Jindgi Ek Sangharsh: Meri Aatmakatha
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यह पुस्तक एक व्यक्ति दो व्यक्तित्व के संघर्ष की कहानी है-एक शिक्षक और एक अधिकारी के तत्कालीन सरकारी व्यवस्था मे व्याप्त भ्रष्टाचार और पक्षपात से संघर्ष की गाथा है। इसी संघर्ष की आंच में तपकर व्यक्ति जीवन के गीत गाता है। यह संघर्ष होश संभालने के बाद से आरंभ होता है और जीवन पर्यंत चलता है। हर व्यक्ति के जीवन में दो संघर्ष निरंतर चलते हैं एक व्यक्ति के अंदर चलता है, क्या ठीक है क्या ठीक नहीं है क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए, इस ऊहापोह की स्थिति में अंदर चलने वाले विचारों से संघर्ष और दूसरा बाहरी दुनिया में जीवन में आने वाली कठिनाइयों से संघर्ष, प्रतिकूलताओं से संघर्ष। संभवतः विपरीत परिस्थितियों के समक्ष आत्म समर्पण करने वाले लोगों को साहस देने का काम यह पुस्तक करेगी। जीवन में आने वाले प्रलोभनों का शिकार होने से बचने के लिए बल प्रदान करेगी। दृढ़ इच्छाशक्ति और झंझावात में खड़े रहने का साहस व्यक्ति को कठिनाइयों के महासागर से पार उतार देते हैं।
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Book preview
Jindgi Ek Sangharsh - Raj Narayan Singh
जिंदगी एक संघर्ष
‘मेरी आत्मकथा’
राज नारायण सिंह
यह पुस्तक सत्य घटनाओं पर आधारित जीवनी है और इस पुस्तक में इस्तेमाल किये गए नाम, पद, जगह, घटनाओं इत्यादि को परिवर्तित किया गया है और वास्तविकता में किसी भी प्रकार से किसी व्यक्ति, जगह, घटना इत्यादि से मिलान बस एक संयोग मात्र है।
यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि लेखक की लिखित पूर्वानुमति के बिना इसका व्यावसायिक अथवा अन्य किसी भी रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। इसे पुनः प्रकाशित कर विक्रय या किराया पर नहीं दिया जा सकता तथा जिल्दबंद, इलेक्ट्रॉनिक अथवा किसी भी अन्य रूप में पाठक के मध्य इसका परिचालन नहीं किया जा सकता। लेखक की अनुमति के बिना किताब का कोई भी हिस्सा किसी भी प्रकार से इलेक्ट्रॉनिक, मशीनी, फोटोकॉपी या रिकॉर्डिंग द्वारा प्रतिलिपित या प्रेषित नहीं किया जा सकता।ये सभी शर्तें पुस्तक खरीददार पर भी लागू होंगी। इस सन्दर्भ में सभी प्रकाशन अधिकार सुरक्षित है।
मां की ममता,
पिता की कर्तव्यनिष्ठा,
पत्नी की सिद्धान्त प्रियता,
भाइयों के प्रेम और
बच्चों के निश्छल व्यवहार
को समर्पित
पुस्तक परिचय
मेरे जीवन का प्रेरणा श्रोत
Sweet indeed are the uses of adversity.
- William Shakespeare
यह पुस्तक एक व्यक्ति दो व्यक्तित्व के संघर्ष की कहानी है-एक शिक्षक और एक अधिकारी के तत्कालीन सरकारी व्यवस्था मे व्याप्त भ्रष्टाचार और पक्षपात से संघर्ष की गाथा है। इसी संघर्ष की आंच में तपकर व्यक्ति जीवन के गीत गाता है।
यह संघर्ष होश संभालने के बाद से आरंभ होता है और जीवन पर्यंत चलता है। हर व्यक्ति के जीवन में दो संघर्ष निरंतर चलते हैं एक व्यक्ति के अंदर चलता है, क्या ठीक है क्या ठीक नहीं है क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए, इस ऊहापोह की स्थिति में अंदर चलने वाले विचारों से संघर्ष और दूसरा बाहरी दुनिया में जीवन में आने वाली कठिनाइयों से संघर्ष, प्रतिकूलताओं से संघर्ष।
संभवतः विपरीत परिस्थितियों के समक्ष आत्म समर्पण करने वाले लोगों को साहस देने का काम यह पुस्तक करेगी और जीवन में आने वाले प्रलोभनों का शिकार होने से बचने के लिए बल प्रदान करेगी।
दृढ़ इच्छाशक्ति और झंझावात में खड़े रहने का साहस व्यक्ति को कठिनाइयों के महासागर से पार उतार देते हैं।
राज नारायण सिंह
फोन : + 91 7897588790
लेखक का परिचय
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के एक छोटे से गांव में 1939 के फरवरी महीने में हुआ था। गांव का नाम सोनबरसा जहां सोने की वर्षा होती हो पर बात ऐसी थी नहीं इसलिए कभी-कभी यह नाम मन में बड़ी-बड़ी आशाएं जगाता था। कच्ची सड़क कस्बे तक जाने वाली, गांव में कोई स्कूल नहीं, पर कम साधनों में भी लोग खुशहाल और प्रसन्न थे। बगल के गांव खरहाटार के प्राइमरी स्कूल में दाखिला हुआ जब मैं 7 वर्ष का था। शिक्षक ने रजिस्टर में जन्मतिथि अनुमान से एक जुलाई 194 1 दर्ज कर दी।
घर से सुबह खेलने दौड़ते विद्यालय जाते और छुट्टी होने पर शाम को खेलने दौड़ते घर चले आते। 1951 में पांचवी कक्षा की परीक्षा पास की, मिडिल स्कूल सुखपुरा जो गांव से एक कोस अर्थात 3 किलोमीटर था, मे एडमिशन हुआ।1954 में इंटर कॉलेज रतसर में प्रवेश मिला जो 5 कमी दूर था, वैसे ही दौड़ते -खेलते स्कूल जाते आते। 1956 में मैंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास की। अपने कॉलेज में प्रथम और जिले में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया। इंटरमीडिएट साइंस की परीक्षा रांची कॉलेज रांची से पास किया और बीएससी की परीक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय से।
उस समय नौकरी के संबंध में लोगों की अच्छी धारण नहीं थी। कहावत थी - उत्तम खेती मध्यम बान, नीच चाकरी भीख निदान।
परन्तु परिवार की आर्थिक स्थिति ने नौकरी करने के लिए वाध्य किया। नौकरी की तलाश में समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर (बिहार) के स्कूलों का चक्कर लगाते हुए दरभंगा, बिहार जा पहुंचा जहां राज हाई स्कूल दरभंगा में शिक्षक के पद पर नौकरी मिल गई। एक साल के अंदर ही गंगापुर हाई स्कूल चला गया और 4 वर्षों तक वहां विज्ञान शिक्षक के पद पर शिक्षण का कार्य करता रहा। मेरे कार्यकाल में मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में विज्ञान के छात्रों के उत्कृष्ट प्रदर्शन ने मेरे शिक्षण के प्रति प्रेम और उत्साह को मजबूत किया। वर्ष 1965 में मत्स्य विभाग, बिहार सरकार में मत्स्य निरीक्षक के पद पर नियुक्त हुआ और उप मत्स्य निदेशक के पद से 1999 में सेवा निवृत्त हुआ।
सेवानिवृत्ति के बाद 2004 में मैंने एक माध्यमिक विद्यालय महात्मा गांधी शिक्षण संस्थान की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई और 2021 तक उस विद्यालय में शिक्षण का कार्य करता रहा। मेरे अंदर का शिक्षक अभी भी जिंदा है और वह सेवानिवृत्ति नहीं चाहता।
मां के लाड़ प्यार और सहिष्णुता, जीवन संगिनी की सेवा और परिवार के प्रति चिंता और पिताजी की श्रमशीलता और ईमानदारी का मेरे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। अपने मामा जी से मैने प्रशासनिक और जीवन व्यवहार के बहुत से पाठ पढ़े। आज मैं जो कुछ भी हूं इन लोगों के चलते हूं। प्राइमरी स्कूल के शिक्षक खलीफा राम, मिडिल स्कूल के शिक्षक सत्यदेव सिंह और इंटर कॉलेज के प्राचार्य राम नेता सिंह की नियमबद्धता और अनुशासन- प्रियता ने मेरे जीवन पर गहरी छाप छोड़ी थी।
संपादक की कलम से
श्री राज नारायण सिंह, इस पुस्तक के लेखक मेरे पिताजी हैं। पिताजी की ये किताब उनकी आत्मकथा है।
भाइयों में सबसे बड़े होने के नाते, पिताजी ने बचपन से ही अपने संयुक्त परिवार के हर बोझ को कम करने के खातिर अपनी खुशियों को भुला दिया और जिस उम्र में बच्चे पढ़ते हैं, उस समय पैसे कमाने निकल पड़े।
ये आत्मकथा ऐसे व्यक्ति की है जिसने हर मुश्किल को बहुत ही करीब से देखा है और एक फिल्मी हीरो की तरह संघर्ष करते हुए हार के मुंह से जीत हासिल की है। अपने भोलेपन के चलते जहां सैकड़ों लोगों ने इनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हुए इनसे लाखों रुपए ठगा है; वहीं नौकरी में इनकी ईमानदारी और सच्चाई के साथ नाता इनके बार बार निलंबन का कारण बना है; पर इनका व्यक्तित्व ही ऐसा है कि सब कुछ भुलाकर ये वर्तमान में मुस्कुराते हुए चलते रहते हैं।
पिताजी ने बेटी बेटा का भेद मिटाकर सभी को बराबरी का दर्जा देकर सबको अच्छे से पढ़ाया और स्वतंत्र रूप से अपने-अपने निर्णय लेने का पूरा अधिकार दिया है। पिताजी ने केवल अपने ही बच्चों को नहीं बल्कि मेरे चाचा, मामा और मौसी के बच्चों को भी अपने पास रखकर पढ़ाया है और उच्च शिक्षा के लिए हर प्रकार से सहयोग किया है जिसके चलते आज वो अपने पैरों पर खड़े हैं और एक बेहतरीन जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
बचपन से ही मैंने हमेशा अपने पिताजी को एक अनुशासित व्यैक्ति के रूप में देखा है। आज 85 साल की उम्र में भी मेरे पिताजी हर सुबह 5 बजे उठकर टहलने जाते हैं। गर्मी हो, बरसात हो या ठंड हो; उन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता। बरसात में तो मुस्कुराते हुए छतरी लेकर निकल जाते हैं। उनका कहना है कि किसी भी कार्य को नहीं करने के तो हजार बहाने हैं पर उन बहानों को साइड रखकर अपने कार्य में लगातार, बिना रुके चलते रहना हमारे जीवन को और भी बेहतर बनाता है।
पेड़, पौधे और मिट्टी से इनकी गहरी मित्रता है। शादी बारात और जन्मदिन के हर आमंत्रण में जाकर सभी प्रकार के भोजन का स्वाद लेना इन्हे आज भी बहुत पसंद है। जितना बुजुर्ग लोगों के साथ उठते बैठते हैं उतना ही युवाओं और बच्चों के साथ दोस्ती है इनकी। कुछ महीने पहले इनके एक स्टूडेंट को सरकारी नौकरी मिली तो ये घर में बिना बताए घंटों अपने उस स्टूडेंट के साथ रेस्टोरेंट में पार्टी में शामिल थे और मां बेचारी ढूंढ ढूंढ कर परेशान थी। इस उम्र में भी अपने बचपना, युवावस्था को जमकर जीते हैं पापा मेरे।
एक ईमानदार व्यक्ति को क्रोध भी बहुत आता है जहां भी उसे लगता है कि किसी भी प्रकार की बेईमानी हो रही है। मैने अपने पिताजी को किसी भी प्रकार के अन्याय या गलत चीजों के खिलाफ हमेशा लड़ते देखा है बाहर भी और घर में भी। वो आज भी हर जगह; जहां भी उन्हें लगता है कि कुछ सुधार की जरूरत है; अपने प्रभावशाली विचार मुख्यमंत्री, मंत्री, कलेक्टर को चिट्ठियों के रूप में भेजते रहते हैं।
पढ़ाई से उन्हें बहुत प्रेम है। दिन भर किताबों और अखबारों में डूबे रहते हैं। रूढ़िवादिता और अंधविश्वास के बहुत खिलाफ हैं बचपन से ही और उनका मानना है कि किसी भी प्रकार का परिवर्तन अगर सकारात्मक है तो उसे अपनाने में कतराना नहीं चाहिए। उनका ये भी मानना है कि शिक्षा ही ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल से समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों का जड़ से सफाया किया जा सकता है।
मेरे पिताजी का मानना है कि अगर किसी भी व्यक्ति को प्रोत्साहित किया जाए सही दिशा में तो वो हमेशा अच्छा करता है। नकारात्मक होकर किसी के भी उत्साह को कम करना अच्छे परिणाम बिल्कुल नहीं देता है।
पिताजी को बच्चों से बहुत लगाव है और सभी क्लास के बच्चों को पढ़ाने में इनको बहुत आनंद आता है। अभी भी अगल बगल के गांव के बच्चे बच्चियां किसी भी वक्त घर आकर पिताजी से अपने डाउट्स क्लियर करते हैं। बहुत अच्छा लगता है जब पिताजी को घेरकर अलग अलग जाति धर्म के बच्चे इनसे पढ़ते रहते हैं। बहुत लोगों ने कहा कि कोचिंग सेन्टर एक खोल लीजिए; उससे आमदनी होगी पर पिताजी को निःशुल्क आजाद रहकर पढ़ाने में बहुत मजा आता है और वो बस हमेशा किसी की भी ऐसी बात को हंसकर टाल देते हैं।
पटना से मत्स्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर के पद से रिटायर होने के बाद पिताजी बड़े शहर को प्राथमिकता न देते हुए अपने गांव में आकर सीधे बस गए। उनका कहना है कि अपने गांव की मिट्टी और अपने लोग के करीब रहने में जो आनंद है, संतोष है, उसकी विवेचना करने अगर व्यक्ति बैठे तो एक मोटी किताब भी कम पड़ जाए।
अपने पिताजी को मैंने देखा है हर किसी की मदद करते हुए। मुश्किल के वक्त में कोई भी इनके घर अगर मदद के लिए आया है, तो आजतक मैने नहीं देखा कि वो कभी खाली हाथ लौटा हो। जितने कड़े शब्दों से लोगों की गलतियों को बताते हैं उनके सामने ही; उतने ही नर्म दिल से उनके दर्द को भी सुनते हैं।
हर वर्ग के लोग, बच्चे से बूढ़े तक इनको हर जगह प्यार करते हैं। दोस्ती को तो बहुत सहेजकर रखते हैं पिताजी और आज भी अपने पुराने दोस्तों से कोई न कोई बहाना ढूंढकर मिलते रहते हैं।
एक दिन मेरे घर पर पिताजी अपने दोस्त पंडित जी और मौलवी जी के साथ चाय पी रहे थे। तीनों को जब मैने एक साथ दूर से तरह तरह की बातों पर ठहाके लगाते हुए देखा तो महसूस हुआ कि दोस्ती कितनी प्यारी चीज होती है, जिसमे दिल से जुड़ाव होता है; जाति धर्म और सभी तरह के बकवास के परे।
ये किताब मेरे पिताजी के जीवन काल की हर उस घटना को बयां करती है, जिसने इनके जीवन पर छाप छोड़ी है। किस तरह इन्होंने जीवन में अपने संघर्ष की लड़ाई लड़ी है; ये किताब उन्ही के शब्दों में उनकी कहानी व्यक्त करती है।
बहुत बहुत बधाइयां पापा। मेरी अनंत शुभकामनाएं आपकी इस प्यारी किताब के लिए। आप हमेशा स्वस्थ रहें और ऐसे ही मुस्कुराते रहें।
ढेर सारे प्रेम के साथ
आपका बेटा
अमित रंजन ‘आर्यन’
एमबीए (एच आर), यूजीसी नेट (एच आर)
एमएससी (जियोफिजिक्स), आईआईटी खड़गपुर
बीएससी, इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
लेखक: बीएचयू के वो दिन
अनुक्रम