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कहानियाँ सबके लिए (भाग 4)
कहानियाँ सबके लिए (भाग 4)
कहानियाँ सबके लिए (भाग 4)
Ebook238 pages1 hour

कहानियाँ सबके लिए (भाग 4)

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About this ebook

अब और नहीं
महारत
ज़मीन
भयानक रेल दुर्घटना
फिल्मअभिनेत्री की मौत
आओ भाग जाते हैं
यादें हमेशा रहती हैं
वादा
पाठ वाला डिब्बा
तस्वीर
प्यार फूलों वाला
छोड़कर चली गयी
कहानी वाला
विधवा से विवाह
ज़िंदा लाश
गलत रिश्ता
झूठ जो सच थे
बिना किसी लक्ष्य
खतरनाक इच्छा
वो सुन्दर अजनबी
खो गया
लालसा
भाग्य
प्यार कितना हो
ज़िन्दगी बिकी हुई
उसकी याद
सिर्फ वो एक पल
सही और गलत

दो शब्द

ये कहानी वाला समूह के विभिन्न लेखकों के द्वारा लिखी गयी अनेकों विषयों पर बहुत ही रोचक कहानियाँ है। इस श्रंखला में आपको करीब तीस पुस्तकें मिलेंगी। ये सभी कहानियाँ आप अपने मोबाइल, कंप्यूटर, आई पैड या लैपटॉप पर सिर्फ कुछ पैसे चुकाकर ही पढ़ सकते हैं।

इस संग्रह को आप डाउनलोड करके सेव भी कर सकते हैं बाद में पढ़ने के लिए। हमें आपके सहयोग की जरूरत है इसलिए इन कहानियों को अपने मित्रों के साथ भी सांझा कीजिये!

धन्यवाद

कहानी वाला

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJan 8, 2023
ISBN9798215733066
कहानियाँ सबके लिए (भाग 4)

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    कहानियाँ सबके लिए (भाग 4) - कहानी वाला

    अब और नहीं

    चन्द्रमा के प्रकाश में मुझे हमारे पेड़ की आकृति साफ़ दिख रही है। मैं जहां खड़ी हूँ वहाँ से मुझे हमारा पेड़ बहुत ही प्यारा लग रहा है।

    यही मेरे जीवन का सबसे सुन्दर दृश्य है और शायद रहेगा भी। हमारा पेड़! जिसपर हमने तरुण अवस्था में अपने अपने नाम खोदे थे। जब हमने अपने नाम इस पेड़ पर खोदे थे तो हम प्रेम में डूबे तरुणी और तरुण थे।

    पंद्रह वर्षो तक हम एक दूसरे के प्रेम में डूबे रहे थे तरुण अवस्था से लेकर आगे तक। क्या तुम्हें याद है वो चांदनी रात जब तुमने मुझे इसी पेड़ के नीचे प्रोपोज़ किया था शादी के लिए।

    ये पेड़ और इसके आस पास की जगह हमारे लिए स्वर्ग थे जहां हम हर हफ्ते की छुट्टी वाले दिन मिलते थे।

    मैं चुपके से अपने हॉस्टल से निकलकर तुम्हारी कार की पिछली सीट पर बैठ जाती थी और तुम कार लेकर पहाड़ी की तलहटी की तरफ चल देते थे। हम वहाँ से पैदल ही जंगल से होकर पहाड़ी पर चढ़ते थे और हमारे इस पेड़ के नीचे बैठकर घंटों बातें करते थे और सपने देखते थे। हमारे सामने क्षितिज पर हमारा जीवन हमें दिखता था।

    याद है वो दिन जिस दिन तुम मुझे गोदी में उठाकर पहाड़ पर ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर जा रहे थे पर पांच पायदान चढ़ने के बाद ही तुमने मुझे नीचे उतार दिया था? उस दिन हम दोनों कितनी देर तक हँसते रहे थे?

    पहाड़ के नीचे का जंगल और दूर दिख रहा शहर और हमारे आस पास के पहाड़ हमारी प्रेम कहानी के गवाह थे!

    अगर कहीं दुनिया में स्वर्ग था तो वहीं उस पहाड़ी पर था, लेकिन आज इस पहाड़ी को देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता है।

    आज इस पहाड़ी पर सीमेंट की सीढ़ियां बन गयी हैं, हर तरफ सैलानी ही सैलानी दिखते हैं,

    चाय और खाने पीने की बहुत सी दुकानें खुल गयी हैं और कई जगहों पर गाड़ियां खड़े करने की व्यवस्था कर दी गयी है।

    आस पास पार्क और छोटे छोटे मकान बन गए हैं और सुबह से शाम तक सैलानी खाते पीते और चीजें खरीदते रहते हैं।

    अगर कुछ नहीं बदला है तो वो है हमारा ये पेड़। और इसपर खुदे हुए हम दोनों के नाम!

    हाँ, राज! बस हमारा पेड़ ही वो एक चीज है जो नहीं बदली है।

    इसिलए मैं प्रेम को इसी पेड़ के नीचे अंत करना चाहती थी। इसी पेड़ के नीचे जहाँ से प्रेम शुरू हुआ था।

    लेकिन गलती कहाँ हुई थी? गलती कैसे हो गयी थी? मैं उन संकेतों को नहीं देख सकी थी इसलिए मैं खुद को ही दोषी मानती हूँ के मैं उन संकेतों को देख ना पायी!

    जब आप घंटी बजने के बाद अपने फ़ोन को उठाने के लिए कूदकर खड़े हो जाते थे और फ़ोन सुनने के लिए बाहर भाग जाते थे तो मैं तुमपर हंसती थी और तुमको चिढ़ाती थी।

    तुम फ़ोन पर आये हुए मेसेज पढ़ने के बाद तुरंत ही डेलीट कर देते थे तब भी मैं तुमको चिढ़ाती थी।

    तब मुझे ज़रा सी भी शंका नहीं थी के वो ही मेसेज भेजती थी और वो ही तुमको फ़ोन करती थी।

    मुझे तभी समझ जाना चाहिए था जब तुम व्यापार के सिलसिले में जल्दी जल्दी शहर से बाहर जाने लगे थे और दो दो दिन घर से दूर रहने लगे थे!

    मुझे तो तभी महसूस कर लेना चाहिए था जब तुम मुझे छूते थे लेकिन तुम्हारे स्पर्श में वो उत्तेजना नहीं होती थी

    उसी बैडरूम में जहां हम हजारों बार एक दूसरे के स्पर्श को पाकर सुख के सागर में डूब चुके थे। उस बिस्तर पर जहां हमारी आत्माएं और शरीर कई बार मिल चुके थे।

    मैं तुम्हारी आँखों में भी ये नहीं पढ़ सकी के अब उन आँखों में मुझको देकर चमक नहीं आती थी!

    मैं तब भी नहीं समझी थी जब तुम मेरा नाम लेकर मुझे पुकारते थे तो तुम्हारी आवाज में वो ख़ुशी नहीं होती थी जो पहले हुआ करती थी।

    मुझे उन संकेतों को पढ़ लेना चाहिए था, लेकिन मैं तो प्रेम में अंधी थी, मेरे प्यारे राज!

    लेकिन क्या कारण था के तुम मुझसे दूर हो गए? नहीं, मुझे जवाब मत दो जरूरत नहीं है! मैं जानना नहीं चाहती हूँ!

    राज, जीवन को पूरा एक चक्र घूमना ही होता है! उसी जगह पर तलाक के कागज़ों पर दस्तखत करने पड़ते हैं जहां शादी की अंगूठी पहनाई जाती है!

    तुम मुझे मूर्ख कहते थे! लेकिन तुमने हमारे प्रेम को बचाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की!

    अगर तुम्हारे शब्दों में कहूँ तो मैं अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करके भी प्रेम को नहीं बचा सकती थी और तुमको रोक नहीं सकती थी!

    तुम तो चिल्लाकर बोले थे,अब सब खत्म हो गया है! समझ रही हो, तुम? अब हमारे बीच कुछ नहीं बचा है!

    मैं जानती हूँ, राज! मैं तो उसी दिन समझ गयी थी के सबकुछ खत्म हो गया था जिस दिन आशा ने मुझे बताया था के उसने तुमको उस रंडी के साथ बैंगलोर में देखा था!

    लेकिन मैंने आशा की बात पर यकीन नहीं किया था क्योंकि मैं तब भी तुम्हारे प्यार में अंधी थी!

    मेरे प्यार, मैंने उस दिन भी यकीन नहीं किया था जिस दिन तुमने अपने ही मुंह से उसका नाम लिया था मेरे ही सामने मेरे ही बैडरूम में!

    तुमने कितने साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया था के तुम उस रंडी से प्रेम करते थे! तुमने ये भी कहा था के तुम मुझसे प्रेम नहीं करते थे।

    लेकिन फिर मुझे आभास होने लगा था के सब कुछ खत्म हो गया था हमारे बीच!

    प्रेम सिर्फ एक ही बार होता है, राज! तब हालत उस जगह पहुँच गए थे जहां या तो मैं रहती या फिर वो चुड़ैल!

    हमारी शादी के इतने वर्षो के बाद तुमने मुझसे कितना साफ़ साफ़ कह दिया था के तुम उसे प्रेम करते थे!

    फिर तुमने अपनी स्वतंत्रता के लिए मुझे अपना घर और बहुत से पैसे देने की बात कही थी! तुम मुझसे किसी भी हाल में स्वतंत्र होना चाहते थे।

    बस उस दिन ही मैं बिलकुल खाली हो गयी थी! मैं तो हमेशा के लिए तुमसे ही जुडी रहना चाहती थी, राज!

    मैं और भी कोशिश करना चाहती थी! तुम यकीन नहीं करोगे के मैं कितनी रातों को नहीं सोयी और सिर्फ यही सोचती रही के तुमको वापिस पाने के लिए मैं क्या करूँ!

    लेकिन गहराई से मुझे पता था। जानती थी कि तुम बहुत दूर थे, हमेशा के लिए चले गए थे।

    मैं यह भी सोचती थी कि क्या शुरू से ही कुछ सही था।

    मेरे जीवन के पंद्रह साल बस एक दिन में गायब हो गए। और फिर, मैंने तुम दोनों को एक साथ देखा।

    तुम दोनों एक दूसरे का हाथ थामे हंस रहे थे और लोग तुमको देख रहे थे।

    उस दिन मुझे तुमसे घृणा होनी शुरू हो गयी थी! उस दिन ही मैंने निर्णय ले लिया था।

    आशा को मेरी ईमेल मिल चुकी है और वो शायद बहुत दुखी भी है क्योंकि आशा मेरी सबसे अच्छी सहेली है।

    वो तुमको इस तरह से मुझे छोड़कर चले जाने नहीं देगी। वो चाहती है के मेरी प्रेम कहानी को दुनिया उसके टेलीविज़न चैनल पर देखे!

    आज मैं इस पेड़ के सामने खड़ी हूँ और ये सबकुछ कह रही हूँ। तुमने तलाक के कागज़ पर मेरे दस्तखत तो ले लिए हैं पर अब तुम आगे के लिए तैयार हो जाओ।

    हमारा बावर्ची, हमारा माली, हमारा ड्राइवर सब मेरे पक्ष में गवाही देंगे।

    यहां तक के पेड़ के सामने की उस चाय की दुकान पर बैठे लोग भी मेरे पक्ष में ही गवाही देंगे क्योंकि वो लोग मुझे और तुमको अभी इस पेड़ के नीचे खड़े देख रहे हैं!

    हर कोई दो मिनट तक टेलीविज़न पर आकर प्रसिद्द होना चाहता है

    राज, लोग तुमको यहां से घसीट कर पीटते पीटते ले जाएंगे! तुम और तुम्हारी वो रंडी!

    तुम्हारे चेहरे पर अस्मजस और भय के भाव् साफ़ दिख रहे हैं, राज!

    मैं तुम्हारे सामने ही इस पहाड़ी से नीचे कूद रही हूँ और तुम चीखते चिल्लाते ही रह जाओगे! मेरी अंतिम चीख इन पहाड़ियों में गूंजेगी!

    और अब तलाक के कागज़ भी तुम्हारे किसी काम के नहीं हैं क्योंकि अब तुमको उन कागज़ों की जरूरत नहीं होगी!

    काश मैं भी अखबारों में कल की मुख्य खबर पढ़ सकती: "प्रसिद्द उद्योगपति राज कृष्ण ने अपनी पत्नी को पहाड़ी से नीचे धक्का देकर उसकी ह्त्या कर दी!

    पत्नी ने अपनी अंतिम चिट्ठी में पुलिस को कल ही लिखा था के उसका पति उसको पहाड़ी से धक्का देने के लिए आखरी बार पहाड़ी पर बुला रहा था!"

    मैं अब पहाड़ी से नीचे कूद रही हूँ, राज! इतना कहने के साथ ही सब खत्म हो गया। अगले दिन राज जेल में था और।

    Chapter 2

    महारत

    मालूम ही नहीं चला के कब बच्चे बड़े हो गए और जिम्मेवारियां बढ़ सी ही गयी! बड़ी बेटी की यूनिवर्सिटी की दाखिले की फीस के लिए जरूरी पैसों में अब भी बीस हज़ार रूपए की कमी थी!

    बहुत हाथ पाँव मारे और इधर उधर माँगा पर बात नहीं बनी! पत्नी ने सलाह दी,गाँव में हमारे हिस्से की जमीन को ठेके पर दे दीजिये और एडवांस में पैसे मांग कर देख लीजिये!

    उसकी सलाह मानकर मैं गाँव पहुँच गया और बड़े भाई से इस बारे में बात करनी चाही पर बड़ी भाभी हमेशा की तरह ही हमारी बातचीत के बीच आ गयी और कुछ ना कुछ बोलने लगी।

    आखिर बड़े भाई को विषय ही बदलना पड़ा! अक्सर ही जब मेरे और बड़े भाई की बातचीत के बीच में भाभी आ जाती थी तो बड़े भाई विषय बदल देते थे।

    मैं रात भर ही परेशान रहा के पैसों के बारे में अब किससे बात की जाए। सारी रात बस सोचते सोचते ही गुजर गयी।

    अगली सुबह मेरी नींद जल्दी ही खुल गयी! खिड़की से बाहर देखा तो बूढ़ी माँ दूर उगे हुए पौधों को एक जग से पानी दे रही थी।

    मुझसे रहा नहीं गया और मैं तुरंत ही उठकर बाहर जाकर माँ के पास खड़ा हो गया।

    मैंने कहा,"इतना बड़ा परिवार है और सुख से परिवार में इतने सारे लोग हैं, पर माँ, इतनी भारी बाल्टी में पानी भरकर लाकर जग से इन पौधों को सींचने का ठेका आपने ही लिया

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