Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

वो आ रहा था: डरावनी कहानियाँ
वो आ रहा था: डरावनी कहानियाँ
वो आ रहा था: डरावनी कहानियाँ
Ebook225 pages1 hour

वो आ रहा था: डरावनी कहानियाँ

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

वो आ रहा था
कार में मेरे साथ
एक रात के लिए
आखरी बार
अच्छा दिल
दाहगृह
दोस्तों में प्यार
सातवां बेटा
शांत रात
मैं सिर्फ एक भूत को जानता हूँ
आज के खेल
क्या मैं मर गया हूँ
क्या वो हकीकत थी
सैलून में
रेनकोट
मैं हवा में था
फॉलो मी
डैडी ख्याल रखेंगे
रेलगाड़ी का डिब्बा
मैं तुम्हें जीने दूंगा
मेरी बहन
नए पड़ोसी
तुम मेरे टाइप के नहीं हो
माचिस है?
तुम चलो मैं इंतजार करूँगा
अलमारी में आइना
पानी का गिलास
दरवाज़ा खोलो
मेरी वैलेंटाइन बनोगी
बंद दरवाजों के पीछे
फार्महाउस

इस कहानियों की किताब को तभी लीजियेगा अगर आपका दिल मजबूत है। ये कहानियां रात में पढ़ेंगे तो शायद आप रात भर जागते ही रह जायेंगे क्योंकि इन कहानियों में से बहुत सी ऐसी हैं जिनके बारे में शायद आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।

इनमें से कई कहानियां सच्ची हैं और आज तक उनका रहस्य खुला नहीं है। तो बस अगर आप रहस्य, रोमांच, भूत प्रेत और अदृश्य दुनिया की कहानियों में आनंद लेते हैं तो बस फिर तुरंत ही इस किताब को डाउनलोड कर लीजिये।

अगर हिम्मत और खुद पर यकीन है तो ही इस दुनिया में प्रवेश कीजियेगा!

धन्यवाद

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJan 15, 2023
ISBN9798215245699
वो आ रहा था: डरावनी कहानियाँ
Author

Students' Academy

Easy study guides for the students of English literature.

Related authors

Related to वो आ रहा था

Related ebooks

Reviews for वो आ रहा था

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    वो आ रहा था - Students' Academy

    वो आ रहा था

    मेरा फ़ोन कितनी बार बजा था? सात बार? आठ बार?

    फ़ोन करने वाला फ़ोन पर मुझे ऐसी ऐसी बातें कहता था के मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगता था और मैं बहुत ही भयभीत हो जाती थी लेकिन मैं हर बार ही फ़ोन उठा लेती थी।

    आप सोच रहे होंगे के मैंने इसके बारे में किसी को बताया होगा, नहीं मैंने ऐसा नहीं किया! ऐसा नहीं था के मैं अकेली थी।

    कमरे में बहुत से लोग थे। एक आदमी और था! काला चश्मा लगाए हुए! कोई प्रसिद्द रैप गायक था। मुझे उस भीड़ में भी भय लग रहा था।

    मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे मैं एक ऐसी रेलगाड़ी से यात्रा कर रही थी जो हमको नरक में ले जा रही थी और मैं चिल्ला रही थी लेकिन कोई मेरी तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा था।

    मैंने एक बार फिर से फ़ोन की स्क्रीन को देखा। वही अज्ञात फ़ोन करने वाला था। मैंने फ़ोन को फिर से कान से लगा लिया और पूछा,कौन बोल रहा है?

    बहुत ही गंभीर आवाज सुनायी दी,तुम बहुत जल्दी ही टुकड़े टुकड़े हो जाओगी! ये पार्टियां भी अंत हो जाती हैं और फिर जीवन का भी अंत हो जाता है!

    मैं दौड़कर ऊपर के कमरे में चली जाना चाहती थी और कम्बल के नीचे अपने सर को छुपा लेना चाहती थी। मुझे किसी के आने का आभास डराने लगा था। वो काले चश्मे वाला मुझे ही घूरे चला जा रहा था।

    मेरे दिमाग में वहां बज रहा संगीत किसी हथौड़े की तरह बजने लगा था। रह रहकर मेरी आँखों में बिजली की चमक सी प्रतीत हो रही थी। मैं सोचने लगी कौन मुझसे घृणा करता था! मुझे लगा के जैसे कोई मुझे कीमा बनाने वाली मशीन में डालने वाला था।

    किसी को भी मेरी परवाह नहीं थी किसी का भी मेरी तरफ ध्यान नहीं था। क्या मैं किसी की परवाह करती थी! हाँ मैं तो लोगों की परवाह करती थी। मैं जीना चाहती थी पीना चाहती थी और पार्टियों में अपरिचित नौजवानो को चूमना चाहती थी।

    तभी मैंने उस आदमी को उसका फ़ोन दूर रखते हुए देखा। मैंने कहा,हे तुम किसी को बार बार फ़ोन करके क्यों डराते हो? मैं जानती थी के वो मैंने सिर्फ अनुमान ही लगाया था क्योंकि मुझे फ़ोन करने वाला वो आदमी नहीं था।

    वो आदमी मेरी तरफ देखकर मुस्कुराया और फिर एक सुन्दर सी लड़की की कमर में हाथ डालकर उसको अपने साथ वाश रूम में ले गया। अब मैं और भी अकेली महसूस करने लगी।

    मुझे लगा के मैं किसी एक बहतु बड़े कटोरे में एक मकई के दाने की तरह थी। जब दूध आएगा उस कटोरे में तो मैं डूब ही जाउंगी।

    फ़ोन फिर बजा,मैं आ रहा हूँ! मैं तुम्हारे टुकड़े टुकड़े कर दूंगा!

    मैं भूल गयी के मैं क्या कर रही थी। पार्टी मेरे घर में ही हो रही थी और बहुत से लोग मजे ले रहे थे। मैं रसोई की तरफ चली गयी।

    मैंने देखा के रसोई में कुछ लड़कियां मेरी मम्मी के चीनी मिट्टी के प्यालों में ड्रग डालकर प्रयोग कर रही थी। मैं हंसने लगी। उन्होंने मुझे ऐसा आभास कराया जैसे के मैं पूरी तरह से असफल थी।

    मम्मी डैडी ने दो दिन के लिए घर से बाहर दूसरे शहर में छुट्टियां मनाने जाने से पहले मुझे लंबा सा भाषण दिया था के मुझे पीछे से घर का ख़याल रखना था। मैं घर में अकेली थी इसीलिए मैंने दोस्तों को बुला कर उस पार्टी का आयोजन किया था।

    मैं कामना करने लगी के काश मम्मी डैडी मुझे भी अपने साथ ले गए होते! वो लडकियां कमरे से बाहर चली गयी। मैंने बत्ती बंद कर दी क्योंकि मैं आसानी से शिकार नहीं बनना चाहती थी।

    मैंने नल से पानी पिया लेकिन मुझे उसका स्वाद बहुत बुरा लगा। फ्रिज की हम हम की आवाज आ रही थी।

    किसी ने पार्टी में बज रहा संगीत बंद कर दिया था और लोग धीरे धीरे घर से बाहर जा रहे थे। तभी फ़ोन फिर आया,कुछ देर में तुम बिलकुल अकेली हो जाओगी!

    मैंने अपने फोन को उलटा करके डाइनिंग टेबल पर रख दिया। मुझे लगा जैसे मैं किसी फिल्म में काम कर रही थी। मुझे फिल्में तो पसंद थी पर उस प्रकार की नहीं!

    मेरा फ़ोन फिर से बजा लेकिन इस बार आवाज नहीं एक मेसेज आया था। मेरे मम्मी डैडी का मेसेज था के वो लोग कुछ ही देरी में वापिस आ रहे थे। मैं मुस्कुरा दी।

    लेकिन विडम्बना ये थी के जिस चीज से मैं भयभीत थी वो तो तब भी मेरे पीछे ही थी!मेरे मम्मी डैडी को देरी हो जाएगी!

    तभी अचानक रसोई के फर्श पर हत्यारे की छाया कुछ इस तरह से फ़ैल गयी जैसे बर्तन से गिरकर फर्श पर दूध फ़ैल जाता है।

    मेरे मुंह से भयानक चीख निकल गयी और मै रसोई से बाहर भागने लगी। परन्तु तभी मुझे किसी ने पीछे से बाहों में जकड लिया।

    मैं बेहोश होने ही वाली थी के मुझे जानी पहचानी सी परफ्यूम की खुशबु आयी। वो परफ्यूम तो मेरा बॉयफ्रेंड माइकल प्रयोग करता था।

    तभी मुझे माइकल की हंसी की आवाज आयी और फिर मेरे कान में फुसफुसाहट हुयी,लो मैं आ गया। मैं हत्यारा हूँ। लेकिन तुम्हारे डर का हत्यारा। तुम हमेशा ही अकेले में डर जाती थी इसीलिए हर रोज अकेले में दोस्तों को बुलाकर पार्टियां करती रहती थी इसलिए मैंने आज तुमको बार बार बार फ़ोन पर डराकर तुम्हारा डर निकाल दिया है।

    मैंने मुड़कर देखा तो माइकल मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था। मैं बस इतना ही कह पायी,थैंक यू माइकल। उन्नीस बरसों से मैं अकेले में बहुत ही डरा करती थी और हमेशा ही ये सोचा करती थी के कोई मुझे मारने आ रहा था पर आज तुमने मुझे मेरे भय से मुक्त कर दिया है। थैंक यू सो मच! मैंने ऊपर उठकर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

    Chapter 2

    कार में मेरे साथ

    मैंने कहा,आपने अपना नाम नहीं बताया!

    लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया, इसलिए मैंने भी जिद नहीं की। अगर वो चाहेगा तो खुलकर बातें करेगा मैं बस यही सोच रही थी।

    वो करीब तीस किलोमीटर पीछे दिल्ली के बाहर की एक जगह से मेरी कार में बैठा था और उसको भी आगे जाना था मेरी ही सड़क पर। मेरा घर दिल्ली के बाहर ग्रामीण क्षेत्र में था।

    शकल से मैं उसको पहचानती थी क्योंकि हर शुक्रवार को जब मैं उस रास्ते से घर जाती था वो मुझे उसी सड़क पर दिखता था। उस स्थान के पास ही एक पुरानी सी चर्च थी।

    वो हमेशा ही उसी जगह पर खड़ा होता था जहाँ से आज मैंने उसको अपनी कार रोककर कार में बैठाया था।

    मुझे थोड़ा दुःख हुआ था के बेचारा उस सुनसान सड़क पर अकेला खड़ा था इसीलिए मैंने उसको अपनी कार में बैठाकर उसकी मदद कर दी थी। वो मुझे कहीं खोया हुआ सा लगा, बहुत ही अकेला।

    मैं अक्सर ही लोगों की मदद करने के लिए सड़क के किनारे किसी गाडी के इंतजार मे खड़े लोगों को अपनी कार में बैठा लिया करती थी।

    कार में पीछे की सीट पर थैलों में सब सामान और राशन रखा था जो मैं शुक्रवार को घर ले जा रही थी। मैं हफ्ते मे एक दिन ही शॉपिंग करती थी।

    वो मेरे बगल वाली सीट पर एकदम चुपचाप बैठा था। उसकी चुप्पी मुझे किसी कब्रिस्तान की शांति जैसी ही महसूस हो रही थी ना जाने क्यों!

    जैसे ही वो कार में बैठा था वो अपने साथ बहुत ही सुन्दर फूलों की खुश्बू भी लाया था। वो खुशबु लैवेंडर के फूलों की खुशबु थी।

    उसके बैठते ही वो खुशबु मेरी कार में फ़ैल गयी थी। मुझे वो खुश्बू बहुत अच्छी लगी थी। देखने से तो वो कोई बहुत ही भला इंसान दिख रहा था।

    मैं थोड़ी सी हैरान थी क्योंकि उसने मुझे ये नहीं बताया था के उसको कहाँ तक जाना था। हाँ वो कुछ गुनगुना रहा था। उसकी आवाज मुझे बहुत ही संगीतमय प्रतीत हुई। मुझे लगा के वो बाइबिल के किसी श्लोक को गुनगुना रहा था।

    तभी मैंने कहा,अगर बुरा ना माने तो क्या मैं कुछ पूछ सकती हूँ? मैंने कार को थोड़ा सा धीमा कर दिया था।

    जब उसने कुछ नहीं कहा तो मैंने फिर कहा,मैंने कई बार आपको उसी जगह पर सड़क के किनारे खड़ा देखा था। वो कोई बस स्टॉप तो हैं नहीं। क्या आप वहां खड़े होकर शहर जाने वाली किसी बस का इंतजार करते हैं?

    इस बार वो बोला,हाँ मैं इंतजार करता हूँ। हमेशा ही इंतजार करता हूँ! उसने गुनगुनाना बंद कर दिया और चुपचाप बैठ गया।

    मैंने नजर घुमाकर उसके चेहरे को देखा लेकिन वो आगे सड़क को देख रहा था। उसके दाढ़ी वाले चेहरे पर हलकी सी चमक थी।

    मैं उसको बताना चाहती थी के उसको बसों के आने जाने का एक टाइम टेबल ले लेना चाहिए लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा।

    वो फिर बोला,मैं हमेशा ही इंतजार करता हूँ। हमेशा इंतजार।

    तभी अचानक मेरे शरीर में सनसनी सी दौड़ गयी। मैंने तुरंत ही ब्रेक लगाकर कार रोक दी सड़क के किनारे फुटपाथ के साथ। मैं उस आदमी से भयभीत हो गयी थी।

    मैंने कहा,हे भगवान्! मैं अपने चाय के पैकेट तो मार्किट में उस दुकान पर ही छोड़ आई हूँ! मुझे उनको लेने वापिस जाना होगा! मेरे हाथ काँप रहे थे।

    मैं इंतजार कर रही थी के वो दरवाजा खोलकर कार से उतर जाएगा लेकिन मैं एकदम सन्न रह गयी क्योंकि वो तो मेरी बगल वाली सीट पर था ही नहीं!

    वो गायब हो गया था!

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1