कुछ इधर की कुछ उधर की (Kuch Idhar Ki Kuch Udhar Ki)
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About this ebook
भगवान झूठ ना बुलवाए, कविता लेखन तो स्कूल से ही शुरू हो गया था लेकिन कबीर के दोहों की 'पैरोडी', से। कभी सोचा नहीं था एक दिन अपना ओरिजीनल काव्य संग्रह प्रकाशित होगा। लेकिन हाँ, शुरू से ही कुछ नया, कुछ लीक से हट कर करने की सनक थी। शायद... और एक बात। शुभचिंतकों के लाख समझाने के बाद भी हमेशा दिल को दिमाग़ से अधिक ईमानदार समझा और उसी की सुनी। पिछले ४५ सालों से अमिताभ श्रीवास्तव हिंदुस्तान टाइम्ज़, साप्ताहिक हिंदुस्तान, नवजीवन, नैशनल हेरल्ड आदि में स्तंभकार हैं। 'कुछ इधर की कुछ उधर की' में व्यंग्य, शब्दों की हेरा-फेरी, सामाजिक दर्द तो है ही लेकिन इसकी अधिकतर रचनायें अगर करोना-ग्रस्त लगें तो वही इस पुस्तक की प्रेरणा भी हैं।
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कुछ इधर की कुछ उधर की (Kuch Idhar Ki Kuch Udhar Ki) - Amitabh Srivastava
आभार
पहली किताब, पहला काव्य संग्रह। आभार तो बहुत लोंगों का बनता है। लेकिन जिस हालात से हम गुज़र रहे हैं उसमें जन्म देने वाले माता-पिता से अधिक हक़ दोबारा ज़िंदगी देने वालों का हो गया है। अजीब इत्तफ़ाक है कि इस क्रम में एक हैं मौजूदा महाराष्ट्र राज्यपाल, भगत सिंह कोश्यारी, जिन्होंने २००१ में उत्तराखंड मुख्य-मंत्री होते हुए मुझे बाई पास सर्जरी के लिए देहरादून से दिल्ली भिजवाया। और दूसरे रहे डॉक्टर (स्वर्गीय) के के अग्रवाल, जिन्होंने २०११/१२ में मुझे दूसरी बाई पास सर्जरी से बचाया।
भूमिका
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब लॉकडाउन के दौरान एक दिन सुबह सुबह अमिताभ का फ़ोन मेरे पास आया। पिछले कई दिनों से व्हाट्सएप पर हम दोनों के बीच संवाद का सिलसिला लगातार बना था। रोज़ाना ही आपस में विचारों, संदेशों का आदान प्रदान चलता रहता था।
आज ये सुबह सुबह फ़ोन क्यों? तब आश्चर्य और बढ़ गया जब उन्होंने मुझसे उनके काव्य संग्रह की भूमिका लिखने का आग्रह किया। अमिताभ मूलतः पत्रकार हैं, कला संस्कृति में रुचि रखते हैं ये मुझे मालूम था, लेकिन वो कविता के क्षेत्र में भी दख़ल रखते हैं, ये ख़बर नहीं थी। ख़ैर हम अपने परिचितों के बारे में सब कुछ जानते हों ऐसा कोई ज़रूरी नहीं, और इसलिए इसमें इतना आश्चर्य करने की बात भी नहीं थी। आश्चर्य की असली वजह यह थी की अपने प्रकाशित होने वाले पहले काव्य संग्रह की भूमिका लिखने की पेशकश उन्होंने मुझसे की!
मैं ठहरा एक नाटक नौटंकी करने वाला, कविता की किताब की भूमिका से मेरा क्या लेना देना। मुझसे तो मंच पर की जाने वाली भूमिका की बात करो। मैंने अमिताभ से कहा भी की तुमने मुझसे पूछा ये मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है, लेकिन बेहतर होगा कि तुम भूमिका लिखने का काम किसी साहित्यिक व्यक्ति से करवाओ। पर वो नहीं माने और ज़िद्द पर अड़े रहे तो मुझे हार कर उनकी बात माननी