Katha-Gorakhpur Khand-2 (कथा-गोरखपुर खंड-2)
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मरो वै जोगी मरौ, मरण है मीठा ।
मरणी मरौ जिस मरणी, गोरख मरि दीठा
यहां गोरख, अहंकार को मारने की बात करते हैं। तो गुरु गोरखनाथ की धरती की गमक में गमकती कथा - गोरखपुर की यह कहानियां दिल की घाटियों में संतूर की तरह बजती हैं। कथा - गोरखपुर की खास खासियत यह है कि कमोवेश सभी कहानियां गोरखपुर की माटी की खुशबू में तर-बतर हैं। इन कथाओं में गोरखपुर की माटी ऐसे बोलती है जैसे मां बोलती है। एक से एक नायाब कहानियां हैं इस कथा - गोरखपुर में । गोरखपुर की माटी की महक इन कथाओं में महकती, गमकती और इतराती हुई इठलाती मिलती है।
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Katha-Gorakhpur Khand-2 (कथा-गोरखपुर खंड-2) - Dayanand Pandey
तीन टांगों वाली कुर्सी
मेरी मर्जी जिसको दूँ।
पैंट ऊपर सरकाते हुए उसने कहा। उसकी सारस - सी लम्बी गर्दन का हिला देखकर सामने खड़े लोग एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। कमर पर दोनों हाथ रखे वह झुककर खड़ा था और उसकी पुतलियाँ डबरे में बैठे जुगाली करती बूढ़ी भैंस - सी धीरे-धीरे हिल रही थीं।
भाई प्रमोद, मर्जी तो तुम्हारी ही चलेगी लेकिन तुम्हारी डायरी में हमारा भी नाम तो लिख जाना चाहिए।
पड़ोसी राय ने बिगड़ती हुई स्थिति को हँसी में बदलना चाहा।
"डायरी में अब मैं किसी आदमी का नाम नहीं- नमक, तेल का हिसाब लिखता हूँ। प्रमोद के मुहर्रमी चेहरे पर हँसी की पपड़ी उभर आयी और उसने लपककर राय के हाथ से पर्चा ले लिया।
तुम लोग कहाँ आ गये, जी ?
अगल-बगल खड़े बच्चों को झिड़कते हुए उसने गरदन घुमाई और दरवाजे के पर्दे को कांपता देखकर तेजी से घर में घुस गया।
हाँ कह देने में क्या जबान ऐंठ जा रही थी? मर्जी- मर्जी- मर्जी-कभी कुछ किया है अपनी मर्जी से?
झल्लाती हुई पत्नी आँगन में चली गयी।
भोंपू, जरा तौलिया इधर देना।
छोटे लड़के को उसने पुकारा। जब भी पत्नी चिढ़ी होती यह सम्बोधन वह काम में लाता था। इससे उत्तेजित होकर पत्नी दो-चार शब्द कहती थी फिर मुँह फेरकर मुस्करा देती थी और सारा झगड़ा खत्म हो जाता था लेकिन इस बार वह भन्नाती हुई गुसलखाने में चली गयी।
प्रमोद को लगा कि ढंग अच्छे हैं- बात बैठ सकती है। वह बड़बड़ाने लगा- पता नहीं रविवार और मक्खियों का क्या रिश्ता है। सुबह से शाम तक भिनभिन करती रहती हैं- कमबख्त एक पल भी चैन नहीं लेने देतीं। जी में कि जाकर रेल की पटरी पर सो जाऊँ।"
जाओ, सो जाओ। डराते किसे हो ? तुम्हारे दिए सुखों की सुधि में जिन्दगी गुजर जाऐगी।
पत्नी की आवाज आते ही प्रमोद ने दोनों हाथ उठा लिये।
क्या कर रहे हैं, प्रमोद जी ?
अरे, सिन्हा बाबू आइए, आइए। मक्खियाँ मार रहा हूँ, जी।
उसने हँसने की कोशिश की।
ऑफिस की कोई नयी खबर ?
सिन्हा के प्रश्न से उसकी सोई पुतलियाँ चमक उठीं। पानी में भीगे अमेरिकन गेहूँ-सा चेहरा चमक उठा, तीन टांग वाली कुर्सी पर सिन्हा को बिठाते हुए उसने होठों पर कई बार जबान फेरी।
नवल, एक चाय लाना।
मोढ़े पर बैठते हुए उसने कहा।
‘रहने दो। अभी-अभी चाय पी है।"
"तो क्या हुआ? एक कप और सही। हाँ, मैं तो आपके पास ही आ रहा था। कल गुप्ता ने साहब से आपकी चुगली खाई है। सेक्सन में बोल रहा था - सिन्हा ने साहब से कहा है कि गुप्ता पूरे दिन महफिल लगाये रहता है और आपके नोट्स की गलतियाँ निकालकर आपकी खिल्ली उड़ाया करता है।
और क्या - क्या कह रहा था?
सिन्हा ने बेचैनी में पूछा।
यही कि सिन्हा हमारा ‘कॉनफीडेशियल’ रिपोर्ट खराब कराना चाहता है। अपनी तरक्की के लिए वह अपने बाप का भी गला घोंट सकता है।
सिन्हा उत्तेजित हो उठे - उसकी नस्ल में ही फर्क है। जिस पत्तल में खाता है उसी में छेद करता है। वैसा कमीना आदमी ढूँढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। अच्छा, जरा साहब से मिल लूँ।’
चाय तो पी लीजिए। क्या देर है,
प्रमोद हैं - हें करता रहा और सिन्हा तेजी से बाहर निकल गया।
नवाब साहब का हुक्म है -- चाय लाओ, दूध लाओ। ... लीजिए, पीजिए। दोस्तों को पिलाइये।
पत्नी ने देगची फर्श पर पटक दी। वह छटक कर एक तरफ खड़ा हो गया।
"यहाँ भोंपू बजता है, मक्खियाँ भिनभिनाती हैं.... चले जाओ, जहाँ तितलियाँ गुनगुना रही हैं। भौहों के बाल पक गये लेकिन कुत्ते की दुम सीधी नहीं हुई... थू...। पत्नी ने आँगन में थूक दिया। वह सिर झुकाये गरदन हिलाने लगा। बच्चों ने किताबों में मुँह छिपा लिया।
तुम लोग कान खोल, क्या रामायण की कथा सुन रहे हो।
प्रमोद ने बच्चों को झिड़का। वे सहम गये। किताबें उनके मुँह के और निकट पहुँच गयी।
"उन बेचारों पर क्या बुखार उतार रहे हो? जाओ, अभी दवाखाना खुला हुआ है।
हूं... हूं... हूं करता हुआ वह बन्दर - सा दाँत कटकटाने लगा। पत्नी का पारा और चढ़ गया- पता तो चलता अगर कोई सिटकनी खोलने वाली मिली होती। तब आँखें बन्द कर फूलों का रंग देखने का मजा मिलता। चौबीसों घंटे चुगली करना और जूठी हॉडी ढूढ़ना- शर्म भी नहीं आती।" उसका चेहरा भट्टी-सा दहक उठा - जिससे बचने के लिए प्रमोद तौलिये से मुँह रगड़ने लगा। दुम हिलाते एक मरियल-सा कुत्ता उसके समाने कूँ... कूँ करने लगा।
प्रमोद उस पर बाज की तरह झपटा और कुत्ता कांय - कांय करते भाग चला। वह खिलखिला पड़ा- " आये थे तो वोट माँगने। कहाँ भगे जा रहे हैं, अपना चुनाव चिन्ह तो बताते जाइये। नवल, अब कोई आवे तो बताना- पापा घर में नहीं हैं। उसने दरवाजा बन्द कर लिया। खिड़की के पल्ले उठगाकर दीवाल में लगे आईने में चेहरा देखा। लम्बी नाक को पकड़कर जोर से हिलाया - नाक न होती तो जुकाम न होता - अपने अनोखे तर्क पर वह हँस उठा।
अब तो भीड़ घट गयी होगी ? राशन आ जाता। शीशा तो बाद में भी देखने को मिल जाऐगा।
पत्नी ने भीगे स्वर में कहा।
वह शीशे से अलग हट गया। आँखें मलते हुए बोला- नवल, लाओ झोला वगैरह। उसने सोचा- पत्नी झोला देने आयेगी तो कहेगा - एक झोला और चाहिए। इस बार मकई भी मिल रही है-- बिना मकई लिये चीनी नहीं मिलेगी। ‘वह खुश हो उठा - चलो तीन दिनों से टूटा पड़ा संवाद सूत्र तो जुड़ेगा।’
पखवारे के राशन का आखिरी दिन था। बड़ी मुश्किल से उसने पैसे का जुगाड़ बैठाया था। आठ बजे सिन्हा की बच्ची आ धमकी- चचाजी, मम्मी ने दस रुपये माँगे हैं- डैडी अभी-अभी कहीं चले गये हैं- आयेंगे तो वापस कर देंगे -- या ऑफिस में ले लीजिएगा।"
पत्नी ने इशारे से बुलाया - इन लोगों की आदत बड़ी खराब है। यदि आज राशन नहीं आया तो भट्ठी ठंडी पड़ जाऐगी। चीनी तो चार चम्मच भी नहीं है। वह गम्भीर हो गया। क्षण भर कुछ सोचता रहा फिर जैसे चौंकते हुए बोला- देखा जाऐगा। किसी भी हाल में आज राशन लेना है। और उसने कई तह मुड़े कागज के बीच से एक दस का नोट निकालकर बच्ची के हाथ पर रख दिया। पत्नी के भौहों पर बल पड़ गया लेकिन वह खामोश रही।
शाम को ऑफिस से जब वह मुँह लटकाये लौटा तो पत्नी ने कहा- जल्दी जाओ, अभी दुकान खुली होगी। इतनी देर कहाँ कर दी है? वह बिना बोले कपड़े उतारने लगा।
बोलते क्यों नहीं?" पत्नी ने तीखे स्वर में पूछा।
तबीयत खराब है।’ उसने धीरे से कहा।
पैसे दो। नवल, दौड़ जा बेटा।’ पत्नी ने हाथ फैला दिया। वह सहम गया।
सिन्हा मेल से बाहर चले गये।
भरी आवाज में वह बोला।
‘मेम साहब तो हैं? एक के चले जाने से क्या हुआ ? उनके पास दर्जनों। किसी से भी पचास - सौ ले सकती हैं। उनसे माँगने में क्या शर्म लगती है या डर लगता है कि पैसे माँगने पर हँसकर - हँसकर चाय नहीं पिलायेंगी। उचक-उचक कर नंगा शरीर नहीं दिखायेंगी? उसके होठ तेजी से काँप रहे थे,
मैं तो पहली ही भेंट में समझ गयी थी कि -- यह टाँग उठाये रहने वाली औरत है लेकिन यह क्या जानती थी कि कोई अपने बच्चों के पेट पर अय्याशी करेगा ?
"चुप रह बेहया। क्यों मुझे मारे डाल रही है। दाँत पीसते हुए प्रमोद ने कहा। पत्नी उबल पड़ी - दाँत क्या कटकटा रहे हो ? चबा जाओ सबको फिर मौज से देखना - पुतलियों का नाचना, छाती का उछलना, टाँगों का हिलना।’
कोई भी - सी गाली उसके मुँह में आई जिसे उसने दाँतों में पीस डाला।
"नवल, ये पैसे और कार्ड भी दे दे। पत्नी के स्वर में वह सचेत हो गया। बात शुरू करने का अवसर चूकता देख कर परेशान हो उठा। एक ख्याल आया कि पूछ लें कि यदि आटा मिलता हो तो लेगा कि नहीं ? लेकिन पत्नी को सीधे सम्बोधित करने का साहस नहीं जुटा पाया। हाथ में झोला लटकाये, थोड़ी देर तक किसी अच्छी बात की प्रतीक्षा करता रहा लेकिन जब अन्दर से कोई आहट नहीं मिली तो राशन कार्ड पढ़ने लगा - नौ यूनिट। पाँच पूरे, चार आधे। उसे कुछ थकान - सी महसूस हुई। कार्ड झोले में रखकर आँव-आँव-आँव करने लगा।
क्या हो रहा है, प्रमोदजी ! गुप्ता की आवाज से वह बेतरह चौंक गया। क्षण भर अवाक रहा फिर रूखे होठों पर जबान फेरते हुए बोला-
गाँधीजी की आरती उतार रहा हूँ।
‘ऐसी क्या बात है गुप्ता ने आश्चर्य प्रकट किया।
‘राशन लाने जाना है।’ उसने बहुत मासूमियत से कहा।
तुम्हारा भी जवाब नहीं। बोला, और क्या समाचार है ? अन्दर प्रवेश करते हुए उसने प्रमोद की पीठ पर हाथ रख दिया। "तुमसे सिन्हा क्यों नाराज है? वह मेरे पास गये थे। बता रहे थे कि तुमने उनसे कहा है कि मैं उनकी कॉनफीडेशियल खराब करा देना चाहता हूँ ताकि चीफ इंस्पेक्टर के चुनाव में बाजी मार ले जाऊँ।
हैं जी
, प्रमोद सकते में आ गया। गुप्ता ने स्थिति सँभाल ली - मुझे मानता था कि ये सारी खबरें सिन्हा के आप ने प्रेस की हैं।...
उनकी किसी से छिपी थोड़े है।’ प्रमोद ने साँसें जोड़ी कहने लगा- तुम्हारे आफिसियेंटिंग के लिए लिखा था लेकिन गुप्ता ने साहब को मना दिया - अन्दर का बहुत काला है। और भी कितनी छोटी बातें कि जिनको बताना मैं उचित नहीं समझता। मुझसे खोद - खोद कर पूछते रहे-- ऑफिस की कोई खबर ? मैं क्या बताता ? सो देखिये उन्होंने क्या रंग खिला दिये ? छोड़ो भी, क्या कम है कि हम सभी एक-दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं। सुनो, मैं समय बताने आया हूँ कि सिन्हा ने मैटनी शो देखने का प्रोग्राम बनाया है। उसकी वाइफ का कहना है कि यदि नवल की अम्मा चलेगी तो वह जाऐंगी वरना तो वे सिन्हा की वाइफ को देखती रह जाऐंगी और घर आकर एनासिन खाना पड़ेगा। वह मुस्करा पड़ा। प्रमोद होठ काटते हुए उसे देख रहा था। उसके चेहरे पर अजीब सी बेबसी थी। गुप्ता ने उसे टोका- क्या सोचते हो? पैसे की चिन्ता मत करना। उसने
पास" का प्रबन्ध कर लिया है। उनका कोई मित्र इण्टरटेनमेंट इंस्पेक्टर आया है। नवल की अम्मा, आप जरूर तैयार रहियेगा। हम लोग इधर से ही आ जाऐंगे। ठहाके लगाते हुए गुप्ता बाहर निकल गया।
प्रमोद ने पत्नी की तरफ देखा। वह भट्टी के पास गुमसुम बैठी थी। वह घबरा गया। यदि यह चलने को राजी नहीं हुई तो वे लोग क्या कहेंगे? मगर यदि यह चले भी तो क्या मिन्नी की मम्मी के साथ बैठ सकेगी ? यदि कहीं उनसे भिड़ गयी तो...
उसका सिर भन्ना उठा। वह धड़ाम से लँगड़ी कुर्सी में धंस गया। दरवाजे पर धीमी दस्तक पड़ी लेकिन वह अनसुनी कर आँखें मीजता रहा। दस्तक ज्यों-ज्यों तेज होती गयी उसकी बेचैनी बढ़ती गयी। वह एकदम उठा। झटके से पल्ले खोलकर बाहर निकला। उसका तेवर देखकर बाहर खड़े हुए ने भिखमँगे - सा चेहरा बना