The Stories of Braj
By Naina Asija
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'The Stories of Braj' is a collection of short stories from the life of Lord Krishn during the
tenure he spent in the land of Braj. These stories are written from the perspec
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The Stories of Braj - Naina Asija
भूमिका
'मुश्क' काव्य संग्रह के माध्यम से कवित्री ने किर्ति, जो कि एक नव विवाहिता रूपसी स्त्री है, का अपने प्रेमी संग दास्तानें-इश्क का इज़हार एवं नित्य नवीन प्रेम-प्रसंगों का मार्मिक चित्रण बड़ी प्रवीणता के साथ उल्लेख किया है। किर्ति का प्रभु से जुड़ाव, अंतर्मन द्वंद एवं पति संग वार्ता से उत्पन्न संवाद का अति रोचक विवरण, इन कविताओं में डूबने को विवश करता है।
इन प्रेम में सनी कविताओं में प्रेम की खुशबू, हास्य की गूंज, विरह का गम, सामाजिक व्यंग्य, मिलन की उमंग एवं प्रभु का अहसास हर क्षण, जैसे विविध एहसासों का समन्वय का अद्भुत लक्षण पूर्णतया प्रेमीका के भावों को जीवंत करता है ।
कवित्री की लेखनी मुख्यत: खड़ी है, परन्तु उन्होंने पंजाबी व उर्दू शब्दावली का भी इस्तेमाल अपनी संरचना में भरपूर किया है ।
नैना असीजा
1
एक तन्हां रात
ए ज़हनसीब,
इन तन्हां रातों में तुझे याद करती हूं,
तेरे इश्क में रोती हूं तड़पती हूं ।
तेरे इश्क का जुनूं मेरे सर चढ़ बोला है,
हां ! तूं वही है
जिसे मैं बेइंतहा प्यार करती हूं ।
तेरी बातों में नशा और जिस्म में खुमारी है,
बता तूं कौन है,
जिसने मुझी से, मुझी को चुराया है ।
आह ! यह दर्द भी अजीब है,
तूं पास न होकर भी करीब है ।
तुझे ख्यालों में चूमने कि आदत सी हो गई है,
बता, ऐ मेरे रूठे महबूब मेरी खता क्या है ।
यह जिस्म, जान और उम्र भी कम है,
यदि तुझ पर सब वार कर,
तूं मुझे उस पार मिल सके ।
इस विरह अग्नि में इतनी पीड़ा है,
कि मेरा हृदय चीर कर जब देखोगे,
तो तुम्हें अपने अक्स के सिवा
कुछ और दिखाई नहीं देगा ।।
2
दीवानापन
ये बेकरारी कैसी,
ऐ मोहब्बत के मसीहा तुम ही बताओ
इस दिल में कसक कैसी,
रोम-रोम तो झूमे
तड़प के साथ आए मुस्कान कैसी ।
तुम्हारी बाहों के आगोश में आकर
जिस्म को आए क़रार,
और कंठ से फूटने लगे प्रेम के स्वर बेशुमार ।
तुम्हारे नूर से है यह दिलों ज़हान रोशन,
तुम्हारी कशिश से है इस कायनात में
जन-जीवन ।
तुम्हारे बोल में है एक मिठास, एक शुमार,
जिसको सुनने के लिए दिल सर्वदा रहे
बेक़रार ।
तुमसे मिलकर प्रेम ज्वाला दहक जाती,
सोचती हूं शायद शांत हो जाए
परन्तु यह तो और भड़क जाती ।
तुम कोई फ़क़ीर नहीं
तुम तो हो दिलों के सम्राट,
जो खुद नहीं जानते कि तुम सभी को
खुदी से मिलाने की देते हो सौगात ।
ऐ खुदा के बंदे
तुम को करती हूं शत्-शत् नमन,
तुम्हारे आने से आएं इन नैनों में स्वप्न,
जीवन में महक और उमंग कि तरंग ।
इन आंखों में दिखता है जो नूर,
है वह तेरे प्रेम का ही दिया हुआ ज़रूर,
जो तेरी बंदगी करके मैंने पाया
वह अब है भरपूर ।
तुम्हारी रूह और मेरी रूह है एक
दिखते दो जिस्म परन्तु जान हैं हम एक,
मैं प्रेम की पुजारिन तुम्हारे इश्क में
अब अपना होशोहवास खो बैठी,
थाम लेना मुझे ए सनम
यदि मैं अपने आप को कभी भूला बैठी ।
अपनी ही दीवानगी कहीं मुझे ले न डूबे
इसका नहीं ख़ौफ़,
जब तुम मेरे जीवन की प्रेरणा का हो
पावन स्त्रोत ।
ए मेरे ख़्वाब तुम परिंदा बन,
मेरे महबूब को मेरे दिल का हाल सुनाना
कहना कि मैं तेरी थी, हूं और रहूंगी
यह राज़, जो अब तक था दिल में दफ़न
तुम जन्म-जन्मांतर तक रखना स्मरण ।।
3
शबनम
तुम शबनम से हसीं,
तेरे होने से हुआ है मुझे अपने आप पर यकीं ।
हो तुम वह दर्पण, जिसने दिखाया मुझे मेरा
अक्स,
प्रेम में सराबोर कर जिसने मुझे निखारा,
तुम हो वह शानदार शक्स ।।
4
प्रेम-लग्न
जिस तरह प्रेम ने मुझे छुआ है,
लगता है परवरदिगार ने सुनी दुआ है ।
दर्स-दीवानी हुई मैं मोहन की मीरा समान,
जब अंजाने मिला अपना रांझना
हो गई मतवाली मैं हीर समान ।
कभी लगता कि हुई बावली
मैं सोनी अपने महिवाल की
या कभी बनी प्रेम दीवानी
जैसे राधा अपने श्री गिरिधर गोपाल की ।।
5
पूर्ण-संगम
तेरे होने से हुआ है यकीं,
तेरे बिन यह जिंदगी न हो पाती पूर्ण और रंगीन ।
हर श्वास में तेरा नाम पिरोया
और दिल की हर धड़कन में तेरा स्पर्श संजोया ।
तेरी चाहत में फूलों सम महका बदन
और पूर्ण संगम के सपने देखे हर क्षण,
तुम ही कहो जानेमन, कब होगा मिलन ।।
6
तीर
प्रेम से अनभिज्ञ मैं इस कदर डोलती,
तुम तो हो प्रेम की मूरत मेरी सहेलियां बोलती ।
अब ये दीवानगी उफ़ान लें और मचले शरीर,
जब से तेरे सीने को चीरता हुआ, मेरे सीने
को भेद गया कामदेव का तिरछा तीर ।
बहा कर ले गया दिल का चैन,
सूने हो गए दिन और जग के कट रहे रैन ।।
7
आलिंगन
अजब सी मुस्कुराहट है लबों पर
तेरे दिल की धड़कन सुनी है जब से,
दिल की हर गली है रोशन तब से,
ऐसा प्रतीत होता है, ख्वाहिश तेरी ही थी कब से,
कहती फिरती हूं,
' प्रेम की पुजारिन हूं ' सबसे ।।
8
स्रिष्टि
आओ मिलकर गाएं हम मधुर प्रेम के गीत,
संग ताल मिलाए बुलबुल, पपीहा
और कोयल भी आ समीप,
सरगम सुन, गुंजायमान हुआ गगन,
थम गया समां, अब रहा न समय बीत,