अंतर ज्वालाएँ (अतीत के बिंब)
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About this ebook
#. इस पुस्तक में हमारी संस्कृति व साहित्य में उपलब्ध पौराणिक कथाओं को, काव्य नाटिकाओं के रूप में, एक बिल्कुल ही नए नज़रिए से प्रस्तुत किया गया है।
#. विभिन्न नाटकीय परिस्थितियों का निर्माण करने वाले, मानव मन में छुपे हुए, विविध भावों का, बहुत ही बेहतरीन तरीके से चित्रण हुआ है।
जो हमारे दिलो-दिमाग को बहुत सुकून देने वाला लगता है।
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अंतर ज्वालाएँ (अतीत के बिंब) - Indu Parashar
परिचय
श्रीमती इन्दु पाराशर का जन्म 27 अक्टूबर 1954 को पिपरिया मध्य प्रदेश में हुआ। सन् 1977 में सागर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। लगभग 20 साल इन्दौर में अध्यापन कार्य किया। इसी दौरान, विज्ञान विषय को सरल, सुरुचिपूर्ण और मनोरंजक ढंग से कविताओं में रचकर एक अभिनव प्रयोग किया, जिसमें विज्ञान विषय बच्चों के लिए सुगम और ग्राह्य बनाया गया। यह प्रयोग मध्यप्रदेश काउंसिल ऑफ साइंस एंड टैक्नोलॉजी भोपाल के सहयोग से सफलतापूर्वक लगभग तीस हज़ार (30,000) बच्चों तक पहुँचाया गया जिसके लिए आपको सन् 2001 में राज्य स्तर पर श्रेष्ठ नवाचार के लिए पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुआ। आई.आई.एम.अहमदाबाद में सन् 2015 एवं 2019 में ‘‘अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ऑन क्रिएटिविटी एवं इनोवेशन एट ग्रास रूट’’ में सहभागिता के लिए आमंत्रित किया गया।
फिल्म एवं प्रकाशन-
2008 में पिंकू कुन्नी नानी के घर जाएँगे
नाम से एक एनिमेशन फिल्म का निर्माण किया।
पुस्तकें-
1) कविता में विज्ञान भाग-1.
2) भाव गीता
3) काव्य मंजूषा
4) अंतर ज्वालाएँ
5) बच्चों देश तुम्हारा
6) हरिवंश राय बच्चन एक अपराजित योद्धा
7) विचार वृक्ष
8) भाव सरिता
9)कविता में विज्ञान-2 पर्यावरण ज्ञान
पुरस्कार व सम्मान-
विभिन्न राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय साहित्य संस्थानों से काव्य कौस्तुभ 2016, विद्यावाचस्पति 2016, काव्य कलानिधि 2017, ज्ञान रत्न 2018, शब्द प्रवाह साहित्य अभ्युदय 2018, आदि कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से संबद्ध पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी व कविताएँ प्रकाशित।
संपर्क सूत्र-
ई-2406 सुदामा नगर
इंदौर (म. प्र.) 452009
फोन नंबर 0731-2484643
मो.नं. 94250 62658
ईमेल-induparashar10@gmail.com
भूमिका
इस पुस्तक में प्रस्तुत काव्य नाटिकाएँ हमारे गौरवशाली अतीत का प्रतिबिम्ब है। इन सभी नाटिकाओं में हृदय में एक टीस है, दर्द है, एक व्यथा है।
द्रोण की व्यथा में द्रोणाचार्य के अनकहे दुख और अंतरद्वंद्व को व्यक्त किया गया है और शायद ऐसा ही कुछ, वास्तव में कारण रहा होगा। अकारण कोई भी गुरु अपने किसी प्रतिभाशाली छात्र के प्रति कैसे इतना निर्मम हो सकता है? मेरा मन इस बात को कभी स्वीकार नहीं कर सका, अत: हमेशा इस बिन्दु पर आकर द्रोण के प्रति कुछ अजीब सी भावना मन में उठती थी। लगा जरूर कोई विवशता रही होगी जिसने इतने महान गुरु को इस कृत्य के लिये विवश किया। मानती हूँ, महानता, आर्थिक विवशताओं के सामने घुटने नहीं टेकती, किन्तु मानव मन किन्ही कठिन क्षणों में कमजोर पड़ सकता है और हो सकता है मात्र परिहास के लिये कहे गए शब्दों को एकलव्य ने बिना सोचने का अवसर दिये कार्य में परिणित कर दिया