kirdar-e-nkab
By Jahanvi
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There are infinite forms of love with many definitions. Sometimes sweetness, sometimes sour, sometimes search, sometimes betrayal. When a feeling of insecurity arises in love, it brings about a change in thoughts. The good and bad thoughts of love have a deep impact
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Book preview
kirdar-e-nkab - Jahanvi
भाग -1
कहानी की शुरुआत।
अभी कहानी की शुरुआत उत्तरकाशी के एक खूबसूरत गांव छोलमी
से शुरू हो होती है ।
जनवरी की ठंड थी । छोलमी गांव में मौसम ने अब करवट ली थी। मौसम ने बारिशों के बाद अब बर्फ की ओर रुख कर लिया , बाहर बर्फ पड़ रही थी । जमीन पे गिरते बर्फ के फाहों के तह एक दूसरे से लिपट कर परत पे परत बनाती मानो जमीन को चांदी सा चमका रही थी । बाहर का वातावरण एकदम वीराना और शांत था . .. .सभी गांव वाले अपने-अपने घरों में दुबक कर बैठे थे। इतनी बर्फबारी में लाइट और सिग्नल की भी बडी दिक्कत हो गई थी। दोपहर में भी लोगो ने घरों के अंदर मोमबती या चर्गिन्ग लाइट जला रखी थी । सभी आग जला कर अपने-अपने घरों में गर्मी का आनंद ले रहे थे क्योंकि बाहर खून जमा देने वाली ठंड थी। किसी की हिम्मत नही थी कि वो एक सेकंड के लिए भी बाहर खड़े हो पाए।
छोलमी गांव के विषय मे।
‘छोलमी’ उत्तरकाशी के हर्षिल गांव से एक किलों मीटर की दूरी पर ऊंचाई वाले पहाड़ में बसा एक छोटा सा खूबसूरत गांव है। गर्मी में यहाँ का वातावरण खुशनुमा हो जाता है इस गांव मे एक सुकून है इसकी खूबसूरती अद्वितीय है जैसे जन्नत के द्वार यही से खुलते हो ।
इसी छोलमी गांव मे सुहानी भी अपने कमरे की खिड़की खोल कर, चाय की चुस्कियों के साथ इस मौसम का मजा ले रही थी । शायद उसने अपने, अब तक की जिंदगी में पहली बार बर्फ को करीब से देखा था। मन तो उसका बाहर जा कर बर्फ के फाहों को करीब से महसूस करने का था ,उसे हथेलियों में रख कर छूने का ,खेलने का था ,पर बहार जाना मतलब जम जाना।
मन में उमंग और उत्साह लिए वो मौसम को देख गाना गुनगुनाने लगती है। यें बर्फीला मौसम उसे कही ना कही रोमांचित कर रहा है। गाते- गाते वो अपनी आंख बंद कर लेती है और ख्यालों में खो जाती है।
(सुहानी आंख बंद कर के गाना गुनगुनाने लगती है )
तभी … एक तेज चीख उसके कानों में पड़ती है।
आआआहहह….. (आवाज एक लड़की की दर्दभरी चीख )
अपने आप में खोई सुहानी का ध्यान टूट जाता है वो आवाज को सुनने की कोशिश करती है पर …कुछ देर के लिए माहौल शांत हो जाता है फिर भी एक हल्का सा डर का भाव उसके चेहरे पे साफ नजर आ रहा था।
यें कैसी आवाज है ? सुहानी खुद से बोली।
वो दीवार घड़ी की तरफ देखती है।
(शाम के चार बजे थे। )
फिर उसी के बीच दूसरी चीख उसके कानों में पड़ती है।
‘सुहानी….सुहानी बचाओ मुझे… ‘आआआह्हह्ह’ ( आवाज दौड़ते- हांफते हुए लड़के की)
जानी-पहचानी आवाज में अपना नाम सुनते ही सुहानी के दिल की धड़कन तेज हो जाती है।
सुहानी तेजी से बाहर की तरफ भागी और आवाज की तरफ नंगे पैर ही निकली। पहाड़ी गांव होने के कारण उसे उपर की तरफ भागना पड़ा। उसकी सांसें फूलने लगी पर बिना रुके वो उस आवाज की तरफ दौड़ने लगी।
थोड़ी दूर जाने पर गांव के पीछे के जंगल में गिरती बर्फ और हल्की धुंध में उसे कुछ तीन लोग दिखाई दिए। जो दो लोगो का पीछा कर रहे थे।
वो लड़का जैसे -जैसे सामने आ रहा था सुहानी की आँखें हैरानी से बडी होती जा रही थी जैसे सुहानी उस लड़के को पहचानती हो। अब लड़के का चेहरा सुहानी को साफ नजर आने लगा जैसे ही लड़के को पहचाना सुहानी चीख पड़ी।
अभिमन्यु ( सुहानी चीखते हुए )
सुहानी की चीख पूरे जंगल में गूंजने लगी ।
अभिमन्यु जैसे -जैसे सुहानी के करीब आता है वैसे -वैसे उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी फिर जैसे ही वो सुहानी के पास पहुंचता है वो वही घुटनों के बल गिर जाता है।
(सुहानी वही स्तब्ध रह जाती है उसे समझ नही आ रहा था क्या हो रहा है ?)
फिर थोड़ा सा हिम्मत करके कहती है - अभिमन्यु , अभिमन्यु उठो क्या हुआ ? किसने किया ?
ऐसे ना जाने सुहानी कितने सवाल कर रही थी लेकिन अभिमन्यु की हिम्मत जवाब दे गई उसकी आँखें धीरे - धीरे बंद हो रही थी आंखों के सामने अंधेरा सा हो रहा था सुहानी के सवालों को उसके कानो ने सुनना बंद कर दिया और अभिमन्यु वही बेसुध हो गया उसकी हिम्मत खत्म हो गई थी उसमें ना बोलने की हिम्मत थी ना खड़े होने की। माथे से जो खून बह रहा था ठंड की वजह से खून भी अब जम गया था।
सुहानी कुछ समझ पाती आगे कुछ बोलती, उसे फिर से उस अनजान लड़की के चीखने की आवाज आई।
(आअह्हह्ह…..बचाओ)
वो अनजान लड़की दौड़ते हुए अपने आप को बचाते , दौड़ते फिसल कर गिर गई। वो गिरते - पलटते नीचे ढ़लान की तरफ जा रही थी कि तभी वहा एक समतल जमीन पे आकर उसका शरीर ठहर गया फिर वो भी वही बेहोश हो गई। चेहरा नीचे की तरफ होने के कारण उसका चेहरा सुहानी ठीक से देख नही पाई।
इसी बीच यें सब हो ही रहा था वो तीन अनजान लोग जो उनका पीछा कर रहे थे वो आगे अभिमन्यु की तरफ बढ़े ।
जैसे ही वो आगे बढ़े उनकी नजर सुहानी की तरफ गई वो तीनों आदमी सुहानी को देखते ही एकाएक रुक गए। सुहानी को देख उनके होश फाख्ता हो गए। ठंड में भी पसीने की बूंदे उनके चेहरे में साफ नजर आ रही थी।
उनके बढ़ते पैर मानो ऐसे जम गए जैसे बर्फीली जमीन ने उनके पैर जकड़ लिए हो और आगे बढ़ने से रोक रही हो।
वो तीनों एक दूसरे को देखने लगे, आंखों ही आंखों में एक - दूसरे से कुछ कहने लगे। उनके होंट कुछ बोलना चाह रहे थे पर बोल नही पा रहे थे।
तभी एक ने वहां से अपनी भौंहें उचका कर भागने का इशारा किया फिर तीनो एक सेकेंड में छूमंतर हो गए।
सुहानी कुछ समझ नही पाई आखिर हो क्या रहा है? वो तीनो भागे क्यूँ ?
तभी उसकी नजर अभिमन्यु पे गई उसे बडी हिम्मत से उठाने लगी। वो रोना चाहती थी पर रो नही पा रही थी क्योकि वो जानती थी की अगर वो रोयेगी तो कमजोर पड़ जाएगी। ऐसे हालात में उसे हिम्मत दिखानी है।
सुहानी अभिमन्यु को इस तरह छोड़ के जा भी नही सकती थी और बिना कही जाए अभिमन्यु की मदद भी नही कर सकती थी फिर वो जोर -जोर से चीखने लगी। उसकी आवाज पूरे जंगल में गूंज रही थी थोड़ी देर में वो चीख गांव वालों के घरों के अंदर तक जाती है हालांकि शब्द साफ-साफ समझ नही आ रहे थे लेकिन पता लग रहा था की कोई मुसीबत मे है। फिर सुहानी थोड़ा आगे आती है और खड़ी हो जाती है जहाँ से लोगो को उसकी आवाज सुनाई दे। सुहानी अपनी आवाज तेज करती है।
जयराज अंकल ! जयराज अंकल ! प्लीज यहाँ आइए ! मदद करिए। जयराज अंकल!
चीख से कुछ पड़ोसी अपने - अपने घरों से निकले, जिस तरफ से आवाज आ रही थी उसी तरफ आवज का पीछा करते हुए उपर जंगल की तरफ गए। जब वो उपर घटना स्थल पर पहुंचे वहां का दृश्य देख सभी हक्का- बक्का रह गए। सफेद बर्फ में खून के धब्बे उन्हें साफ-साफ दूर से ही नजर आ रहे थे। सुहानी वहां बैठी कांपते हुए रो रही थी। उसके सामने जमीन पर अभिमन्यु बेहोश पड़ा था जैसे - जैसे बर्फ उसके शरीर पर पड़ रही थी वो उसे हटाने लगती। ऐसा होश उड़ा देने वाला दृश्य देख सभी सकते में आ गए थे, फिर भी हिम्मत जुटा कर सभी पड़ोसी सुहानी के पास आ रहे थे। वे सब आपस में खुसुर - पुसुर भी करने लगे। सब एक - दूसरे से आपस में कह रहे थे -अरे !ये क्या हुआ ?अभिमन्यु जख्मी कैसे हुआ ? इस तरह सवालों पे सवाल करते सभी सुहानी की तरफ बढ़ रहे थे। जिसमें जयराज अंकल भी थे।
क्या हुआ सुहानी बेटा ? (जयराज अंकल बोले )
ये चीखने चिल्लाने की आवाज कैसी ?
और ये अभिमन्यु को क्या हुआ ?कैसे चोट आई ?
अंकल कुछ लोगो ने हमला किया - सुहानी अपने हल्की भीगी आँखें पौंछते हुए बोली।
जयराज – हमला ? किसने ? कौन थे ?
सुहानी फिर बोली – पता नही अंकल ,प्लीज अभिमन्यु को हॉस्पिटल पहुंचाने में मेरी मदद कीजिए।
जयराज अंकल -अरे हाँ, हाँ बेटा क्यूँ नही! ये भी कहने की बात है।
जयराज अंकल ( फिर से ) बेटा सुहानी रुको मैं अभिमन्यु को अस्पताल ले जाने का इंतजाम करता हूँ बाकी औरो को भी बुला लाता हूँ, तुम परेशान मत होना सब ठीक हो जाएगा।
सुहानी सिर हिला कर हाँ करती है।
जयराज अंकल मुड़ते है तभी सुहानी को उस अनजान लड़की का ख्याल आता है। वो जयराज अंकल से कहती है – सुनिये अंकल सिर्फ अभिमन्यु नही कोई और भी है जिसकी मदद करनी है।
जयराज अंकल (असमंजस में) – कोई और? दूसरा कौन ?
सुहानी उस जमीन पर पडी अनजान लड़की की तरफ हाथ से इशारा करती है और बोलती है – वो ?
अभिमन्यु को देख सब इतने चिंतित थे कि किसी का ध्यान उस लड़की पर नही गया। जयराज अंकल को इस समय कौन है ?कहाँ से है ? क्या हुआ ? ऐसे सवाल पूछना मुनासिब नही लगा। क्यूंकि इस समय हालात ऐसे थे की सवाल पूछने से ज्यादा मदद करना जरूरी था। थोड़ी सी देरी भी बडी गड़बड़ कर सकती थी।
दो लोग जख्मी पड़े थे फिर खून जमा देने वाली ठंड और उपर से गिरती बर्फ… मानो सारे आफत आज ही आने थे। जो घरों से बाहर निकले थे वो आनन - फानन में चीख सुन कर निकले थे। बस किसी ने टोपी किसी ने शौल पहनी थी। जल्दी-जल्दी में छाता लाना भी भूल गए थे। बर्फ अभी रुकी नही थी। बर्फ के फाहे अब सभी के सर और बदन पर पड़ रही थी चीख इतनी तेज और दर्द भरी थी की लोग जैसे-तैसे बाहर निकल आये थे। ऐसा नजारा देख उनकी ठंड मानो छु मंतर हो गई। जैसे - जैसे बर्फ उनके शरीर पर पड़ती है वो झाड़ लेते है।
जयराज अपने पड़ोसी साथियो से कहते है -श्याम ( जयराज के पड़ोसी मित्र ) तुम और मैं घर से चादर लाते है और बिन्नु (जयराज के पड़ोसी मित्र )तुम दूसरे पड़ोसी को यहाँ बुला लाओ जितने लोग होंगे हमे अस्पताल ले जाने में आसानी होगी।
श्याम – ठीक है।
बिन्नु -ठीक है।
जयराज -जल्दी ! वक्त कम है।
( फिर तीनों जाते है अपने अपने काम में )
जयराज के घर में।
जयराज अपनी पत्नी और बेटे से – मीरा , शिबू बहुत बडी गड़बड़ हो गई है मुझे जरा बेड शीट देना
(जयराज में बिल्कुल भी सब्र नही था वो जल्दी से जल्दी घटना स्थल पर जाने के लिए व्याकुल थे)
मीरा और शिबू एक साथ बोले -क्या हुआ ?
जयराज – अभी वक्त नही है तुम दे दो जल्दी।
(शिबू कमरे में जाता है और बेडशीट ले आता है )
शिबू – पापा हुआ क्या है इतने जल्दी में क्यूँ हो ? ( बेडशीट देते हुए )
जयराज अपने बेटे से - एक काम कर बेटा तू भी चल। एक से भले दो।
(शिबू जाने के लिए तैयार हो जाता है )
मीरा – मैं भी चलती हूँ।
जयराज -नही मीरा, बाहर ठंड है। तुम यही ठहरो जब हम वापिस आएगे तो तुम्हारा यहाँ होना जरूरी है।
मीरा धीमी और सहमी स्वर में – ठीक है।
शिबू और जयराज निकल पड़ते है फिर जयराज पीछे मुड़ते है जैसे उन्हें कुछ याद आया हो। अपनी पत्नी से बोलते है -मीरा तुम्हारे जूते भी देना।
मीरा -जूते? क्यूँ ? (असमंजस और धीमी स्वर में )
जयराज -हाँ, जल्दी। थोड़ा जल्दी करो बिना सवाल लिए।
मीरा जूते की जोड़ी को थैले में डाल कर शिबू के हाथ पकड़ा देती है
शिबू और जयराज कमरे से बाहर निकल पड़ते है। मीरा हाथ जोड़ ऊपर की तरफ देख कर दुआ करती है – हे भगवान सब ठीक हो अगर ना हो तो ठीक करना।
श्याम का घर।
उधर श्याम अपने घर में अपनी पत्नी को आवाज देता है -अनीता ,अनीता
उधर अनीता भी व्याकुल बैठी थी कब उसका पति श्याम आए और बाहर क्या हुआ उसके बारे में बताए।
अनीता अपने पति की आवाज सुन कर उठ खड़ी हो जाती है फिर पति की तरफ बढती है।
अनीता -क्या हुआ है बाहर ? ये आवाज कैसी थी ?
श्याम -बहुत बडी बात हो गई है अभिमन्यु बेहोश है उसे अस्पताल ले जाना है सुनो तुम अंदर से चादर ले आओ।
अनीता -पर चादर क्यूँ ?( असमंजस में )
श्याम -तुम ले आओ।
अनीता -ठीक है लाती हूँ।
अनीता कमरे की तरफ जाती है और बेडशीट ले आती है फिर श्याम को देते हुए कहती है - लो जरूरत हो तो में भी आऊं।
श्याम -नही नही ,तुम यही ठहरो! मैं आता हूँ।
ऐसा बोल कर जितनी जल्दी हो सके वहां से निकल जाता है।
अनीता भी परेशान वही खड़ी दीवार में बने मंदिर की तरफ देखती है भक्ति भाव और लाचारी से अपने भगवान की तरफ ऐसे देखती है मानो कह रही हो ‘भगवान सब ठीक करना’ एक लम्बी आह भरती है।
उधर बिन्नु नजदीक के एक -एक के घर जाकर उन्हें घटना स्थल पर आने को कहता है। जब बिन्नु उन्हें घटना वाली बात कहता है सभी के चेहरे के रंग उड़ जाते है। सभी ज्यों-त्यों घर से निकल पड़ते है।
इस तरह सभी उस घटना स्थल पर पहुंचते है जहाँ सुहानी ,अभिमन्यु और अनजान लड़की थी।
उधर सुहानी बार - बार अभिमन्यु को उठाने की कोशिश कर रही होती है उसके हाथों को अपने हाथों से रगड़ कर उसे गर्माहट देने की कोशिश करती है लेकिन अभिमन्यु टस से मस नही होता।
उसका शरीर भी ठंडा पड़ रहा था। सुहानी की बैचेनी और घबराहट बढ़ती जा रही थी।
जो दो-चार पड़ोसी बचे थे, वो उस अनजान लड़की को संभाल रहे थे। शिबू और श्याम उसे पलटते है वो दर्द से कहरा रही थी , कांप रही थी। उसकी थकी आँखें कभी खुलती कभी बंद होती लेकिन बोलने की हालत में वो भी नही थी।
स्थानीय लोग उससे बात करने की कोशिश करते है।
एक व्यक्ति -बेटा हिम्मत रखो, कुछ नही होगा।
दूसरा व्यक्ति -अभी हम तुम्हे अस्पताल ले जाते है।
तीसरा व्यक्ति अपनी शौल ओढ़ा देता है क्यूंकि वो लड़की ठंड से कांप रही थी।
ऐसे भयानक दृश्य देखने के बाद तो स्थानीय लोगो की ठंड ही गायब हो गई उन्हें ठंड की परवाह ही नही थी।
जयराज अभिमन्यु की तरफ बढ़ते हुए श्याम और बिन्नु से कहते है -बिन्नु तुम इस चादर को फैलाने में मदद करो जिसमें हम अभिमन्यु को इसमें उठा के ले जा सके और श्याम तुम कुछ और लोगो की मदद से इस लड़की की मदद करो।
श्याम, शिबू और बिन्नु ‘ठीक है’ कहते हुए आगे बढ़ते है।
अब जयराज ,बिन्नु, सुहानी और कुछ पड़ोसी अभिमन्यु को उठाते है और चादर में लेटा लेते है फिर सभी चादर का किनारा पकड़ कर उठा अस्पताल की तरफ निकल पड़ते है।
उधर दूसरी तरफ श्याम, शिबू बाकी बचे लोग लड़की को उठाते है चादर में लिटा लेते है फिर उसे उठा कर अस्पताल की तरफ बढ़ते है।
अस्पताल गांव से नीचे की तरफ हर्षिल गांव में था। घटना स्थल से लगभग एक किलोमीटर का रास्ता था। उनको उतराई पैदल उतरना था। गाड़ी ले जाना संभव नही था। उन्हें ऐसे ले जाने में थोड़ी तो कठिनाई होने वाली थी।
उधर ये सब दृश्य उनके परिजन कुछ खिड़कियों से कुछ बाहर निकल कर देख रहे थे। सभी मन ही मन दुआ करने लगे की सब ठीक हो क्यूंकि आज समय के साथ -साथ मौसम भी भारी था।
(सभी पहाड़ी से नीचे उतरते है सभी धीरे -धीरे चलते हुए बर्फ की फाहों और धुंध में एक -एक व्यक्ति गायब से हो रहे थे।
वही मीरा के चेहरे पे डर और उदासी का भाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। सभी उसकी आंखों से ओझल हो चुके थे। वो वही शौल ओढ़े खिड़की के पास बैठ कर एकटक उसी जगह देखने लगी जहाँ से वो सभी गुजरे थे।
जयराज और गांव के विषय में__
जयराज उत्तरकाशी के छोलमी गांव में अपनी पत्नी मीरा और बेटे शिबू के साथ रहते थे वो देहरादून शहर में बेंक मेनेजर के पद पर कार्यरत थे। बेटा हर्षिल कॉलेज में पढ़ाई करता था। जयराज अपने साल की बची हुई छुट्टिया काटने अपने गांव में आए थे। उनके अपने सेब के बगीचे भी थे जिनकी देखभाल करना उन्हें बेहद पसंद था। इस बार अच्छी बर्फ हो रही थी जितनी अच्छी बर्फ होगी सेब की फसल के लिए उतना ही अच्छा था। बेटे की भी छुट्टिया चली थी। जयराज का एक खुशहाल और संपन्न परिवार था। पूरे गांव में उनकी एक अलग शख्सियत थी। दिलदार ,हंसमुख, मददगार के कारण। बिन्नु और श्याम उसके जिगरी और बचपन के दोस्त थे जहाँ श्याम हर्षिल (छोलमी गांव से लगभग एक किलों मीटर की दूरी पर ) के स्कूल में मुख्याध्यापक थे वही बिन्नु की गांव में दुकान थी। कुल मिला कर सभी अपनी - अपनी जगह सुखी और संपन्न थे व पूरे गांव में भाईचारा था जहाँ आपसी समास्याओ का निपटारा एक परिवार की तरह किया जाता था।
सुहानी के विषय में।
सुहानी उत्तराखंड़ के रुद्रप्रयाग शहर से थी। पेशे से डाक्टर सुहानी की पोस्टिंग हर्षिल में थी। अभी सुहानी की हर्षिल में नई पोस्टिंग थी पर वो थोड़ा, भीड़-भाड़ से दूर रहना चाहती थी तो, उसने अपना किराए पर कमरा छोलमी गांव में जयराज के घर पर लिया था। जयराज के गांव में दो घर थे, पुराना घर उन्होंने सुहानी को किराए पे दिया था। सुहानी औसत रंग रूप की एक साधारण सी दिखाने वाली लड़की थी स्वभाव में नरम बोलचाल में स्थिरता और मिठास थी। सूरत से ज्यादा लोग सीरत से उसे पसंद करते थे।
सुहानी अपने पति अभिमन्यु के साथ रहती थी। अभिमन्यु अपनी पढ़ाई के बाद आई.ए.एस. की तैयारी कर रहा था सुहानी भी यही चाहती थी की अभिमन्यु सरकारी नौकरी करे। वैसे तो अभिमन्यु एक अच्छी वेल सेटेल परिवार से था उसके परिवार की छठी पीढ़ी हीरे और कपड़ो का कारोबार कर रही थी लेकिन दो भाइयो में से छोटा अभिमन्यु का मन बिल्कुल भी अपने फेमिली बिसनेस में नही था। ऐसा नही था की उनका शहर में रुतबा नही था, पूरे शहर में सबसे अमीर और सम्मानित परिवार था। बड़े- बड़े मंत्री ,अधिकारियों और प्रशासन से उनका अच्छा मेल जोल, उठाना बैठना था। इतना ही नही उनके कंपनी के कपड़े विदेशों तक जाते थे। पर ,अभिमन्यु को सरकारी नौकरी ,सरकारी नौकरी का रुतबा, सरकारी