महाराज जी समय से परे
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कहइ रीछपति सुनु हनुमाना. का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना. बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं. जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं..
कोई उन्हें महाराज जी नीम करोरी कहता है, तो कोई महाराज जी नीम करोली के नाम से जानता है, तो कोई उन्हें महाराज जी नीब करोरी कहता है, तो कोई उन्हें महाराज जी के नाम से पुकारता है तो कोई महाराज जी जी के नाम से. महाराज जी नीम करोरी के देश विदेश में कई आश्रम है. महाराज जी के देश और विदेश में करोडो भक्त है. मेरा ये पुस्तक लिखने का उद्देश्य सिर्फ लोगो तक अपने साथ हुयी महाराज जी की कृपा से अवगत कराना था.
मै क्या हूँ और मेरी क्या क्षमता है !! जो महाराज जी की महानता और कृपा के बारे में कुछ लिखू !! मै बस वो लिख रहा हूँ जो मैंने महसूस किया. मुझे इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा महाराज जी से ही मिली है. मै इस पुस्तक को पहली बार कैंची धाम से आने के बाद ही लिखना चाहता था. लेकिन अब मुझे लगता है कि तब तो शायद कुछ पन्ने भी न भर पाते.
मैंने इस पूरी पुस्तक में अब तक हुयी घटनाओ को जैसे के तैसा ही लिखा है. बस कुछ लोगो के नाम बदल दिए है. मैंने इस पुस्तक को लिखने में ढेरो गलतियाँ की होगी, बहुत सी चीजे आप को पसदं नही भी आयेगी. लेकिन मै जैसा हूँ और मुझे जैसा महसूस हुआ, मैंने उसी को शब्द देने की कोशिश भर की है. आप को जो पसंद न आये तो मुझे क्षमा कर दीजियेगा. इस पुस्तक को लिखने में कुछ दिन ही लगे है.
इसलिए संभव है कि कुछ शब्दों का प्रयोग अच्छा न हुआ हो,पर आप सिर्फ भावनाओ को पढियेगा. ईश्वर हमे किसी न किसी रूप में सन्देश देते ही देते है .बस जरुरत है उन संदेशो को समझने और उनके अनुसार कार्य करने की.ईश्वर कई बार हमे किसी न किसी माध्यम से प्रेरणा देते है और मै इस पुस्तक को लिखकर वही काम करने की कोशिश कर रहा हूँ.
राम नाम करने से सब पूरा हो जाता है.
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Book preview
महाराज जी समय से परे - Sharad Tripathi
||जय श्री राम ||
प्रस्तावना
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना. का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना. बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं. जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं..
कोई उन्हें महाराज जी नीम करोरी कहता है, तो कोई महाराज जी नीम करोली के नाम से जानता है, तो कोई उन्हें महाराज जी नीब करोरी कहता है, तो कोई उन्हें महाराज जी के नाम से पुकारता है तो कोई महाराज जी जी के नाम से. महाराज जी नीम करोरी के देश विदेश में कई आश्रम है. महाराज जी के देश और विदेश में करोडो भक्त है. मेरा ये पुस्तक लिखने का उद्देश्य सिर्फ लोगो तक अपने साथ हुयी महाराज जी की कृपा से अवगत कराना था.
मै क्या हूँ और मेरी क्या क्षमता है !! जो महाराज जी की महानता और कृपा के बारे में कुछ लिखू !! मै बस वो लिख रहा हूँ जो मैंने महसूस किया. मुझे इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा महाराज जी से ही मिली है. मै इस पुस्तक को पहली बार कैंची धाम से आने के बाद ही लिखना चाहता था. लेकिन अब मुझे लगता है कि तब तो शायद कुछ पन्ने भी न भर पाते.
मैंने इस पूरी पुस्तक में अब तक हुयी घटनाओ को जैसे के तैसा ही लिखा है. बस कुछ लोगो के नाम बदल दिए है. मैंने इस पुस्तक को लिखने में ढेरो गलतियाँ की होगी, बहुत सी चीजे आप को पसदं नही भी आयेगी. लेकिन मै जैसा हूँ और मुझे जैसा महसूस हुआ, मैंने उसी को शब्द देने की कोशिश भर की है. आप को जो पसंद न आये तो मुझे क्षमा कर दीजियेगा. इस पुस्तक को लिखने में कुछ दिन ही लगे है.
इसलिए संभव है कि कुछ शब्दों का प्रयोग अच्छा न हुआ हो,पर आप सिर्फ भावनाओ को पढियेगा. ईश्वर हमे किसी न किसी रूप में सन्देश देते ही देते है .बस जरुरत है उन संदेशो को समझने और उनके अनुसार कार्य करने की.ईश्वर कई बार हमे किसी न किसी माध्यम से प्रेरणा देते है और मै इस पुस्तक को लिखकर वही काम करने की कोशिश कर रहा हूँ.
राम नाम करने से सब पूरा हो जाता है.
अनुक्रमणिका
महाराज जी के साथ मन की यात्रा
महाराज जी पर एक पुस्तक लिखने का मेरा मन बहुत समय से था पर हर बार जब भी शुरू करने की कोशिश करता तो कभी मन में विचार नहीं आते और कभी मेरे आस पास की परिस्थितियां शुरू ही नहीं करने देती. कई बार ऐसा भी हुआ कि अपने ऑफिस में बैठे बैठे मेरा मन हुआ कि चलो आज ही से शुरू करते है पर फिर मै किसी और काम में लग गया और पुस्तक लिखना ही भूल गया.
बार बार मेरे साथ हो रही ऐसी घटनाओ को सोचकर मैंने सोचा कि चलो एक बार महाराज जी नीम करोरी के किसी भक्त से ही पूछते है कि महाराज जी के बारे में लिखने से ऐसा क्यों हो रहा है ? इसलिए मैंने फेसबुक पर महाराज जी नीम करोरी के नाम पर बने एक ग्रुप में जाकर एक पोस्ट लिखी कि मै महाराज जी नीम करोरी पर एक पुस्तक शीघ्र लिखने वाला हूँ, और अगर इस ग्रुप में मौजूद किसी सदस्यों में से किसी के पास कोई अनुभव हो तो मुझे जरुर बताये.उस फेसबुक पोस्ट पर वैसे तो कई लोगो ने महाराज जी की जय जयकार की और मुझे पुस्तक लिखना शुरू करने को कहा पर एक महाराज जी के भक्त ने लिख दिया कि क्या आपने महाराज जी पुस्तक लिखने के बारे में पूछ लिया है ? ऐसे मत लिखना. मैंने उस व्यक्ति के कमेन्ट के जबाब में पूछा कि आप ऐसा क्यों कह रहे है ? और अगर मुझे महाराज जी से पूछना है तो उसका क्या तरीका है ? उस व्यक्ति ने मेरे प्रश्न के जबाब में लिखा कि मुझे नही पता. मैंने उनसे कहा कि आप ऐसे कैसे अचानक मेरे मन में शंका डालकर अब मना कर रहे है? तो उन्होंने उलटे सीधे तर्क देना शुरू कर दिया, पर सही जबाब नही दिया.मै उनकी इस बात से काफी नाराज हो गया और उस फेसबुक पोस्ट को डिलीट करके अपने मन से ये बात भी निकाल दी कि मै अब महाराज जी पर पुस्तक लिखूंगा.
आज इस बात को लगभग १० महीने से ऊपर हो गये है. और ये तब की बात है जब मै पहली बार कैंची धाम दर्शन करके लौटा ही था. वैसे इस पुस्तक को फिर से लिखने के बारे में सोच तो मै दो तीन दिन पहले से रहा था पर शुरुवात नही कर पा रहा था. अपनी दो पुस्तकों को लिखने के बाद महाराज जी ने मेरे मन में बिस्वास जगा दिया और मुझे पुस्तक लिखने का तरीका भी सिखा दिया.
आज सुबह जब मै लैपटॉप लेकर बैठा सोचा कि क्या लिखूंगा. तभी मेरी बेटी ने मुझसे पूछा कि क्या आज आप कोई नई पुस्तक लिख रहे है. मैंने कहा, नहीं
अब मेरा कोई नई पुस्तक लिखने का मन नहीं है. मै दो पुस्तक पहले ही लिख चुका हूँ इसलिए मै पहले देखता हूँ कि मेरी लिखी उन दो पुस्तकों की क्या दशा और दिशा होती है. ऐसे हर बार पुस्तक लिखते जाने से क्या फायदा !!!
तो उसने कहा कि ऐसा नही होता है किसी की पहली पुस्तक नहीं चलती है तो बाद वाली जरुर चलती है और किसी की पहली बहुत हिट होती है लेकिन बाद वाली नहीं चलती. इसलिए आप लिखना जारी रखिये. उसकी बात सुनने के बाद मैंने फैसला किया कि अब नई पुस्तक शुरू करने का आदेश मिल ही गया है तो शुरू कर ही देता हूँ.अब मेरे पास दो विकल्प थे कि मै किस पुस्तक को लिखना पहले शुरू करू. एक पुस्तक मै महाराज जी नीम करोरी जी महाराज के ऊपर लिखने वाला था और दूसरी लिखने वाला था मै कोरोना के दौरान होने वाली घटनाओ पर . चूँकि दोनों ही विषयो से मै बहुत अच्छी तरह जुड़ा रहा हूँ और दोनों ही विषयो में मेरी पास विषय सामग्री भी अच्छी है तो कौन सा पहले शुरू करू, यही विचार कर रहा था. तभी अचानक मैंने अपने लैपटॉप में माइक्रोसॉफ्ट वर्ड में जाकर नई फाइल खोली और लिखना शुरू किया जय महाराज जी नीम करोरी
और इस तरह तय हो गया कि पहले कौन सी पुस्तक लिखी जाएगी.
पुस्तक लिखने का विषय के चुनाव के बाद दूसरा प्रश्न ये आया कि मै इस पुस्तक में क्या क्या लिखू? एक पुस्तक का विषय जो मेरे मन में था और मै लिखना चाहता था, उसका विषय हो सकता है लोगो के जीवन में महाराज जी नीम करोरी महाराज के दर्शन और प्रभाव
पर और दूसरा विषय ये कि मेरी स्वयं की महाराज जी के साथ जुड़ने की कहानी
पर .
अब इन्ही दोनों विषयो में पहले मै कौन से विषय पर लिखना शुरू करू, बस बहुत समय तक यही सोच रहा था. जब मैंने लिखना शुरू किया तो सोचा कि पहले मै अपने स्वयं के महाराज के साथ अनुभवों को आप सभी से साझा करता हूँ . विषय के बारे में सोचते सोचते मेरे मन में एक और पुस्तक की विषय सामग्री आ गयी, वो ये कि महाराज जी नीम करोरी के साथ अन्य लोगो का क्या जुडाव है
उन प्रसंगों को भी लिखना शुरू किया जाये.. इस हिसाब से सोचते सोचते मेरे पास लगभग तीन पुस्तक लिखने की विषय सामग्री आ गयी है. अब जैसे जैसे मै सोचता जा रहा हूँ, वैसे वैसे मेरे पास महाराज जी नीम करोरी से जुडी एक एक याद ताज़ा होती जा रही है. मै अन्य लोगो के अनुभवों को भी याद करता जा रहा हूँ.
अब महाराज जी ने जब प्रेरणा दे दी है, और उन्होंने मुझे आशीर्वाद दे दिया है तो फिर मै तीनो ही किताबे लिखने का प्रयास जरुर करूँगा. शुरुवात इस पुस्तक के साथ कर रहा हूँ और फिर एक एक करके बाकी के दो विषयो को भी जरुर लिखूंगा. मै अपने अनुभवों और महाराज जी आशीर्वाद पर लिखने की शुरुवात मै महाराज जी की विनय चालीसा के इस दोहे से करता हूँ.
मैं हूँ बुद्धि मलीन अति . श्रद्धा भक्ति विहीन ॥
करूँ विनय कछु आपकी . हो सब ही विधि दीन ॥
––––––––
महाराज जी से मेरा जुड़ाव
मेरा महाराज जी से अपना जुडाव के शुरुवात के बारे में मुझे ठीक ठीक कुछ भी नहीं याद है. कुछ कुछ इतना याद है कि आज से कई वर्ष पहले शायद सन २०१५ रहा होगा मैंने अपने लैपटॉप में एक फोल्डर का नाम इंग्लिश में रखा था महाराज जी नीम करोरी
और ऐसे ही कुछ ईमेल आई डी के पासवर्ड भी मैंने महाराज जी के नाम पर रखे थे. जहाँ तक मुझे याद है उस समय तक न मैंने महाराज जी की कोई फोटो देखी थी न महाराज जी के बारे में मुझे कोई जानकारी भी थी. अगर मैंने महाराज जी की कोई फोटो देखी भी होगी तो मुझे कतई नहीं याद था .लैपटॉप के उस फोल्डर में मै अपने बहुत महत्वपूर्ण डाटा को रखा करता था. मैंने उस फोल्डर का नाम महाराज जी के नाम पर क्या देख कर रखा होगा और क्यों रखा होगा,ये भी आज तक मेरे लिए एक पहेली है. ये बात आपको आगे इस पुस्तक को पढ़ते पढ़ते पता चल जाएगी कि आखिर ये पहेली आज तक क्यों वैसे ही बनी है.
ऐसी ही धीरे धीरे समय बीतता जा रहा था, लेकिन न मैंने महाराज जी के बारे में कुछ जानने की कोशिश की, न ही मुझे कोई महाराज जी के बारे में रूचि उत्पन्न हुयी थी.
हाँ इस दौरान मै कई लोगो को फेसबुक पर अक्सर कैंची धाम जाने वहाँ की फोटो डालते जरुर देखता था. उन फोटोज में कई लोग जब वहाँ दर्शन करने जाते थे और मंदिर के गेट की फोटो डालते थे तो मै फोटो देखकर सोचता था कि सब लोग सिर्फ गेट की फोटो ही क्यों डालते है. महाराज जी की या मंदिर के अंदर की फोटो क्यों नहीं डालते. फोटो देखने के बाद कई बार मन हुआ कि लगता है यह पहाड़ो में कोई अच्छी जगह है. मुझे भी कभी मौका मिलेगा तो जरुर घूमने जाऊंगा. हालाँकि जब फेसबुक की उस पोस्ट पर कई लोग जो उनके भक्त थे, वो नीम करोरी महाराज जी की जय लिखते थे, मै उस समय भी अपने साथ मंदिर और महाराज जी की किसी चीज को कनेक्ट नहीं कर पाता था.
मेरे मन में ये विचार तक नहीं आता था कि आखिर मेरे कंप्यूटर में जो फोल्डर है और ईमेल के जो पासवर्ड है, उनका नाम मैंने महाराज जी नीम करोरी के नाम पर कैसे और क्यों रखा है. उसी वर्ष सन २०१५ की बात है, फेसबुक के संस्थापक मार्क ज़ुकेरबेर्ग भी भारत की यात्रा पर आये थे. मार्क ज़ुकेरबेर्ग ने मोदी जी के साथ एक इंटरव्यू में महाराज जी नीम करोरी के बारे में चर्चा भी की थी जोकि उस समय सोशल मीडिया से लेकर अखबारों और टीवी तक में बहुत फेमस भी हुयी थी. पर उस समय भी मुझे महाराज जी का नाम और उनके बारे में ज्यादा जानकारी करने में भी कोई रूचि नहीं थी.
बस उस इंटरव्यू में मैंने मार्क ज़ुकेरबेर्ग को भारत के और सनातन के साथ जुड़ने को लेकर ज्यादा ध्यान दिया था. ऐसे ही लगभग २ वर्ष और बीत गये और फिर एक दिन आया जुलाई २०१७
का मुझे इतना जरुर याद है कि उस दिन रविवार था, हालाँकि स्पष्ट तारीख याद नहीं है, फिर भी शायद जुलाई की ९ तारीख थी. वैसे तो तब वो दिन कुछ विशेष नहीं था पर आज जब देखता हूँ तो सच में वो दिन बहुत विशेष था.
जय जय जय गुरुदेव हमारे ।
सबहि भाँति हम भये तिहारे ॥
––––––––
मेक्सिको की अबूझ पहेली
मै उसी ९ जुलाई २०१७ दिन रविवार को विशेष दिन मानता हूँ जहाँ तक मुझे याद है , दोपहर का समय था. मै सोशल मीडिया पर तब भी बहुत एक्टिव हुआ करता जैसे आज भी हूँ. मेरी बेटी की एक आदत थी, जब भी मै घर पर होता तो मेरी बिटिया साए की तरह हमेशा मेरे साथ ही रहती थी. मै घर पर जो भी काम करता वो मेरे साथ ही बैठती थी. उस दोपहर लगभग 3 बजे का समय रहा होगा,मै अपने फ़ोन पर ट्विटर पर नये ट्वीटस पढ़ रहा था. मेरी बेटी भी बिल्कुल मेरे बगल में बैठे बैठे सारे ट्वीट देखती जा रही थी. वो बचपन से ही पढाई में बहुत तेज है तो जहाँ भी उसे कुछ पढने लिखने को मिल जाता है वो वही जम जाती थी. उस दिन वो भी मेरे साथ बैठे बैठे सभी ट्वीट देखती जा रही थी. स्क्रॉल करते करते मेरी नजर एक अजीब ट्वीट पर पड़ी.
जिस व्यक्ति ने वो ट्वीट किया था, मै उनको नहीं जानता था. न ही मै उनका फलोवर था और न ही वो मुझे फॉलो करते थे. मै उस व्यक्ति के ट्वीट को इसलिए देखकर रुक गया था क्यूँकि ट्वीट करने वाला वो एक कोई विदेशी व्यक्ति था. उस अमेरिकी व्यक्ति ने अपने ट्वीट में लिखा था कि मै महाराज जी नीम करोरी के ५ फोटोज का सेट बिल्कुल नि:शुल्क बाँट रहा हूँ. आप में से जिस जिस व्यक्ति को ये फोटोज चाहिए, वो मुझे डायरेक्ट मेसेज करके अपना पता भेज दे. मै उसे जल्दी ही फोटो भेज दूंगा.
मैने इस ट्वीट को इसलिए पढ़ा, क्यूँकि एक विदेशी भक्त भला किसी सनातनी संत के फोटो क्यों भेज रहा है. जैसे ये पढ़कर आप को आश्र्चर्य हुआ, वैसे ही उस दिन मुझे भी वो ट्वीट पढ़कर आश्चर्य हुआ था. ट्वीट पढने के कुछ देर तक मै रुका और फिर मैंने ट्वीट करने वाले अमेरिकी व्यक्ति को डायरेक्ट मेसेज करके अपना पता भेज दिया. जब मै उस व्यक्ति को अपन पता भेज चुका तो मेरी बेटी ने मुझसे कहा कि आप ने उनको अपना पता क्यों दिया? फोटोज तो आप खुद भी गूगल से डाउनलोड करके प्रिंटर से निकाल सकते है.या फिर बाजार जाकर आप रंगीन फोटोज को बनवा सकते है. फिर आपने उस अमेरिकन को अपना पता क्यों भेजा? उनको क्यों परेशान किया ?
मैंने बेटी को उत्तर देने के लिए उस अमेरिकी व्यक्ति का ट्विटर प्रोफाइल खोला और दिखाया कि देखो ये व्यक्ति मेक्सिको में रहता है और ये सनातन धर्म का विश्व में प्रचार कर रहा है. मैंने इसे अपना पता इसलिए दिया है कि अगर ये मुझे फोटो भेजेगा तो उसकी फोटो एक लिफाफे में आयेगी. मुझे फोटो से ज्यादा उस लिफाफे से मतलब होगा जो अमेरिका से आयेगा. क्यूँकि उस लिफाफे में अमेरिकी डाक टिकट लगी होगी और मुझे डाक टिकट इक्कठे करने का शौक है. मेरा बचपन से ही डाक टिकट, पुराने नोट और सिक्के इक्कठे करने का शौक रहा है. हालाँकि धीरे धीरे समय के साथ साथ शौक तो बना रहा पर उसको पूरा करने के लिए समय नहीं रहा. यदा कदा जब इस तरह की कोई स्थिति दिखती है तो मै उसका फायदा उठा लेता हूँ. दुनिया में इन्टरनेट और ईमेल के आने के बाद से लोगो के घरो में ज्यादातर डाक से आने वाले पत्र बंद ही हो गये है, और अब लोग भी आपस में संपर्क के लिए ईमेल और अन्य डिजिटल माध्यम के प्रयोग को वरीयता देते है.
भारत में अब तो डाक विभाग का उपयोग सिर्फ सरकारी विभाग ही ज्यादा करते है,ताकि उनके पास अपने आपको बचाने के लिए लीगल प्रमाण हो. बाकी यदा कदा ऐसा होता है कि कई लोग शादी के कार्ड को भी डाक के माध्यम से दूर दराज के गाँव भेजते है क्यूँकि निजी कूरियर कम्पनियों के पहुँच उस समय गाँव तक नहीं थी. हालाँकि आज २०२३ में परिस्थितया बिल्कुल बदल चुकी है और अब गाँव गाँव तक निजी कूरियर कंपनिया तक सामान घर घर पहुँचा रही है. इस लिहाज से आज डाक टिकट मिलने और भी मुश्किल हो गये है.
तो मै लौट कर आता हूँ अपनी उसी बात पर. मेरा उन फोटोज को उस समय उस अमेरिकी से मंगवाने का एकमात्र उद्देश्य था, विदेशी डाक टिकट हासिल करना. मैंने बेटी से पूरी बात सच सच बताई. इसके बाद हम दोनों लोग ही उस ट्वीट के बारे में बिल्कुल भूल गये. इसके बाद अगले कुछ दिनों या कहे कुछ महीनो तक तो हम दोनों को उस डाक का इंतज़ार जरुर रहा कि शायद वो ट्विटर वाला अमेरिकन व्यक्ति हमें फोटो भेज देवे, पर ऐसा हुआ नहीं.
जैसे जैसे समय गुजरता गया मै धीरे धीरे उस ट्वीट और उस दिन की सारी बातचीत को भी भूल गया था . मै इस पुस्तक में उस अमेरिकन व्यक्ति के नाम का जान बूझ कर उल्लेख नहीं कर रहा हूँ क्यूँकि मुझे लगता है कि मुझे उस अमेरिकन व्यक्ति की जानकारी सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए. हालाँकि इस पूरी पुस्तक को पढने के बाद आपको उस व्यक्ति के नाम और उसके बारे में जानने में बहुत रूचि होगी.
आज के समय के हिसाब से देखे तो मेरी महाराज जी अर्थात महाराज जी नीम करोरी के सीधे संपर्क में आने की ये पहली घटना थी. जब मुझे महाराज जी की फोटो किसी अमेरिकन से मिलने वाली थी. हालाँकि इन्टरनेट के दौर में गूगल पर जाकर भी मै उनकी फोटो देख चुका था पर तब