Yayavar Duniya ki Kitab (Nadi Aivam Parkamwasi)
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About this ebook
The author has written an excellent travel poetry collection by combining the subtle experiences, emotions and beauty of the greatest travelers with his own travels, which includes the relationship with nature and the exciting journey in a completely new way, which w
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Yayavar Duniya ki Kitab (Nadi Aivam Parkamwasi) - Dr Harendra Pratap Singh Chouhan
यायावर
यायावर
प्रकृति के आभार के लिए युगों युगान्तरों से शब्द तलाशने की अधूरी यात्रा हैं यायावर,
जहाँ मापदण्ड स्वयं शंभू बन रचे जाते
जहाँ तांडव भी स्वयं इच्छा पर घट जाता
जहां अनिश्चितता ही सत्य हैं
जहाँ परिवर्तन ही नियम हैं
जहाँ एक और कोपलें उगती हैं
जहाँ एक और पत्ते झड़ जाते
प्रारम्भ शुन्य और अंत को एक ही समय काल में देख लेने वाला दृष्टा हैं यायावर,
आँधियो के समूहों को निहारता
प्रचंड लहरों को देखने का साहसी
जंगल को घर कहता
एकांत में सबसे बेहतर होता
अनंत ह्रदयों का मालिक हैं यायावर
शक्ति आजमाने को
धूल में खो जाने को
कुछ दूर ही हो आने को
मचलता तड़पता आतुर होता यायावर
जिसके यौवन पर कभी झुर्रियां नहीं सताती
अपरिचित राहों पर जो विजय गीत गाता
प्रगति के मापदंड बदलों सब जगह चिल्लाता
अंतर्द्वंद से लड़ता
यथार्थ संवेदनाओं से जूझता यायावर
स्वर से, शब्दों से, भावों से
वेदनाओं कुंठाओं मौन से भी कहता यायावर
सब तरफ मतलब भरे हैं
चारों तरफ़ अनजाने खड़े हैं
कबीर के वो राग गाता
अपना तारा खूब बजाता
भीड़ में अकेला पड़ जाता हैं यायावर
यायावर हिमालय की आखरी उम्मीद हैं
समुद्रों की गर्जन हैं
नदियों का सन्देश वाहक हैं
हवाओं की आख़री साँस हैं
पेड़ों का रक्षक हैं
समाज का आईना हैं
पीढ़ियों का मार्गदर्शन हैं
वन्यजीवन का पीड़ा निवारक हैं
प्रकृति का संगीत हैं
यायावर शरीर नहीं जीवन चेतना हैं
मैं कीमती आदमी हूँ
मैं कीमती आदमी हूँ
ज़रा अदब से मिला करो
मैंने फूल को खिलते हुए देखा हैं
मैंने पेड़ पर फल को पकते हुए देखा हैं
मैंने बेलों को पेड़ों पर चढ़ते हुए देखा हैं
मैंने तोंतो को अमरुद कुतरते हुए देखा हैं
मेरे सामने गिलहरियाँ बीज़ उठाती हैं
मेरे सामने पत्तियाँ आती, फैलती, सिकुड़ती,
पीली पड़ती और झड़ जाती हैं
मैंने चिड़िया के बच्चों को पहली उड़ान भरते देखा हैं
मैंने हवा को भी बादल उड़ाते हुए देखा हैं
मैंने देखा हैं ओस की बूँद को घास पर नाचते हुए
मैंने देखा हैं मकड़ी को जाला बनाते हुए
मेरे सामने रोज़ मधुमक्खी छत्तो में रस भरती हैं
मेरे सामने कुदरत रोज़ बदलती हैं
मेरे सामने नदियाँ सूख रही हैं
मेरे सामने जंगल खोखले हो पीछे जा रहे हैं
मेरे सामने नालें दम तोड़ते जा रहे हैं
मेरे सामने पहाड़ पत्थर फेंक रहा हैं
मेरे सामने इंसान नई बस्ती खोज रहा हैं
मैंने आहिस्ता से निहारा हैं
मैंने जिज्ञासु सा जाना हैं
मैंने समय दिया हैं
मैंने उस क्षण को जिया हैं
मैंने असाधारण देखा हैं
मैं यायावर हूँ
जब देह भोग-भोग के थक जाओगे
जब देह भोग-भोग के थक जाओगे
आर्थिकता का कोई गीत नहीं गाओगे
सुख सुविधाओं का कोई मोल नहीं बचेगा
तुम्हारा ज़मीर का कोई टुकड़ा नहीं बिकेगा
समाज के सारे दायित्व खोखले लगने लगेंगे
सब रिश्ते नाते झूठे लगने लगेंगे
जब अस्तित्व तुम्हें टोकने रोंकने झंझोड़ने लगेगा
उम्मीद का कोई दीप तुम्हारे अंदर जलने लगेगा
तब किसी कोने से मैं अचानक जीवित हो उठूँगा
बस तुम याद रखना मैं कभी नहीं मरूँगा
मैं हुँ तुम्हारे अंदर का यायावर
जो यात्राएँ आप को बेहतर नहीं बनाती वो यात्राएँ नहीं हैं |
मैं नहीं जानता कब ये ख्याल आया
मैं नहीं जानता कब ये ख्याल आया
कहाँ से उठकर कैसे ये सवाल आया
दिखने में तो कमज़ोर दुबला पतला सा हैं
पर तर्क में पुराने सच में लिपटा सा हैं
कड़वापन का स्वाद लिए
कई भावनाओं का एहसास लिए
अस्तित्व पर प्रश्न घात लिए
कुतरा सा एक सवाल अपने साथ कई सवाल लिए
ये आपकी मान्यताएँ बदल सकता हैं
ये आपकी जीवन राह बदल सकता हैं
समाज का दर्पण बन चमक सकता