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Chattisgarh Ki Lok Kathayein
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Ebook279 pages2 hours

Chattisgarh Ki Lok Kathayein

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About this ebook

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः अपने जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों को अपने आस-पास के पात्रों को संजाकर वह 'दैनीन्दिन' की घटनाओं के आस-पास और ''दाम्पत्य जीवन के हर्ष-विषाद' को प्रस्तुत करके संतुष्ट होता है अर्थात् ये कहानियाँ पारिवारिक सामाजिक जीवन पर केन्द्रित होती है। इसमें सामाजिक समस्याएँ, परम्पराए और सुख दुःख की छोटी-बड़ी सभी अनुभूतियों भी है। इसके अंतर्गत गोड़-गोड़िन के दाम्पत्य जीवन की प्रचलित छत्तीसगढ़ी लोककथा को उदाहरणार्थ रखा जा सकता है।

LanguageEnglish
Release dateDec 13, 2021
ISBN9789389856484
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    Chattisgarh Ki Lok Kathayein - INDIA NETBOOKS indianetbooks

    इण्डिया नेटबुक्स

    अनुक्रम

    रूना - झूना

    कानी चिराई

    चरडंडिया गियान

    हरई अउ पफटक्का

    कुतरनी

    बनिया के पत्तो

    अगम विद्या

    लालची पड़ोसी

    डोकरी अउ बघवा

    हाथी अउ कोलिहा

    चतुरा मुसुआ

    गोबर्रा किरवा

    पसु मन ला सराप

    कौवा अउ गारैया

    चुरकी अउ मुरकी

    बखत के माया

    बाघिन अउ छेरिया

    सही रद्दा

    पाना अउ ढेला

    चिरई अउ दार

    हाँथ गोड़ म लासा, अउ मुड़ म पासा

    तिरिया जनम झनि देय

    हिरा-मारा

    हिराखान-हीरो

    सबसे पहले रहेगा ;छत्तीसगढ़ की लोककथाएँद्ध

    रूना-झूना

    रूना - झूना

    मूल कथा

    एक छोटे से ग्राम में एक डोकरी हिंदी अनुवाद आई अपनी दो कुँवारी कन्याओं के साथ रहती थी। बड़ी का नाम रूना और छोटी बेटी का झूना था। बड़ी बारह बरस की थी, छोटी दस साल की। बड़ी भावुक थी और छल-छद्ममय व्यवहर से दूर जबकि छोटी चंचल व बुद्धिमती थी। दोनों बहनें तड़के उठतीं और मुँह अंधेरे झउहा लेकर गोबर बीनने के लिए जंगल की ओर निकल पड़ती। गाँव से जंगल पास ही था। आगें बियावान जंगल था लेकिन रूना-झूना से ज्यादा दूर नहीं जाती थीं क्योंकि माँ ने मना कर दिया था कि उधर बाघ, भालू व अन्य हिंसक पशु विचरण करते हैं।

    एक दिन उन्हें गोबर कम मिला। दोनों ने सोचा-कुछ दूर और निकल जाएं। कुछ न कुछ गोबर तो मिलेगा ही। और यदि न भी मिले तो वापस आ जाएंगी। दोनों आगे बढ़ती गयीं और गोबर मिलता गया। उत्साह के कारण बहनों को सुध न रही और वे कुछ ज्यादा दूर निकल गई। जब झउहा पूरा भर गया तो रूना ने झूना के सिर पर रख दी और अब उसे कौन बोहावे? दोनों इसी असमंजस में थे कि उधर से बाघ आ गया। दोनों ने बाघ का नाम सुना था लेकिन देख नहीं था अतः उन्होंने सहयोगी पशु समझ कर उसे अपनी आप बीती सुनाई। बाघ ने शर्त रखी कि दोनों बहनें उससे शादी करेंगी तो वह उन्हें मदद करेगा। रूना-झूना नादान थे। हामी भर दी। बाघ ने झउहा सिर मंे दस दिया।

    दोनों बहने हंसते𝔠ाते घर पहुंचीं। विलंब के कारण माँ चिंतित थीं लेकिन दोनों का भरपूर गोबर उठाए देख कर वह फूली नहीं समायी।

    बहनों ने जब माँ को सारा वृतांत सुनाया तो माँ सन्न रह गयी। कांटो तो खून नहीं। उसने दोनों बेटियों से कहा कि वह अच्छा नहीं हुआ। वह बाघ था, बाघ तुम लोगों के बडे़ होने पर आएगा और विवाह करके ले जायगा। यदि हम तुम्हें विदा नहीं करेंगे तो वह हम सबको खा जाएगा। फिर वचन रक्षा का दायित्व भी बड़ी चीज है। हाय, भगवान भी क्या दिन दिखाने वाला है। जैसी उसकी मजी। मर्जी के सामने खुदगर्जी कहाँ चलेगी ?

    इस तरह दिन सरकने लगी। दोनों बहनें उस घटना को भूल गयीं। गई माँ भावी आशंका से तिल तिल घुलने लगीं। पौधे को वृक्ष बनते और कन्या को युवती बनते देर कहाँ लगती है? अक्षय तृतीया के मध्यान्ह में माँ-बेटी-खा-पीकर जब सो रहे थे बाघ ने उनके द्वार पर दहाड़ का दस्तक दिया। ‘माँ-बेटी चैंककर जाग उठे। और जब उन्होंने दरवाजा खोला तो समने बाघ को देख कर हैरान रह गए। भयभीत माँ न दामाद बाघ को बुलाया और गोधूलि बेला में नेंग करके दोनों बेटियों की रात्रि में विदाई की। विदाई पर सभी माताएं रोती हैं। उनके दुख का पारावार नहीं रहता। लेकिन यह विदाई तो बेटियों को मौत के मुंह में डालने जैसी अंतिम विदाई प्रतीत हो रही थी। माँ असहाय थी और बिटिया का करूण क्रंदन क्रूर काल का मूर्तस्वरूप बनी थी-

    आज का चंदा निकट-निकट

    दाई मै जाऊंगी बड़ दूरे।

    ओण दाई में जाऊंगी बड़ दूरे,

    अपनी दाई की नोनी दुलौरिन,

    दाई मुझे क्षण्भर गोद में ले ले ....

    डोकरी दाई को बाघ दुलरू दामाद नहीं, साक्षात यमराज लगा। मन को मसोस कर व भाग्य को भगवान को भरोसा मानकर वह तीजा में बेटी के पदार्पण की प्रतीक्षा करने लगी। डोकरी में शक्ति तो थी नहीं। एक लंघन एक फलाहार दिन काटने लगी। इधर बाघ रूना - झूना के साथ रहने लगा। कुछ ही दिन बीते थे कि उसने गाड़ा भर धान पटक कर दोनों बहनों को छरने-कटने और काम में लगने का आदेश दिया - रूना धान कूटने लगी और झूना उसे खो- खोकर चावल अलग करने लगी। इस बींच बाघ झूना के पास आकर बैठ गया और उसकी गोरी छिनी उंगली को चाटने लगा। इसे पति का प्यार समझकर झूना निहाल थी। और थकित रूना नीचे सिर करके आन को यंत्रवत कूटती रही। निढाल बस

    क्या था, बाघ उंगली चटकर गया। वह खून का प्यासा हो गया। झूना ने सना को इशारा करना चाहा लेकिन वह तो सिर झुकाए कूटी जा रही थी। आवाज भी नहीं लगा सकती थी। ऐसे में गीताभिव्यक्ति के सिवाय और कोई चारा नहीं था। जब बाघ पैर के मांस पर घात करने लगा तब झूना गाने गली-

    पैर के पास को पकड़ा है रूना,

    पंडरू घोड़ा में चढ़के ओ रूना

    चल देना मायके देश ओ ...¬

    रूना इसे श्रम-परिहार समझकर व उस धुन में विधुन होकर प्रशंसा

    व हामी के स्वर में उसी लय में बोली - और गीत गा दीदी, और गीत गा ...¬इतने में बाघ ने घुटना को धर दबोचा। झूना पुनः गाने लगी....घुटने को अब पकड़ा है रूना पंड़रू घोड़ा चढके ओ रूना, चल देना मायके देश ओ ..¬रूना ने फिर हामी भरी और गीत गाने का अनुनय विनय किया - और गीत गा दीदी, और गीता गा...¬इतने में बाघ ने कमर को धर दबोचा। झूना पुनः गीत गाने लगी- कमर को अब पकड़ा है रूना...¬पंड़रू घोड़ा में चढ़कर ओ रूना..¬चल देना मायके देश ओ..¬रूना ने फिर हामी भरी और गीत गाने का अनुनय विनय किया - और गीत गा दीदी, और गीत गा..¬इतने में बाघ ने बाँह को धर दवोचा। झुना पुनः गाने लगी- बांह को पकड़ा हे रूना...¬पंडरू घोड़ा चढ़के ओ रूना चल देना मायके देश ओ..¬सना ने फिर हामी भरी और गीत गाने को अनुनय विनय किया- और गीता गा दीदी, और गीत गा..¬इतनें में बाघ ने गले को धर दबोचा। रूंधे-दबे गले से आवाज

    निकली- ग...ले...को...अ...ब...प...क...डा....

    रूना को अहसास हुआ या तो कुछ गड़बड़ है या फिर प्रशंसा सुन का झूना इतरा रही है। मुंह उठाते ही उसका जी धक से रह गया। उसे झूना का गीतात्मक संदेश समझ में आ गया। वह ढेंकी छोड़कर और पल्ला दौड़ कर तत्क्षण घुड़साल से पंडरू घोड़ा को कुदाते - कुदाते बीहड़ पथ को पार करती हुई मायके की ओर अग्रसर हुई। रूना को पूरी तरह खाकर बाघ झूना की तरफ भागा। उसे देखकर वन के पशु-पक्षी छिप गए। छोटे जानवर व उनके बच्चे वृक्ष से गिरकर मर गए। पूरा जंगल सांय-सांय, भांय-भांय करने लगा। बाघ जंगल की सीमा तक पीछा करने के बाद जब उसे नहीं पा सका तब वापस आ गया। इधर रूना दाई से मिली। जैसे प्राण के संचार से शरीर स्पंदित होता है, बैसे ही रूना को पाकर डोकरी दाई खिल उठी। जब उसे मालूस था कि बाघ कभी भी आ सकता है। रूना भी गाँव में अकेले नहीं निकलती थी।

    किसी तरह दिन कट रहे थे। एक रात बाघ ने उनके द्वार पर दहाड़कर दस्तक दिया। दाई भाई और रूना चैंककर जाग उठे। और जब उन्होंने दरवाजा खोला तो सामने बाघ को देख कर हैरान रह गाए भयभीत माँ ने दामाद बाघ को सामने के कोठे में सोने का निर्देश दिया। दूसरे दिन शाम तक नेंग चार के बाद विदाई मंपत्र करन का आवश्वासन देकर सोन चल गए। तीनों की नींद उड़ गया था तीनों ने रात्रि पर्यंत तरकीब ढंढी और हँसी-खुशी रात ढलने की प्रतीक्षा करने लगे। बाघ की नाक जाता की तरह बज रही थी। इससे बराबर आभास हो रहा था कि वह गाढ़ी निद्रा में है। जब मुर्गे ने बांग दी, तब तीनों चुपचाप उठे। भाई ने घर की हँसिया, पहँसुल, काँटा, छूरी, कील, चाकू, बरछी, तलवार एकत्र किया और इसी तरह के नुकीले कोरी-खद्हा औजार गाँव से मांगकर कुएँ में डाल दिया। जब बाघ उठा तब उसे घमेले में बासी और कुड़ेरें में चटनी - साग दिया गया। उसके बाद दाई ने उससे कहा कि- दुलरू बाबू, तुम्हारे बाल बड़े हुए है। इसे नाई से कटवा लो। नख को फँकवा लो। अच्छे दिखोगे। आज विदा के समय सारा गांव तुम्हार स्वागत करेगा। तुम्हें सजा- संवार कर

    व नहला धुलाकर संुदर बना दिया जाएगा। बाघ खुश हो गया। इधर दाई ने नाई बुलाने भेजा और कुंए के पाट के ऊपर जीर्ण- शीर्ण खाट रख दी गयी. जिसकी बिछी हुई रस्सी की गाँठ चरमरा रही थी। अपने सम्मान की तैयारी देखकर बाघ गद्गद था। उसे दाई और भाई, नाई सहित ले गए और कुंए के पाटमंे बिछे खाट पर बिठा दिया। नाई ने कैंची निकाल कर विशिष्ट अंदाज में चलाकर बाघ के शरीर को जोर सी नीचे दबाया। चरमर चरमर करके रस्सी टूट गयी और बाघ कुएँ में गिर गया।

    हँसिया, पहँसुल, काँटा, कील, चाकू, बरछी, तलवार जब उसकी देह को बेधने लगे, तब वह बचाव की मुद्रा में गुर्राने लगा। इधर पकवान बनाने के बहाने भट्टी में तेल खौल रहा था, जिसे रूना ने असहाय बाघ पर उड़ेल दिया। बाघ तड़प-तड़प कर मर गया।

    नर-भक्षी को सजा मिल गयी। दाई के साथ रूना निश्चिंत रहने लगी।

    दाल - भात चूर गया, हमारा किस्सा पूर गया।

    मूल कथा

    एक ठन छोटकन गांव म एक डोकरी ह अपन दू झन कुंवारी बेटी मन संग सहत रहत। बड़े के नाम रूना अऊ छोटे के नाम झूना रहया। बड़े ह बारा बछर के रहिस अऊ छोटे ह दस बछर के। बड़े ह बड़ अच्छा रहिस मन के साफ अऊ छोटे ह ओत के उपाड़ और चतुरा। दूनो बहिनी भिनसरहा ल उठय अऊ मुधरहा झऊआ लेके गोबर बीने जंगल कोती चल देय। जंगल ह धाप भर परय। अऊ ओखर आगू कुलूप जंगल रहय। फेर रूना - झूना छाप भर जंगल के आरे पार नई जाय काबर के दाई ह चेता दे रहिस के ओ पार बघवा, भलुवा अऊ दूसर जनावर मन रहिथे। एक दिन उन ला गोबर थोरकर मिलिस। दूनों इन सोयीन के थोरक अऊ चल देई। थोर बहुत गोबर तो मिल हिच्चे। अऊ कहूं नई मिलही त लहुट जाबो। दूनो चलते गेईन अऊ गोब मिलते गईस। उमन आगू बढ़त गेईन अऊ झउहा ह भरत गेईस। दूनो बहिनी ल खुशी के मारे सुध नई रहि गय। अऊ उमन जादा दूरिहा निकल गया। जब झउहा ह पूरा भर गय तब रूना ह झूना ल झउहा बोहा दीस अऊ अब ओला कोन बोहावै? दूनोे एही गुन म रहिन के ओती ले बघवा आ गय। दूना झन बघवा के नाव सुन रहिन फेर देखे नई रहिन। त उमन ओला अपन जान के अपन दुख पीरा बताइन। बघवा ह बाजी रखीस के दूनो बहिनी ओखर ले बिहाव करही त ओह उखर संग देही। रूना-झूना नदान रहिन। हौ कहि दिन। बघवा ह झउहा ल बोहा दीस।

    दूनो बहिनी हंसत गोठियात घर पहुंच गय। अ बेर होए के खातिर दाई ह संसो करत रहय। फेर दूनो झन झउहा भर गोबर उठाए देख के भारी परसन हो गय। फेर इनों नोनी ह दाई ल नधवा के बात बताईन तब दाई सन्न रहेगे। काटा त लहू नहीं। ओ ह दूनो बेटी ले कहिस - के ए ह बने नई होइस। ओ ह बघवा रहीस बघवा। तुहर सज्ञान हो म ओ हो आही अऊ बिहाव करके लेग जाही। कहूं हमर तुंहर बिदा नई करबो त हम सब्यो झन ल खा देही। फेर जुबान राखना ह बड़ चीज हे। हाय, भगवानों ह का दिन दिखवइयाँ है। जइसे ओखर मन। ओखर मन के आघू म हमर मन कईसे चलही। अझसने दिन पहाए लागीस। पीका ल रूख बनत अऊ नानकूल नोनी ल मोटियारी बनत बअबेर कहां होथे? अकती के दिन मझनिया महतारी बेटी खा पी के जतरा जुआर सोवत रहीन। ओतके जुहार बघवा ह मार गुर्रा के फैरका ल ठोकीस। महतारी बेटी मन अचकचा के जाग गया। अऊ जब उमन दुआरी ल खोलीन त बघवा ल आघू म देख के चुप रही गय। डरावत दाई ह दमाद बघवा ल बलाइस अऊ संझा जुआर नेग करके रातकून दूनो बेटी के बिदा कर दीस। बिदा म सबे महतारी रोथे। उखर दुख के कोनो ठिकाना नई रहय। फेर ये बिदा ह तो बैटी मन ल मउत के मुह म भेजे परतीत होवत रहीस। महतारी असक रहीस अऊ बेटी मन के रोवाई का पूछे-

    आज के चंदा लकठ - लकठा

    दाई मैं जाहूं बड़ दूरिहा

    ओ दाई मैं जाहूं बड़ दूरिहा

    अपन दाई के नोनी दुलौरिन

    दाई मोला थोरकन गोदी म ले ले .......

    डोकरी दाई ल बघवा ह दुलरू दमांद नहीं सोझे जमराज लगत रहय।

    मन ल टोर के भाग ल भगवान भरोसा मान के वो ह तीजा तिहार म बेटी मन ल अगोरे लगिस। डोकरी के साख तो नई रहिस। एक लांघन एक फलहार दिन पहाए लागिस। एती बघवा रूना झूना संग रहे लगिस थोरेक दिन पहाए रहिस के वो ह गाड़ा भरधान पटके के दूनो बहिनी ल छरे कूटे के काम म लगा दिस। रूना धान कूटे लगिस। अऊ झूना ह ओला खो खो के चाउर अलग करे लगिस। एही म बघवा झूना के तीर म आके बइठ गय अऊ ओखर गोरी छीनी अंगठी ल चाटे लगिस। एला गोसइया के मया समझ के झूना बिसरा डारिस। अऊ रूना तरी मुड़ी करे मशीन कस कूटते रहि गय। ओला बाघे के रहे के पते नई रहिस थोरेक बिलम म अंगुली चाटे ले खुन निकर आइस। फेर क, बघवा ह अंगुरी ल लीला लेइस। ओ ह लहु के पियासा हो गया। झूना हर रूना ल इसारा करना को चाहिस फेर वो ह तो तरी मूड़ करे कूटत जात रहीस। आरो घलो नई दे सकत रहीस अइसन म. गीत के भाखा ले कोई रद्दा नई रहीस। जब बघवा ह गोड़ के मांस बर डाटा लगाए लगिस त झूना गाए लगिस-

    गोड़ के तोल पकड़े है रूना

    पड़रू घोड़ा म चढ़के ओ रूना

    चल दे बे मइके देस ओ

    रूना एला मेहनत मजूरी के गीत समझ के अऊ ओही धुन म होके बड़ई हामी भरत ओही सुर म बोलीस-

    अऊ गीत

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