Parmatma Prem
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पुस्तक पूरी तरह से आद्यात्मिक यात्रा के बारे मैं है।चैतन्य उपाध्याय ने अपने जीवन के अनुभव में परमात्मा के प्रति जो एहसास जिया वो कविता के माध्यम से किताब में प्रस्तुत किया है।कुल 21 कविताऐं है। हृदय से लिखी है हृदय तक पोचे यही आशा है।
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Parmatma Prem - Kavi Chaitanya Upadhyay
हरिहर
अनंतदेवाय वासुदेवाय प्राण प्रिये श्री हरी गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
अनंतदेवाय महादेवाय प्राण प्रिये श्री हरा गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
तू ही हरी। तू ही हरा
तेरी भक्ति में मैंने सारा जग है पाया।
अनंतदेवाय वासुदेवाय प्राण प्रिये श्री हरी गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
अनंतदेवाय महादेवाय प्राण प्रिये श्री हरा गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
मेरे परमात्मा आप के नाम है अनेक मगर हो आप
एक, कोई कहता जगन्नाथ तोह कोई कहता विश्वनाथ।
तुम हो मायापति
तुम हो उमियापति
तुम हो मेरी ज़िन्दगी के साहरथी।
तू ही हरी। तू ही हरा
तेरी भक्ति में मैंने सारा जग है पाया।
अनंतदेवाय वासुदेवाय प्राण प्रिये श्री हरी गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
अनंतदेवाय महादेवाय प्राण प्रिये श्री हरा गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
मेरे लिए मेरे प्रभु ही मेरे सुख है सुकून है ।
मेरे लिए मेरे प्रभु ही मेरा धन है, जायदात है।
तुम हो भाग्य
तुम हो कर्मा
तुम हो मेरी बंदगी के धर्म।
तू ही हरी। तू ही हरा
तेरी भक्ति में मैंने सारा जग है पाया।
अनंतदेवाय वासुदेवाय प्राण प्रिये श्री हरी गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
अनंतदेवाय महादेवाय प्राण प्रिये श्री हरा गुरु
परमेश्वर कोटि कोटि प्रणाम।
महाविष्णु
तुमसे दुनिया तुमसे कारवां प्रभु
तुमसे प्रारम्भ, तुमसे अंत सब मेरे प्रभु |
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