Arunima
By Book rivers and Dr. Rajeev Srivastava
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About this ebook
नैनीताल जनपद के ग्राम के हल्सों एक ओर अल्मोड़ा जिले के पहाड़ दूसरी ओर कोसी नदी और उसके पार नैनीताल जिले के पहाड़ दृष्टिगोचर होते हैं। हल्सों ग्राम की पथरीली सड़क, जिसे कूटकर चलने लायक बना लिया गया है उससे सटा हुआ सरकारी अस्पताल है। सड़क से सटे हुए सीढ़ीदार खेत और उनके बाद पत्थर से बने हुए मकान हैं,
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Arunima - Book rivers
©:- श्री राजीव श्रीवास्तव
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ISBN:-978-93-90548-94-1
दो शब्द
यह उपन्यास मेरे द्वारा लिखित प्रथम उपन्यास है। इसके पूर्व छात्र जीवन में कहानियाँ लिखा करता था, जो स्थानीय समाचार पत्रों में छपा करती थी। यह कथा नितान्त काल्पनिक है, पात्रों का नाम या कथा किसी के जीवन से मेल खाती हैं तो इसका उत्तर दायित्व मेरा न होगा। इस कटु वचन के लिये मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। यह उपन्यास मैं अपनी सहधर्मिणी स्व. श्रीमती शोभा श्रीवास्तव को समर्पित कर रहा हूँ। इस उपन्यास को पूर्ण करने में मेरी पुत्री मेघना श्रीवास्तव का सहयोग प्रशंसनीय है। उसने समय-समय पर अपने सुझाव दिये है।
सधन्यवाद
-डॉ.- राजीव
से-नि-चिकित्साधिकारी(आयुर्वेद)
C:\Users\Asus\Downloads\WhatsApp Image 2021-02-23 at 11.47.37 AM.jpegस्व० श्रीमती शोभा श्रीवास्तव
04.07.1953. 13.03.2016
पिता-स्व० श्री सुरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव
माँ-स्व० श्रीमती राधिका श्रीवास्तव
शोभा
छोटा माथा गोल लाल बिन्दी
घुँघराले काले केश मांथे में लाल सिन्दूर
कजरारे नैन
सुतवा नाक मय स्वर्ण लौंग
गोरा रंग खुलकर हँसना
मधुर मुस्कान
कान में बाली
मध्यम कद
सुगठित देह
, सी थी "शोभा हमारी।
अरूणिमा
नैनीताल जनपद के ग्राम के हल्सों एक ओर अल्मोड़ा जिले के पहाड़ दूसरी ओर कोसी नदी और उसके पार नैनीताल जिले के पहाड़ दृष्टिगोचर होते हैं। हल्सों ग्राम की पथरीली सड़क, जिसे कूटकर चलने लायक बना लिया गया है उससे सटा हुआ सरकारी अस्पताल है। सड़क से सटे हुए सीढ़ीदार खेत और उनके बाद पत्थर से बने हुए मकान हैं, जिनमें एक ही दरवाजा व एक ही खिड़की दिखती है। घरों के सामने भी पथरीला रास्ता है। अल्मोड़ा जनपद के पहाड़ मानो ग्राम की रक्षा कर रहे हो ऐसा प्रतीत होता है। कोसी नदी में आम दिनों में काफी कम पानी रहता है जिसके कारण तलहटी व उसके पत्थर दिखते हैं किन्तु इसकी भयंकरता वर्षा एवं उसके उपरान्त तेज बहाव के कारण अत्यन्त बढ़ जाती है। शीतकाल में नैनीताल के पहाड़ों की चोटी पर हिम चाँदी सा चमकता है।
बसंत ऋतु में बसंतोत्सव मनाया जाता है। यह उत्सव ग्राम के जूनियर हाईस्कूल के प्रांगण में होता है। स्कूल के कपाट नीले होने के कारण अत्यन्त सुहावने लगते हैं। उत्सव में ग्राम की महिलाएँ घेरा बनाकर गीत गाते हुए नृत्य करती है। घेरे के मध्य में लंगूर के समान उछलते पुरूष अत्यन्त हास्यास्पद लगते हैं। महिलाएँ सरसों के फूल के समान पीली चोली व नीला घाघरा और लाल चूनर ओढ़कर नृत्य करती है। ऐसा प्रतीत होता है कि नीले आसमान में सूर्य चमक रहा हो। नीला घांघरा समुद्री जल की भाँति लगता है।
ग्रीष्म ऋतु में पहाड़ों की तपन के कारण बहुत गर्मी पड़ती है। यह स्थान समुद्र तट से 3500 फीट पर है। इस कारण गर्मी का काफी जोर रहता है।
यहाँ की मुख्य पैदावार टमाटर एवं पीली मिर्च की है। गेहूँ दाल आदि नाम भर के लिए पैदा हो जाती है।
टमाटर के मौसम में लाल एवं लम्बे टमाटर एवं हरे-हरे पौधे तोते समान अत्यन्त मनोहर लगते हैं और हरे पौधों पर पीली मिर्च सरसों के फूल के समान सुशोभित होती है। टमाटर एवं मिर्च बोरों में भरकर बस के द्वारा हल्द्वानी लाई जाती है। बस में यात्री कम और टमाटर और मिर्च के बोरे अधिक नजर आते हैं।
हरी सब्जियों के अभाव में सब्जियाँ गरम पानी एवं हल्द्वानी से लाई जाती है। बस से उतरकर कंधे पर लम्बी सी लौकी बंदूक की तरह रखे पुरूष लगता है जैसे सैनिक युद्ध के मैदान से लौट रहे हों।
ऐसे मनोरम ग्राम में अभिषेक की नियुक्ति चिकित्सक के पद पर सरकारी चिकित्सालय में हुई। चिकित्सालय सड़क पर ही स्थित था, जो एक ओर ब्लाॅक एवं दूसरी ओर गरम पानी को जाती है। अभिषेक अपने कार्य में रत हो गया। लगभग तीन माह पश्चात् उसके पिता सपरिवार पर्यटन के उद्देश्य से एवं पुत्र मोहवश उसके पास आए। उसके पिता शिवाकांत एक माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक हैं। उनके छः संतानें है, अभिषेक सबसे बड़ा है शेष के नाम क्रमशः रश्मि, दीपू, मीना, लक्ष्मी व नीहारिका हैं और आते ही आलिंगनबध्य होकर कहा, ‘‘बेटा अपना कार्य पूर्ण ईमानदारी और लगन से करना। मरीज चिकित्सा हेतु तभी आता है, जब वह बीमारी से परेशान हो जाता है एवं चिकित्सक को भगवान का दूसरा रूप मानता है।‘‘
अभिषेक ने चरण स्पर्श कर सहमति से सिर हिलाया और माँ का चरण स्पर्श किया। माँ ने उसका माथा चूमकर बलैयाँ ली और उसे चिपका लिया। उसके भाई-बहन भी अभिवादन कर आवास में खेल व कार्य में मस्त हो गए। शिवाकांत विभिन्न स्थलों से होते हुए अल्मोड़ा की प्रसिद्ध बाल मिठाई के कई डिब्बे लेते हुए पहुँचे और दो दिन बाद वापसी हेतु तैयारी में जुट गए क्योंकि वापसी में अभिषेक के विवाह हेतु काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर कन्या देखना है।
अभिषेक विवाह हेतु कन्या देखने जाने पर मंद-मंद मुस्कुरा रहा था और बहनें उससे चुहुल कर रही थी, जबकि अकेला भाई अपने में मस्त था।
आखिर प्रतीक्षा का समय समाप्त हुआ और सभी लोग बस के द्वारा गरमपानी भवाली होते हुए काठागोदाम स्टेशन पहुँचे जहाँ अरूणिमा अपने माता-पिता के साथ प्रतीक्षालय में सभी की प्रतीक्षा कर रही थी। सबने जलपान किया और अभिषेक एवं अरूणिमा माता-पिता की सहमति से प्लेटफार्म पर निकल गए। रेलवे स्टेशन की शोभा देखते बनती थी। सामने एक ओर पर्वत उन पर बादलों का आना-जाना नीले आसमान के मध्य लगा हुआ था और बीच-बीच में सूर्यनारायण अपनी आभा बिखेर रहे थे। रेलवे लाईन पर नीले डिब्बों वाली नैनीताल एक्सप्रेस अति सुन्दर लग रही थी।
ऐसे मनोरम वातावरण में अरूणिमा और अभिषेक प्लेटफार्म पर चहल कदमी कर रहे एक-दूसरे से वार्तालाप में मस्त थे, तभी पर्यटकों का एक जोड़ा पास से निकला, उनकी न जाने कौन-सी बात सुनकर अरूणिमा खिस्स सी हँस दी और कहा-
‘‘यह पर्यटक भी अजीब होते हैं। बेकार की बातें करते हैं।‘‘
अभिषेक ने उसकी आवाज सुन कहा, ‘‘तुम भी ऐसी ही बातें करो।‘‘
अरूणिमा, ‘‘मैं ऐसी बातें नहीं कर सकती।‘‘
अभिषेक, ‘‘तो काम की बातें करते हैं। मैं एक साधारण घर का हूँ और तुम सम्पन्न घर की हो। क्या मेरे साथ जीवन यापन कर सकोगी?‘‘
अरूणिमा, ‘‘सम्पन्नता तो आती-जाती रहती है, किन्तु अच्छे लोग मुश्किल से मिलते हैं।‘‘
अभिषेक, ‘‘क्या हम लोग अच्छे हैं?‘‘
अरूणिमा, ‘‘बाबूजी कई बार आपके माता-पिता से मिल चुके हैं। वह काफी प्रशंसा कर रहें थे और प्रतीक्षालय में आप लोगों के मध्य हो रही बातचीत से मैं भी आप लोगों के स्वभाव से परिचित हो गयी हूँ।‘‘
अभिषेक यह सुन मानव स्वभावानुसार गद्गद् होते हुए बोला, ‘‘चलो कोई अन्य बात करते हैं।‘‘
अरूणिमा, ‘‘बातों-बातों में हम काफी दूर निकल आए हैं। चलिए अब चलते हैं।‘‘
अभिषेक ने सहमति से सिर हिलाया और वापस चल दिए। वापसी में अभिषेक जान-बूझकर थोड़ा पीछे हो लिया। अरूणिमा के काले बालों की चोटी नागिन सी पतली कमर पर लहरा रही थी। ब्लाउज और नीली साड़ी के मध्य दमकती गौर वर्ण की पीठ अत्यन्त सुहावनी लग रही थी। उसकी गोरी सुराही के समान ग्रीवा गजब ढ़ा रही थी। फिर वह अरूणिमा के साथ-साथ चलने लगा। अरूणिमा और अभिषेक के स्टेशन पर घूमने के दौरान राधा जी ने विमला जी से कहा, ‘‘बहन जी इस समय तो हम लोग फार्म पर ही रहते हैं। अरूणिमा के पिता बरेली में नौकरी करते हैं, रोज बरेली आते-जाते हैं। अशोक पंतनगर टी.डी.सी. में नौकरी करते हैं, पर इस समय 6 माह के लिये अमेरिका गये हैं, शेष पढ़ रहें हैं। पहले अरूणिमा अपने पिता, भाईयों और बहन के साथ बरेली में रहती थी। उसे घर चलाने का और छोटे भाईयों व बहन की देखभाल करने का पूर्ण अनुभव है। सभी भाई व बहन अरूणिमा को बहुत सम्मान देते हैं और आपस में स्नेह हैं। अरूणिमा अपनी भाभी का बहुत सम्मान करती है और दोनों भतीजों से बहुत प्यार करती है। हम लोग उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे पर परिस्थितियों वश ऐसा नहीं हो सका।‘‘
विमला जी, ‘‘बहन जी यह तो बहुत अच्छा है। यदि अरूणिमा हमारे घर आ जाये तो हमारा सौभाग्य होगा, पर निर्णय अभिषेक के ऊपर है।‘‘
सुरेन्द्र जी, ‘‘आप एकदम ठीक कह रही है।‘‘
इतने में अभिषेक व अरूणिमा को आते देख सब चुप हो गये और सुरेन्द्र जी भोजन के लिए कहने चले गये। अभिषेक अपनी माँ के पास बैठा और कनखियों से अरूणिमा को निहार रहा था। गौरवर्ण के चेहरे पर छोटा सा माथा, सुतवा नाक, हिरनी जैसी आँखें, गुलाब की पंखुड़ी के समान रक्त होंठ जिनके बीच मुँह खोलने पर दो दाँतों के मध्य छिद्र, ठोढ़ी के मध्य गड्ढा, गोल गोरी बाँहें और पूर्व में देख चुके 5 फीट 4 इंच के कद से अभिषेक ने दीवाना सा होकर माँ से कहा, ‘‘माँ मुझे अरूणिमा बहुत पसंद है। यदि आप लोगों को अरूणिमा एवं उसके माता-पिता को आपत्ति न हो तो मैं विवाह हेतु अपनी सहमति देता हूँ।‘‘
इतने में भोजन आ गया। सभी ने भोजन किया।
अभिषेक की माँ ने अरूणिमा के माता-पिता से उक्त बात कही। अरूणिमा के माता-पिता ने गौर वर्ण के लम्बे सुदर्शन एवं सरकारी सेवा में रत चिकित्सक को अपने दामाद के रूप में स्वीकृति दे दी। तत्पश्चात् भोजन किया गया और समीप के होटल में दोनों तरफ से रस्में पूर्ण की गयी।
सायंकाल चाय के उपरांत अरूणिमा अभिषेक एवं अभिषेक की बहनें पुनः घूमने निकले। रास्ते भर बहनें अरूणिमा से चुहल करती रहीं और अपनी होने वाली भाभी के लिए कड़े खरीदे और पास के रेस्टोरेंट में कुल्फी खायी जिसकी सभी ने बहुत प्रशंसा की।
एक बहन ने कहा, ‘‘भाभी अब तो आप हमारे यहाँ आ रही है। अच्छे-अच्छे गीत सीख लीजिए, भैया को गाने का बहुत शौक है।‘‘
यह सुनते ही अरूणिमा ने एक फिल्मी गीत सुनाया जिसके बोल हैं, ’’तुम्हीं मेरे मन्दिर, तुम्हीं मेरी पूजा।’’ गीत सुनकर सभी को ऐसा लगा मानो संगमरमर के फर्श पर सच्चे मोती बिखेर दिये गये हो। सभी ने अरूणिमा की भी काफी प्रशंसा की और अरूणिमा ने लजाकर अपना सिर झुका लिया। लजाने के कारण उसके गाल रक्ताभ हो गए और प्रसन्नता से आँखों से निकले आँसू की बूँद गाल पर टिक गयी लगा जैसे गुलाब पर ओस पड़ी हो।
अभिषेक की बहन ने आँसू अपने रूमाल में सँजो लिए और कहा, ‘‘यह रूमाल मैं हमेशा पहली मुलाकात की याद में अपने पाास रखूँगी। हाँ यदि भैया ने कहा तो उनको दे दूँगी।‘‘
यह सुनते ही अभिषेक ने रूमाल तुरन्त छीन लिया और हृदय के पास वाली सफेद कमीज की जेब में चूमकर रख लिया। कमीज की जेब से गुलाबी रंग का रूमाल फूल की भाँति झलक रहा था। अभिषेक ने कहा, ‘‘अरूणिमा यह रूमाल मेरे पास सदैव सुरक्षित रहेगा। मेरी मृत्यु के बाद ही अलग होगा।‘‘
यह सुनकर अरूणिमा ने अपनी हथेली उसके मुँह पर रखते हुए कहा, ‘‘ऐसा मत कहिए। हम दोनों एक साथ ही इस दुनिया से जायेंगे।‘‘ अभिषेक ने उसकी हथेली की तपन महसूस की और सबकी आँख बचाकर हथेली चूम ली। अरूणिमा पुनः लजाकर लाल हो गयी।
सभी लोग निकलकर होटल पहुँचकर अपने माता-पिता के पास पहुँचे और सबने एक साथ भोजन किया एवं स्टेशन पहुँच गए। थोड़ी ही देर में नैनीताल एक्सप्रेस प्लेटफार्म पर आई और सब लोग एक ही कम्पार्टमेंट में बैठे और अरूणिमा और अभिषेक बुक स्टाॅल पर जाकर किताबें देखने लगे। तभी अभिषेक ने इशारे से अपने भाई को बुलाया और कहा, ‘‘माँ के पास जा रहा हूँ, तुम अरूणिमा के साथ आ जाना।‘‘ अरूणिमा ने दो पुस्तकें पसन्द की और चल दी। ट्रेन छूटने का समय हो जाने के कारण अरूणिमा ने रंेगती ट्रेन को पकड़ा और पीछे से अभिषेक का भाई दीपू भी चढ़ गया। अभिषेक