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कचरा बीनने वाला (एक प्रेम कथा)
कचरा बीनने वाला (एक प्रेम कथा)
कचरा बीनने वाला (एक प्रेम कथा)
Ebook66 pages33 minutes

कचरा बीनने वाला (एक प्रेम कथा)

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विजया कपूर द्वारा लिखित ये लघु उपन्यास "कचरा बीनने वाला (एक प्रेम कथा)" आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाएगा जिसके बारे में आपने शायद कभी कल्पना तक नहीं की होगी!

आपको लेखिका ये यकीन दिलाने का प्रयास करती हैं के प्रेम किसी को भी किसी से भी हो सकता है और ये भी यकीन दिलाती है के ये कोई नहीं जानता के प्रेम इंसान को कब कहाँ और कैसे बदल देता है! यह मार्मिक कहानी आपके मन पर इतना प्रभाव डालेगी के आप शायद नम आँखों से बहुत देर तक कहानी के दोनों मुख्य पात्रों के बारे में सोचते रहे!

इस उपन्यास को पढ़ने के बाद आप लेखिका की सृजनशीलता और गद्य लेखन की सरल और सीधी कला की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकेंगे।

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateNov 9, 2023
ISBN9798215931752
कचरा बीनने वाला (एक प्रेम कथा)

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    कचरा बीनने वाला (एक प्रेम कथा) - Vijaya Kapoor

    अध्याय 1

    आपने भी ना जाने कितनी ही बार सुना होगा के हम सभी ईश्वर के प्राणी हैं इसलिए हमें सबसे प्रेम करना चाहिए और घृणा और ईर्ष्या को कभी भी अपने मन में पनपने नहीं देना चाहिए। अक्सर ये भी कहा जाता है के घृणा सब कुछ बर्बाद करने की शक्ति रखती है।

    लेकिन आज की इस दुनिया में हर तरफ घृणा और द्वेष का ही बोलबाला है और प्रेम तो कभी कभी कुछ पवित्र आत्माओं में ही दिख जाता है। बड़े शहरों में तो लोग इस कदर स्वार्थी और घृणा से भरे हुए हो गए हैं के वो अपने से नीचे के लोगों को जानवरों से अधिक नहीं समझते हैं।

    अमीरों के पास तो पैसे कामने के ना जाने कितने ही तरीके और साधन हैं, लेकिन इंसानो का एक वर्ग ऐसा भी है जो अमीरों के द्वारा फेंके गए कचरे को उठाकर उसमें से चीजें चुनकर उनको कबाड़ी को बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसे कचरा चुनने वाले लोग छोटे छोटे बच्चों से लेकर मुश्किल से चल सकने वाले बूढ़े भी होते हैं।

    मूर्ती भी एक कचरा बीनने वाला व्यक्ति था; वो सुबह से शाम तक जगह जगह पर कूड़ों के ढेरों में से चीजें उठाकर अपनी बोरी में एकत्रित करता था और शाम को उन चीजों को कबाड़ी को बेचकर अपनी रोटी कमाता था।

    *****

    हर दिन की तरह उस दिन भी मूर्ती अपने काम में व्यस्त था और कचरा उठा रहा था। मूर्ती के एक गुरु थे जिनको स्वामी के नाम से जाना जाता था। वो मूर्ती को जो भी सलाह देते थे उसको मूर्ती दैविक आदेश की तरह ही मानता था।

    उस स्वामी ने भी जीवन के शुरुवाती दिनों में दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए कूड़ा बीनने का काम किया था।

    स्वामी ने कई वर्षो तक कूड़ा बीनने के साथ साथ कई छोटे मोटे काम भी किये थे लेकिन जब उसने पचास की उम्र पार कर ली तो वो जीवन को आराम से गुजारने के लिए स्वम्भू भगवान् पुरुष बन गया और जीवन भर में सीखी हुई बातों को उपदेशो के रूप में लोगों को देने लग गया था। लोगों ने भी उसको एक महापुरुष के रुप में स्वीकार लिया था।

    वो कचरे के ढेरों के इलाके से कुछ दूर एक छोटी सी कुटिया बनाकर रहने लगा; उसने गेहुआ वस्त्र धारण कर लिया था और पढ़ा लिखा होने के कारण कोई ना कोई किताब अपने पास जरूर रखता था; उसकी कही हुई कुछ बातें सच सिद्ध हो गयी तो उसपर विश्वास करने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि होती गयी; अब उसके पास ना तो पैसों की और ना ही खाने पीने की चीजों की कमी होती थी क्योंकि उसकी अनुयायी उसको नगद दक्षिणा के साथ साथ अनाज और फल फूल और अन्य भी

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