इतनी सस्ती इज़्ज़त और अन्य कहानियाँ
By टी सिंह
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इसमें तो कोई संदेह नहीं है के आप कहानियाँ पढ़ने के शौकीन है, नहीं तो आपने हमारी इस किताब को खोला ही नहीं होता। और इसमें भी कोई संदेह नहीं है के आपने आज तक ना जाने कितनी ही कहानियाँ पढ़ी होंगी।
आपकी पढ़ी हुई कहानियों में से कुछ आज तक भी आपके मष्तिष्क पटल पर ताज़ा होंगी और कुछ कहानियाँ अतीत में कहीं खो गयी होंगी। कुछ कहानियों को आपने औरों को भी सुनाया होगा। लेकिन युग परिवर्तन हो रहा है और आज कहानियों के पाठकों की संख्या बहुत ही तेज़ी से घटती जा रही है। लेकिन हम ये दावे के साथ कह सकते हैं के आप भाग्यशाली हैं जो आज के इस तकनीकी और तेज़ गति से दौड़ने वाले समय में भी आप कहानियाँ पढ़ने के लिए समय निकाल लेते हैं।
हम ये दावा नहीं करते के हमारी कहानियाँ अद्वितीय हैं या ऐसी कहानियाँ आपने पहले कभी नहीं पढ़ी होंगी, लेकिन हम ये दावा कर सकते हैं के हमारी ये कहानियाँ आपको आपकी अपनी सी ही लगेंगी। इन कहानियों को हमने दैनिक जीवन की बहुत ही छोटी छोटी घटनाओं से तैयार किया है और आपके सामने बहुत ही सरल और सुलभ भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं।
हमारी इन कहानियों को परिवार के सभी लोग एक साथ बैठकर पढ़ सकते हैं क्योंकि हर एक शब्द बहुत ही मर्यादित है और हर वाकय बहुत ही प्रभावशाली है। और हम ये भी आशा करते हैं के हमारी इन कहानियों में से कुछ स्कूल या कॉलेज के पाठ्यक्रम में पढ़ाने के योग्य भी हैं।
हमारा प्रयास तब सफल होगा जब आप हमारी इन कहानियों को पढ़ेंगे और अपना निष्कर्ष निकालेंगे के हमारा प्रयास आपकी प्रशंसा के योग्य है के नहीं।
तो लीजिये, अब शुरू हो जाइये और इन कहानियौं का भरपूर आनंद लीजिये। एक अनुरोध है आपसे: अगर कोई ऐसी कहानी लगे जो कोई शिक्षा देती है तो उसको अपने बच्चों और अपने से छोटे भाई बहनों को भी सुनियेगा! हम आपके आभारी रहेंगे।
धन्यवाद
टी. सिंह
जिस्म गूँथ रहा था (मार्मिक कहानी)
प्यार की अप्रत्याशित यात्रा
पगला बाबा (आज की कहानी)
वो सच में अमीर था (एक मार्मिक कहानी)
सर, मैं एकलव्य नहीं हूँ (सुंदर कहानी)
हाउसहब्बी (रहस्य)
हृदय परिवर्तन (आज की कहानी)
अपराधी हम या कोई और (आज की कहानी)
खूबसूरत आंखें, धानी साड़ी (सुन्दर कहानी)
चाँद अपना अपना (सुन्दर कहानी)
अपने अंत का दृश्य (बहुत ही मार्मिक कहानी)
मेरे हिस्से का आसमान
आधुनिक स्त्री (मार्मिक कहानी)
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आंखें भर आयी (आज की कहानी)
मुझे मुक्त करवा दीजिये! (मार्मिक कहानी)
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कुछ पलों का चित्र (प्रेम)
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बेजुबान (मार्मिक कहानी)
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इतनी सस्ती इज़्ज़त (आज की कहानी)
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इतनी खूबसूरत ज़िन्दगी (सुन्दर कहानी)
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वो ख़ास दिन (जरूर सुनिए)
उस बादल की बात (बहुत सुन्दर कहानी)
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इतनी सस्ती इज़्ज़त और अन्य कहानियाँ - टी सिंह
जिस्म गूँथ रहा था (मार्मिक कहानी)
गाँव में तीन वर्षों तक जब बरसात नहीं हुई तो खेती बर्बाद हो गयी और उस गाँव से लगभग सभी लोग पलायन कर गए थे। कुछ किसानो ने तो अपनी जमीने बहुत ही सस्ते दामों पर बेच भी दी थी।
साजन और मलिका के पास चार बीघे जमीन थी लेकिन वो शादी के पांच वर्षो के बाद तक उस जमीन से ही खूब कमा खा रहे थे, लेकिन अकाल पड़ने के बाद उनकी भी हालत खराब हो गयी। उन दोनों ने भी अपने गाँव के घर को बंद कर दिया था और मुंबई आ गए थे।
कुछ पैसे बचा कर रखे थे जिनसे उन्होंने एक झुग्गी खरीद ली थी मुंबई सेंट्रल के पास ही। वो झुग्गी एक झुग्गी कॉलोनी में थी। सर पर छत आ जाने के बाद साजन ने काम खोजना शुरू कर दिया। उसको एक फैक्ट्री में एक मशीन चलाने की नौकरी मिल गयी। पहले महीने में उसने मशीन चलाना सीखा था और उसको पहले महीने की तनख्वाह नहीं ,मिली थी।
मलिका ने भी बड़ी बड़ी इमारतों में लोगों के फ्लैटों में साफ़ सफाई और बर्तन मांजने का काम शुरू कर दिया था। एक वर्ष में ही दोनों ने खूब मेहनत करके करीब पचास हज़ार रूपए बचा लिए थे। उन्होंने उन पैसों से एक चाल में एक पक्का कमरा खरीद लिया। दोनों को लगने लगा के जीवन अब बदलने लगा था और उनके अच्छे दिन आने वाले थे।
लेकिन भाग्य ने अभी और भी इम्तेहान लेने थे। एक दिन मशीन में स्टील की प्लेटें काटते हुए साजन के दोनों हाथ मशीन में आ गए और कट गए। वो तीन महीनो तक अस्पताल में रहा। उसको कंपनी की तरफ से एक लाख रूपया मुवावजा मिला।
मलिका काम करती रही लेकिन उसकी कमाई से पूरा नहीं पड़ता था। कुछ महीनो में ही वो कंपनी से मिले हुए पैसे भी समाप्त हो गए। साजन तो अब कोई काम कर ही नहीं सकता था।
धीरे धीरे वो दिन भी आ गया जिस दिन घर में खाने को कुछ भी नहीं था। वो दोनों अपने कमरे को बेचकर वापिस गाँव जाने के बारे में सोचने लगे लेकिन मलिका हार मांनने को तैयार नहीं थी।
उस दिन शाम को जब मलिका लोगों के घरों के बर्तन मांजकर आयी तो घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं दिखा। उधर निराश और अपाहिज साजन चारपाई पर पढ़ा भूख से कराह रहा था। वो एक घर से दो रोटियां ले आयी थी लेकिन वो सूखी हुई रोटियां थी और वो उन रोटियों को अपने पति को नहीं देना चाहती थी। वो लोगों के घरों की बची हुई रोटियां अपने पति को देकर उसके सम्मान को चोट नहीं पहुँचाना चाहती थी।
उन दोनों के सर पर पड़ोस की राशन की दुकान वाले बनिए का भी तीन हज़ार रूपया चढ़ चूका था।
आखिर जब उसको कुछ नहीं सूझा तो वो एक थैला लेकर घर से बाहर जाने लगी। साजन ने बिस्तर से ही पूछा,इतनी शाम को कहाँ जा रही हो?
मलिका ने उससे नजरें मिलाये बिना ही कहा,देखती हूँ जाकर दुकान में शायद बनिया तरस खाकर थोड़ा सा राशन दे दे! मुझे अगले हफ्ते तीन घरों के पैसे मिल जायेंगे तब उसको दे दूँगी!
थोड़ी देर के बाद मलिका थैले में आटा, दालखाने का तेल, और मसाले लेकर आ गयी। साजन ने देखा के मलिका की साड़ी कुछ अस्त व्यस्त सी लग रही थी और पल्लू के नीचे उसके बाल भी बिखरे हुए थे।
वो कमरे के कोने में बैठकर आटा गूँथने लगी। साजन की आँखों में आंसू थे। उसको उस गुंथे हुए आटे और अपनी पत्नी मलिका के जिस्म में कोई भी फर्क नहीं दिख रहा था। वो जानता था के बनिए ने मलिका को इतना राशन बिना कुछ लिए तो नहीं दिया होगा।
हालांकि मलिका ने तुरंत ही दाल और रोटियां पका दी लेकिन साजन ने सोने का बहाना कर दिया और दिल में गहरा दर्द लिए भूखे पेट ही सो गया। उसके दिमाग में वो दृश्य घूमने लगा जिसमे बनिया उसकी पत्नी के जिस्म को आटे की तरह गूँथ रहा था।
Chapter 2
प्यार की अप्रत्याशित यात्रा
नाथन शांत बैठा रहा, उसका फ़ोन शांत और अनुत्तरदायी था। समय का पता ही नहीं चला, हर मिनट लिली की चिंता बढ़ती जा रही थी।
परेशान होकर, लिली ने उसे स्वीकृति की एक झिलमिलाहट की उम्मीद में संदेशों की झड़ी लगा दी।
शाम 6 बजे तक, लिली की अपनी दैनिक स्काइप डेट के लिए प्रत्याशा बढ़ गई। यह उनकी जीवन रेखा बन गई थी, जीवन की उथल-पुथल के बीच उन्हें एक साथ बांधने वाली एक प्रिय दिनचर्या। चार महीनों तक एक भी दिन ऐसा नहीं बीता जब उनकी अंतरंग बातचीत न हुई हो।
नाथन के सामने न आने पर उसका दिल बैठ गया। शायद वह व्यस्त था, लिली ने तर्क दिया। लेकिन जैसे-जैसे घंटे बीतते गए, चिंता बढ़ती गई। उसके फोन पर कॉल करने से खामोशी के अलावा कुछ नहीं मिला। सिकुड़ी हुई भौंहों और भारी मन के साथ, वह अपने फोन की ओर देखती रही और चाहती थी कि उसकी आश्वस्त आवाज के साथ वह बज उठे।
रात घिरने लगी, उसके कमरे में परछाइयाँ लंबी होने लगीं और अनिश्चितता उसे सताने लगी। रात 10:30 बजे आख़िरकार नाथन की ओर से एक संक्षिप्त संदेश आया: अभी बात नहीं कर सकते। बाद में!
लिली की भावनाएँ बढ़ गईं - क्रोध, भ्रम, चोट।
उन्होंने एक मित्र की सभा में जुड़ाव की चिंगारी से लेकर उनके अविभाज्य बंधन तक की उनकी यात्रा पर विचार किया। जब वह काम के लिए स्थानांतरित हुई तो नाथन उसके समर्थन का स्तंभ था, जिसने उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। फिर भी, उसकी अचानक चुप्पी ने उसे हर चीज़ पर सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया, उसे आश्चर्य हुआ कि क्या उसका भरोसा ग़लत हो गया था।
जब वह बेचैन होकर लेटी थी, तभी एक दस्तक ने उसे उसके विचारों से झकझोर दिया। दरवाज़ा खोलते ही, उसकी मुलाकात एक परिचित चेहरे से हुई, जिसके हाथ में एक गुलदस्ता और एक चमकती अंगूठी थी।
आश्चर्य!
नाथन एक घुटने पर झुककर मुस्कुराया। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?
लिली की आँखों में आँसू आ गये। आप जानते हैं कि मुझे आश्चर्य पसंद नहीं है। मैं बहुत चिंतित थी।
लेकिन नाथन की मुस्कान में एक वादा था, और लिली के दिल में वह जवाब फुसफुसाया जो वह देना चाहती थी। हाँ,
उसने साँस ली, जैसे खुशी और राहत उसके अस्तित्व में भर गई, जो नाथन की चौड़ी मुस्कुराहट में प्रतिबिंबित हुई।
Chapter 3
पगला बाबा (आज की कहानी)
हमारे मोहल्ले में इमारतों से कुछ दूरी पर कुछ झोपड़ियां थी। उनमें से एक झोपडी में पगलू अपने मजदूर माँ बाप के साथ रहता था। पगलू करीब १८ बरस का था लेकिन कुछ भी नहीं करता था। वो सिर्फ आठवीं कक्षा तक पढ़ा था।
माँ बाप ने मजदूरी कर कर के पैसे बचा कर उसको कई बार नौवीं कक्षा में दाखिला दिलवाया था लेकिन हर बार ही वो स्कूल जाने के बहाने बस अपने गली के दोस्तों के साथ घूमता फिरता था। स्कूल में देने के नाम पर माँ बाप से पैसे भी ऐंठ लेता था। उसने नौवीं कक्षा की किताबें भी बेच दी थी। असल में पढाई लिखाई उसके वश की ही नहीं थी।
मजदूरी के अलावा उसको कोई और नौकरी भी तो नहीं मिल सकती थी। चपरासी की नौकरी के लिए भी कम से कम बारह कक्षा तक पढ़ा लिखा होना जरूरी था। और फिर पगलू चपरासी की नौकरी भी नहीं करना चाहता था।
पगलू के बड़े सपने थे और वो कुछ और ही करना चाहता था। बचपन से ही वो काफी बीमार रहता था इसलिए उसको कई बीमारियों के नाम और उनके बारे में जानकारी थी।
उसने कुछ देसी नुस्खों की किताबें पढ़नी शुरू कर दी। जब वो उन्नीस बरस का हुआ तो एक सुबह अपने दो दोस्तों के साथ घर से बहुत दूर एक कॉलोनी के पास के एक बगीचे में चला गया और वहाँ उन तीनो ने गेहुए वस्त्र पहन लिए और कॉलोनी के गेट के बाहर आ कर एक दरी