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Kuch Ankaha Reh Gaya
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Ebook84 pages49 minutes

Kuch Ankaha Reh Gaya

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About this ebook

This is the second book written by Ms. Pratibha Deewan. She tried to communicate a simple life story of a family living in a village who face their own struggles and make their last attempts to come out from it. The book reflects simplicity, a well explained detail a

Languageहिन्दी
Release dateJun 24, 2024
ISBN9789364526548
Kuch Ankaha Reh Gaya

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    Book preview

    Kuch Ankaha Reh Gaya - Pratibha Deewan

    आसमान बादलों से घिरा हुआ था। तभी बूंदा-बांदी आरम्भ हो गई और एक हल्की फुहार ने सुनयना को भिगो दिया। हल्की-हल्की बारिष और हवा के झोंको ने वातावरण को ठंडा कर दिया था।

    सुनयना घर के अंदर आ गई थी, घर के बाहर चारों तरफ अंधेरा फैला हुआ था। बाहर बादलों की गरज फिर सुनाई दी और वातावरण कांप कर रह गया।

    सुनयना को बचपन से ही गरजते बादलों और तेज हवाओं से डर लगता था। जब भी बादल गरजते और हवायें तेज चलती तो सुनयना के सामने बचपन की वो यादें, वो टीसे उभर आती थी जिनको वो भूलना चाहती थी। लेकिन वो दृष्य उसकी आँखों से ओझल नहीं हो पाते थे। ऐसे ही मौसम में उस दिन सुनयना की माँ इस दुनिया से सुनयना को अकेला छोड़कर चली गई थी।

    वो बरसात की ही एक भयानक रात थी। बरसात पूरे जोर-षोर से बरस रही थी। तेज हवायें चल रही थीं। बिजली की कड़क और बादलों की गरज से पूरे वातावरण ने भयानक रूप धारण कर लिया था। घर में माँ दर्द से तड़प रही थी और सुनयना, जो अभी पाँच साल की मासूम बच्ची थी, वो समझ ही नहीं पा रही थी कि वो माँ का दर्द कैसे दूर करे, वो बार-बार माँ को पानी पिला रही थी। घर में और कोई नहीं था। सुनयना के पापा दूसरे षहर गये हुये थे और सुनयना की माँ के दर्द षुरू हो गये थे। वो दूसरी बार फिर से माँ बनने वाली थी। उन्होंने घर का सारा काम निपटा दिया था। खाना भी बना दिया था। सुनयना को बड़े प्यार से खाना खिला भी दिया था। सुनयना से उसकी माँ बहुत प्यार करती थी। सुनयना जब भी कोई जिद् करती और किसी बात पर रोती थी तो माँ हमेषा कहती ‘सुनयना तेरी आँखें देख कितनी सुन्दर हैं। तू रोती हुई अच्छी नहीं लगती, हमेषा हँसती रहा कर, तेरी इन सुन्दर आँखों के कारण ही मैंने तेरा नाम सुनयना रखा है और हाँ जब तू हँसती है न तो इन आँखों की चमक और बढ़ जाती है, तू बहुत सुंदर लगती है, जब हँसती है।‘ तो सुनयना को उस समय भी माँ की ये बातें याद आ रही थी। इसलिये सुनयना रो नहीं रही थी, लेकिन समझ भी नहीं पा रही थी कि आखिर वो क्या करे। बरसात के कारण बिजली भी चली गई थी। बाहर इतनी तेज हवायें और बरसात थी कि वो मोहल्ले में किस के घर जाऐं, किसको बतायें कि उसकी माँ की तबीयत खराब है। लेकिन फिर भी सुनयना ने हिम्मत करके सामने रहने वाली मेहरा आंटी के घर जाने की हिम्मत की और जाकर तेज-तेज दरवाजा बजाकर आंटी को आवाज दी।

    ‘‘आंटी आप जल्दी से दरवाजा खोलिये! मेरी मम्मी की तबियत खराब है। आप चलके देखिये कोई डॉक्टरनी के पास ले चलिये, मेरी मम्मी से बोलते भी नहीं बन रहा।‘‘

    मेहरा आंटी ने दरवाजा खोला ‘‘अरे बेटा सुनयना! तू अंधेरी रात में इस बरसात में क्या कर रही है।‘‘

    ‘‘आंटी मेरी मम्मी की तबियत खराब है। आप मेरे घर चलिये।‘‘

    मेहरा आंटी सुनयना के साथ आई, जल्दी से उन्होंने सुनयना की माँ षीला को सीधा लिटाया, हाथ-पैर मलने लगी। षीला दर्द की वजह से बेहोष हो गई थी। वो फिर जल्दी से अपने पति को बुलाने गई, ताकि षीला को डॉक्टरनी के पास ले जाये। तब तक सुनयना माँ के सिरहाने बेठी हुई, माँ के हाथ मलती रही।

    ‘‘माँ-माँ बोलो न… माँ मुझे अकेले डर लग रहा है, माँ मुझे अपने पास लेटने दो न!‘‘

    लेकिन माँ कुछ भी नहीं बोल रही थी। तभी मेहरा आंटी ने आकर बताया ‘‘तेरे अंकल ऑटो लेने गये हैं। हम जल्दी ही तेरी मम्मी को अस्पताल लेकर चलेंगे।‘‘

    ‘‘वो ठीक तो हो जायेगी न आंटी… मेरी मम्मी मुझसे बात क्यों नहीं कर रही।‘‘ ‘‘अभी करेंगी फ्रिक मत कर।‘‘

    मेहरा अंकल को ऑटो बरसात की वजह से नहीं मिल रहा था। इधर षीला का दर्द बढ़ता ही जा रहा था। वो दर्द के कारण बार-बार बेहोष सी हो जाती थी। इस बार बहुत तेज दर्द हुआ और सुनयना के भाई को उसकी माँ ने जन्म दे दिया, लेकिन वो फिर उसके बाद हिली भी नहीं। मेहरा आंटी ने बच्चे को जल्दी-जल्दी साफ करके कपड़े बदलायें, षीला को खूब आवाजें दीं।

    ‘‘देखो षीला तुम्हारे घर तुम्हारा बेटा आ

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