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Tumhe Kaunsa Rang Psand Hai
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Ebook120 pages57 minutes

Tumhe Kaunsa Rang Psand Hai

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About this ebook

A Punjabi stage-play written by famous Punjabi Playwright, Screen Writer & Director Pali Bhupinder Singh. This is very popular, bold and beautifully crafted script that discusses the various aspects of the relationship between marriage, morality and sex. DK is alone in a hotel room. A waiter offers him the company of a call girl. He gets angry and wants to meet the manager to complaint about the waiter's offer. Then he, suddenly, looks at the mirror and the trouble starts...

Languageहिन्दी
Release dateJan 22, 2024
ISBN9798224656028
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    Book preview

    Tumhe Kaunsa Rang Psand Hai - Pali Bhupinder Singh

    तुम्हें कौन सा रंग पसंद है

    पाली भूपिंदर सिंह

    Tumhen Kaun Sa Rang Psand Hai

    (A Hindi Stage Play)

    Original language : Punjabi

    Copyright © 2021, Pali Bhupinder Singh

    All rights reserved. No part of this publication may be reproduced, distributed, or transmitted in any form or by any means, including photocopying, recording, or other electronic or mechanical methods, without the prior written permission of the publisher, except in the case of brief quotations embodied in critical reviews and certain other noncommercial uses permitted by copyright law.

    For permission requests, write to the author :

    palibhupinder@gmail.com

    for more information visit to :

    www.palibhupinder.com

    Any references to historical events, real people, or real places are used fictitiously. Names, characters, and places are products of the authors imagination.

    समर्पित

    अदाकार एवं निर्देशक गौरव विज को

    जिन्होंने इस नाटक के हिंदी-रूपांतरण में

    महत्वपूर्ण योगदान दिया

    प्राकथन

    बात तो सिर्फ इतनी सी है कि जब कभी अकेलेपन में आप शीशे के सामने खड़े हो जाते हो, शीशा आपको सवाल करता है. अगर तो आप डर जाओ, फटाफट अपना चेहरा देखो और भाग जाओ तो अलग बात. लेकिन अगर आप उससे बात करने लगे तो फिर बहुत मुश्किल हो जायेगी. वो आपके अंदर उतर जायेगा. आप वो हो जाओगे, वो आप. अब वक्त उल्टा घूमने लगेगा और वक्त के साथ-साथ घूमते हुए आप अपने अंदर वहां पहुँच जाओगे, जहाँ आपने जाने का कभी सोचा भी नहीं था. आपको तो उस जगह का मालूम भी नहीं था. अंदाजा ही नहीं था आपको कि कोई ऐसी जगह भी है और वहाँ पर कोई ऐसा भी रहता है, जिसे आप बिलकुल भूल चुके थे. आप तो ऐसे देख रहे होगे उसे जैसे शीशा आपको देखता है.

    मैं इस नाटक को माइक्रो-नाटक कहता हूँ. क्योंकि बात तो सिर्फ माइक्रो-सेकेंड्स की है. डी के ने शीशा देखा. फिर दरवाजे की तरफ देख और वापिस शीशे की तरफ. लेकिन इस छोटे से अरसे में कितने ख्याल आये और चले गए, कोई गिनती ही नहीं. यह नाटक उन ख्यालों का लेखा-जोखा है.

    ––––––––

    पाली भूपेन्द्र सिंह

    लेखक के बारे में

    मूल रूप से पाली भूपेन्द्र सिंह पंजाबी भाषा के नाटककार एवं फ़िल्म-साज़ हैं. उन्होंने पंजाबी में ३७ छोटे-बड़े नाटक लिखे हैं जो ना सिर्फ देश-विदेश में मंचित हो चुके हैं बल्कि अनेक भारतीय विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं. उनके कई नाटक हिंदी और अंग्रेजी में भी प्रकाशित हो चुके हैं. पंजाब विश्वविद्यालय में पंजाबी के प्राध्यापक पाली भूपेन्द्र सिंह ने कुछ वर्ष पंजाब विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध इंडियन थीएटर विभाग में भी पढ़ाया है. सृजनात्मक गतिविधियों के साथ-साथ वह एक नाट्य-चिंतक भी हैं और उन्होंने सर्वप्रथम 'पंजाबी नाट्यशास्त्र' लिखा है. नाट्य-रचना के अलावा उन्होंने एक लंबी कविता 'आम आदमी की वार' (पंजाबी) लिखी है और कई पंजाबी फ़िल्में लिखी और निर्देशित की हैं.

    तुम्हें कौन सा रंग पसंद है

    पात्र:

    डी के

    अजनबी

    वेटर

    नौजवान

    किसी बड़े होटल का कमरा. दर्शकों की ओर खुलती एक खिड़की. अंदर से बाहर देखने वाला नीचे की ओर देखता है, जिससे आभास होता है कि कमरा किसी ऊपरी मंजिल पर है. एक दीवार पर एक आदमकद शीशा और दूसरी पर एक बड़े साइज़ की दीवार घड़ी है जो बाकायदा चलती है.  

    रोशनी होती है. कुछ पल बाद दरवाजे की घंटी बजती है. अभी कमरे में कोई नहीं. थोड़े इंतजार के बाद फिर घंटी बजती है.

    डी के

    (गुसलखाने में से) जस्ट वेट, आय’म कमिंग.

    कुछ क्षण बाद गुसलखाने का दरवाज़ा खोल कर गीले बालों को तौलिये से पोंछता डी के तेजी से आकर दरवाज़ा खोलता है. सामने एक नौजवान खड़ा है.

    येस!

    नौजवान

    (डर भरे आदर के साथ) गुड इवनिंग सर. सर गोयल साहब ने पैसे भेजे हैं.

    एक पैकेट आगे करता है.

    डी के

    (हल्की नाराज़गी से) वो खुद क्यों नहीं आये?

    नौजवान

    सर वो सॉरी फील कर रहे थे. कम्पनी की ऐनुयल विजिट के लिए यू. के. से वी. आई. पीज़. आये हुए हैं. और मैनेजर साहब के यहाँ न होने की वजह से सभी कुछ गोयल साहब को देखना है. वो बहुत लेट फ्री होंगें और आपको सुबह जल्दी जाना है. इसलिए उन्होंने मुझे भेजा है. मैं एच. आर. में सीनियर एग्ज़ीक्यूटिव हूँ सर.

    कुछ निश्चिन्त होकर अब डी के पैसे ले लेता है.

    दस लाख हैं सर.

    डी के संतुष्ट है.

    सर इस होटल में आपको किसी भी चीज़ की जरूरत हो आप निसंकोच आर्डर कर सकते हैं. स्पेशिअली मैनेजर साहब को आपकी लुक-आफ्टर के लिए रिकवेस्ट की गयी है.

    नौजवान

    (एक और पैकेट देते हुए) ये आपकी टिकट है सर. आपको एअरपोर्ट तक छोड़ने के लिए गाडी सुबह ठीक! बजे नीचे लाउंज के बाहर पहुँच जायेगी.

    डी के

    और कुछ!

    नौजवान

    नो सर. (जैसे परेशानी और झिजक के साथ) ओ... येस सर. सर वो... वो....

    कुछ कहना चाहता है लेकिन डर रहा है. डी के उसे घूर रहा है.

    सर वो... दस बजे यहाँ एक मैडम आएंगे.

    डी के

    मैडम!

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