमित मानवीय बुद्धि पूरी तरह से एक अनंत अमर सत्ता को पहचानने की कल्पना नहीं कर सकती। चूंकि वह त्रिएकत्व परमेश्वर हैं, इसलिए हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि परमेश्वर और स्वर्गीय क्षेत्रों के कुछ पहलू हमारी समझ से बाहर ही होंगे, जिन्हें हम पूर्ण रूप से नहीं समझ सकेंगे। (वास्तव में, हम यदि परमेश्वर का पूरा सार समझ गए तो वह संसार से परे सत्ता नहीं कहलाएंगे, ठीक है न ?)

    न केवल हिंदु और मसीही‚ परमेश्वर पर एवं धर्मशास्त्र पर विश्वास करते हैं (हांलाकि उनके नाम अलग अलग हैं)‚ लेकिन हम एक आधारभूत विश्वास को तो साझा करते हैं कि लोग अपने व्यवहार के लिए जिम्मेदार होते हैं और सही या गलत में अंतर होता है, भले या बुरे के बीच अंतर होता है। मसीही विश्वास में (परमेश्वर के लिखित वचन के अनुसार) गलत करने को ‘‘पाप’’ कहा जाता है और केवल एक पाप करना भी परमेश्वर की दृष्टि में व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है। यहां यह बात नहीं है कि (हमारा अच्छा व्यवहार बुरे से अधिक भारी हो।) इसके अतिरिक्त‚ इस संसार के अधिकतर धर्म व्यक्ति के ऊपर जिम्मेदारी रखते हैं कि वह परमेश्वर की निगाह में स्वयं को सही बनाए रखे जैसे कि (अपने व्यवहार और धार्मिक संस्कारों के द्वारा)‚ मसीही विश्वास परमेश्वर पर विश्वास करने पर आधारित है। जिन्होंने स्वयं पाप को हमसे दूर करने के लिए ऐसे कार्य को पूर्ण किया जिससे हम परमेश्वर के साथ उचित संबंध में आ सकें। इसीलिए कुछ लोग इसे ‘‘धर्म’’ के बजाय ‘‘संबंध’’ का नाम देते हैं।

    यह पुस्तक इस विषय में है कि परमेश्वर इस संसार में आए। हमारे सांसारिक इतिहास का हिस्सा बने और एक पवित्र परमेश्वर व्यक्तिगत और शाश्वत रूप में हमसे जुड़े। यह इस समझ पर आधारित है कि यीशु मसीह ने हमारे पापों को अपने उपर लिया और क्रूस पर बलिदान हो गए ताकि परमेश्वर पिता के न्याय की मांग को पूर्ण कर सकें और हमारी आत्माओं को अनंत काल तक बचाए रखने के लिए उसका मूल्य चुकाएं। परमेश्वर पिता हम सबको आशीषित ठहराएं जब हम उनकी प्रेरणा से लिखे गए वचन अर्थात (बाइबल) और उनके जीवित वचन (पुत्र) को हमारे व्यक्तिगत जीवनों में अमल करते हैं ।

    पुस्तक की आत्मकथा

    प्रेरित यूहन्ना ने मसीह के द्वारा उच्चारित मैं हूं वाक्य वाली उपमा को अपने सुसमाचार में दर्ज किया है। जिसे मसीह ने अपना संबंध मनुष्य जगत से दर्शाने के लिए कहा था और विशेषकर जो मसीह पर विश्वास करते हैं उनसे इस संबंध को दर्शाने के लिए इस उपमा का प्रयोग किया गया था। इस पुस्तक का मुख्य केंद्र भाग एक से प्रारंभ होता है, जिसमें संक्षिप्त निबंध हैं जो प्रत्येक सात कथनों को कहे जाने के संदर्भ में और यीशु की सेवकाई के ऐतिहासिक संदर्भ में खोजते हैं।

    इन सातों वाक्यों की खोज और अध्ययन के दौरान‚ ये स्पष्ट हो गया कि विशेषकर इन वचनों में से प्रथम और अंतिम वचन के कई अर्थ निकलते हैं। कुछ तो धर्मशास्त्र के इन पदों से जिसमें ये वचन मिलते है‚ उनकी गलत व्याख्या किए जाने से निकले हैं। इसलिए लेखक को इस बात की आवश्यकता महसूस हुई कि इस पुस्तक में और विस्तार से कुछ लेख लिखे जाएं जो विशेषतः इन दो वचनों पर केंद्रित होते हों। भाग एक के बाद दो और भाग आते हैं जो काफी विस्तार से मैं हूं कहे गए वचनों का विश्लेषण करते हैं और इन प्रत्येक अलग अलग भाग का परिचय यह बतलाता है कि क्यों हमें उन्हें इतने व्यापक रूप में मानना चाहिए। भाग दो का शीर्षक है ‘‘जीवन की रोटी: यूहन्ना 6 का सिलसिलेवार अर्थ‚’’ यह भाग यूहन्ना 6:26—69 पर और अधिक विस्तार से व्याख्या प्रस्तुत करता है। भाग तीन, का शीर्षक है ‘‘दाख की डालियां: ताजा दृष्टिकोण यूहन्ना 15‚’’ इसके पश्चात, यह भाग यूहन्ना 15:1—17 के ऊपर और विस्तार से व्याख्या को प्रस्तुत करता है।

    जब हम मसीह द्वारा सात बार कहे गए ‘‘मैं हूं’’ वचनों का ध्यान कर रहे हैं —— जिसमें से दो कथनों को हम जरा और विस्तार से खोजेंगे —— तो यहां यह देखना भी रोचक होगा कि जब मसीह क्रूस पर लटके हुए थे‚ वहां से भी उन्होंने सात वचन कहे। उन वचनों में से भी दो वचनों के ऊपर लेखक की पुस्तकें उपलब्ध है परमेश्वर का पुत्र गॉड’स सन ‘‘फॉरसेकेन,’’ हिज सेक्रीफाईज ‘‘फिनिश्ड!’’ आप उद्धरण चिह्न को देखकर शायद समझ सकते हैं कि कौन से दो वचन के उपर यह पुस्तक आधारित है। असल में ‘‘मैं हूं’’ जिन सात कथनों पर हम ध्यान लगाएंगे‚ वे कथन क्रूस से निकली उन दो पुकारों और जो कार्य मसीह ने सचमुच क्रूस पर पूर्ण किया उससे जुड़े हुए हैं। आप इसे मसीह ‘‘मैं हूं ’’! नामक पुस्तक की उत्तरकथा कह सकते हैं।

    मसीह के व्यक्तित्व के इन दो उपमाओं पर ध्यान करने के लिए आपको धन्यवाद देता हूं। ये मेरी प्रार्थना है कि ये दो निबंध (जो अब पुस्तक बन चुके हैं) आपको परमेश्वर के प्रेरित वचन को समझ पाने में सहायक होंगे। आपके विश्वास और मसीह के साथ विश्वासपूर्वक चलने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।

    मसीह के अनुग्रह में‚

    केन लैंज

    भाग एक

    मसीह के सात कथन जिनमें ‘‘मैं हूं’’ कहा गया

    मसीह के व्यक्तित्व को दी गयी उपमाएं:

    वह कौन हैं

    1. भाग एक का परिचय

    परमेश्वर की प्रेरणा से पूरी बाइबल लिखी गयी उसमें चार सुसमाचार भी शामिल हैं जिनमें यीशु मसीह के पृथ्वी पर रहने वालों दिनों के कार्य उनके जीवन‚ उनकी शिक्षा का वर्णन पढ़ने को मिलता है। उनकी बलिदानी मृत्यु और हमारे मसीहा के रूप मे पुर्नरूत्थान का वर्णन भी उपलब्ध है। ये सारे वर्णन आंखों देखी गवाही पर उपलब्ध हैं। मत्ती‚ मरकुस‚ लूका‚ यूहन्ना: इन सुसमाचार लेखकों के दिल‚ दिमाग और विचारों में परमेश्वर ने अपने शब्दों को ‘‘फूंका।’’ पहिले तीन सुसमाचारों को सिनोप्टिक गॉस्पल कहा जाता है क्योंकि उन तीनों में एक जैसी घटनाएं और शिक्षाओं का वर्णन है‚ हां‚ थोड़ा अंतर इन तीनों में भी मिलता है (जैसे हरेक लेखक की लेखन शैली अलग हो सकती है‚ उसके पढ़ने वाले कुछ खास पाठक हो सकते हैं या वह कुछ अलग बातों पर जोर देता है)। ये अंतर जो हम देख सकते हैं, इसके साथ ही साथ हमें यह भी समझना है कि परमेश्वर की ओर से प्रत्येक लेखक को प्रेरणा मिली, और उसने यूनानी भाषा के कुछ खास शब्दों का प्रयोग किया।

    यूहन्ना के लिखे सुसमाचार में ऐसी और भी घटनाएं और शिक्षाएं जुड़ी हुई हैं जो (पहिले) के तीनों सुसमाचारों में नहीं मिलती है। यूहन्ना को लिखने का जो कारण है, वही बड़ी सीमा तक सुसमाचार का एक खास पहलू है। जैसे कि यूहन्ना स्वयं यह निष्कर्ष निकालते हैं: ‘‘यीशु ने और भी बहुत चिन्ह [यूनानी: सीमिया ] चेलों के साम्हने दिखाए, जो इस पुस्तक में लिखे नहीं गए; परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं‚ कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर के पुत्र मसीह हैं‚ और विश्वास करके उनके नाम से जीवन पाओ’’ (यूहन्ना 20:30—31)। ¹ यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि आपके विश्वास को देखकर परमेश्वर पिता आत्मिक जीवन आपको प्रदान करते हैं —— यह खास विश्वास ‘‘कि यीशु ही परमेश्वर के पुत्र मसीह हैं।’’ कई मसीही बंधु यूहन्ना 3:16 को ‘‘सुसमाचार का सार’’ समझते हैं क्योंकि वहां यीशु के लिए लिखा हुआ है: ‘‘क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उन्होंने अपना एकलौता पुत्र दे दिया‚ ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नाश न हो परन्तु अनन्त जीवन पाए’’ (यूहन्ना 3:14—18)। यूहन्ना ने अपने लिखे सुसमाचार में ‘‘विश्वास’’ शब्द को कई रूपों में लिखा है (यूनानीः पिस्टीओं ) चौरानवें बार आया है‚ जो इस बात पर बल देता है कि एक व्यक्ति को यीशु मसीह को परमेश्वर के पुत्र के रूप में मानो।

    इस पुस्तक का ध्यान इस बात पर केंद्रित होगा कि मसीह ने अपने बारे में सात ‘‘मैं हूं’’ उपमा वाले कथन किए‚ जिनका वर्णन यूहन्ना के सुसमाचार में आता है —— ओर केवल उसके ही सुसमाचार में आता है। और अगर मैं एक एक करके इन उपमाओं की व्याख्या करूं कि ये केवल उद्धार पाने के भाव से लिखे गए हैं‚ तो यह (फिर से) एक थोपी हुई व्याख्या होगी। जबकि ये उपमा सीधे—सीधे हमारे मसीहा के व्यक्तित्व के लिए कही गयी हैं। मसीह के संग हमारे चलने को लेकर संबंधित है! सातों उपमा निम्नलिखित आयतों से प्रकट होती हैं:

    ‘‘मैं जीवन की रोटी हूं’’ (6:35, 48)

    ‘‘मैं जगत की ज्योति हूं’’ (8:12; 9:5)

    ‘‘मैं द्धार हूं’’ (10:7, 9)

    ‘‘मैं अच्छा चरवाहा हूं’’ (10:11, 14)

    ‘‘मैं पुर्नरूत्थान और जीवन हूं’’ (11:25)

    ‘‘मैं मार्ग, सत्य और जीवन हूं’’ (14:6)

    ‘‘मैं सच्ची दाखलता हूं’’ (15:1, 5)

    एक—एक पद को अलग से लेकर अगर उसका अध्ययन करें तो हम पाएंगे कि इनके पीछे कौनसी घटना हुई होगी‚ जब प्रभु ने खुद के लिए ऐसी उपमा दी। बहुत बार हमने गौर किया है कि घटनाक्रम हमें इन खास आयतों को समझने में सहायता करते हैं इसलिए इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

    जब हम इस अध्ययन को आरंभ कर रहे हैं तो

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