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अनुभव बोलते हैं
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Ebook228 pages1 hour

अनुभव बोलते हैं

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'मेरा आकाश' की अद्भुत सफलता के पश्चात् पाठकों के आग्रह पर कुछेक अनुभव और साँझा करने की मंशा जागृत होते ही क़लम चलने लगी। अनुभव बोलने लगे। मैं लिखने लगी। देखते ही देखते साधारण किस्से विशेष बन गए। जीवन भावों का दरिया है। अनुभवों का समंदर है। मैंने महसूस किया कि छोटी-छोटी बातें, बड़े-बड़े सबक सिखा जाती हैं। जीवन में जाने-अनजाने घटित घटनाएँ भी संवेदनशील हृदय पर अपनी गहरी छाप छोड़ देती हैं। जिससे ज़िन्दगी के रास्ते बदल जाते हैं। आवश्यकता है, सकारात्मक रहने की। ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत पहेली है। जितना सकारात्मक देखोगे उतना उत्साह बढ़ता जायेगा वरना उलझने तो कहीं भी कम नहीं हैं। इसी तथ्य की पुष्टि करते हुए मैंने भावी जीवन में घटित घटनाओं के छोटे-छोटे प्रसंग अपनी पुस्तक 'अनुभव बोलते हैं' में साँझा करने की कोशिश की है। पुस्तक की भूमिका लिखने के लिए मैं उच्च कोटि के साहित्यकार आदरणीय 'सागर सियाल्कोटी' जी की हृदयतल से आभारी हूँ, जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय इस पुस्तक की नज़र किया और मुझे कृतार्थ। तदुपरांत समय-समय पर मेरी लेखनी को जाँचते रहने व मेरा मार्गदर्शन करने के लिए मैं प्रीत साहित्य सदन के संचालक 'डॉ. मनोजप्रीत' जी की भी आभारी हूँ। दोनों महानुभावों के साथ-साथ मैं अपने पतिदेव व दोनों बच्चों की भी शुक्रगुज़ार हूँ, जो समय-समय पर मुझे लिखने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। इन सभी के साथ-साथ मैं नतमस्तक हूँ अपने इष्ट देवों के देव 'महादेव' के समक्ष जिनकी अपार कृपा से आज मैं इस मुकाम पर हूँ। मेरा आख़िरी व महत्त्वपूर्ण आभार उन पाठकों के लिए है जो अपने निजी जीवन में से फुरसत के लम्हें इस पुस्तक को भेंट करेंगे। पाठकों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में.....

LanguageEnglish
Release dateJun 25, 2024
ISBN9798227154576
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    अनुभव बोलते हैं - प्रवीण कुमारी

    अनुभव बोलते हैं

    कलम की धार में छुपे अनुभव।

    अनुभव बोलते हैं

    कलम की धार में छुपे अनुभव।

    प्रवीण कुमारी

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    Book Details

    Title:अनुभव बोलते हैं

    Author:प्रवीण कुमारी

    ISBN:978-81-967844-5-4

    Prize:₹ 199.00

    Copyright © प्रवीण कुमारी (2024)

    All Rights Reserved

    समीक्षा के मामलों को छोड़कर, लेखक की लिखित अनुमति के बिना इस पुस्तक के किसी भी हिस्से का किसी भी तरह से उपयोग, पुनरुत्पादन नहीं किया जाएगा।

    इस पुस्तक की सामग्री को प्रकाशक या संपादक की राय या अभिव्यक्ति के रूप में नहीं माना जाएगा या समझा नहीं जाएगा। न तो प्रकाशक और न ही संपादक इस पुस्तक की सामग्री का समर्थन या अनुमोदन करते हैं या यहां प्रकाशित सामग्री की किसी भी प्रकार की विश्वसनीयता, सटीकता या पूर्णता की गारंटी नहीं देते हैं और किसी भी प्रकार की, व्यक्त या निहित वारंटी नहीं देते हैं।

    प्रकाशक और संपादक किसी भी त्रुटि के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे, चाहे ऐसी त्रुटियां या चूक लापरवाही, दुर्घटना या अन्य कारण या नुकसान के दावों के परिणामस्वरूप हों, या पुस्तक में निहित जानकारी की विश्वसनीयता सटीकता या पर्याप्तता के बारे में हों।

    समर्पण

    अनुभव के वह पल जो मेरी क़लम का हिस्सा बनते गए।

    स्मृतियों की स्पेशलिस्ट

    प्रवीण कुमारी साहिबा साहित्य जगत में किसी ताआरुफ़ की मोहताज नहीं हैं। उनका अपना एक मुकाम है। उनके तीन संग्रह 'मेरी सोच' ,  'सोने से दिन चांदी सी रातें' और 'मेरा आकाश' मंज़रे आम पर आ चूके हैं, जिनमें से दो काव्यसंग्रह और तीसरा संस्मरण के रुप में है। 'मेरा आकाश' में प्रवीण कुमारी साहिबा ने जीवन में छोटी-छोटी घटनाओं को अपने दिल के कैनवस पर उतार कर पाठकों के समक्ष एक किताब के रुप में पेश किया है। उसी कड़ी में आज उनकी चौथी पुस्तक 'अनुभव बोलते हैं ' ये संग्रह भी स्मृतियों पर आधारित है। संस्मरण लिखना कोई आसान काम नहीं, छोटी-छोटी यादों में जीना, उनके दिल को सुकून देता है। यहाँ मैं स्मृतियों के हवाले से डाक्टर उमा त्रिलोक के साहित्य की चंद पंक्तियों का ज़िक्र करना चाहूँगा :--

    "मैंने स्मृतियाँ

    उन कुर्बानियों के सायों में

    लपेट कर रखी हैं,

    जिन्हें मैं मिलती रहती हूँ

    और जीती रहती हूँ।"

    जब मैं इस पुस्तक  'अनुभव बोलते हैं '  का अध्ययन कर रहा था तो मुझे अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की प्रिय लेखिका टोनी मोरीसन का वो जुम्मला याद आया, जिसमें वो लिखती हैं कि लेखन दो तरह का होता है। एक जीविका के लिए लिखना और दूसरा जीवन के लिए लिखना परन्तु दोनों में अंतर है। जब हम जीविका के लिए लिखते हैं तो हमें समझौते करने पड़ते हैं, लेकिन जब हम जीवन के लिए लिखते हैं तो हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, तो मैं चाहता हूँ प्रवीण साहिबा का ये चौथा संग्रह जो संस्मरण पर आधारित है, 'अनुभव बोलते हैं'  ये उनकी कड़ी मेहनत का नतीजा है। प्रवीण साहिबा ने इस संस्मरण संग्रह में बड़ी सरलता, स्पष्टता और सच्चाई को प्रस्तुत किया है। जब वो पहले संस्मरण, 'अन्त सौ रुपए खो गए' में कहती हैं समय चलाय मान है, वक़्त किसी का सखा नहीं होता, रूपये पैसे उतने ही उत्तम हैं जितने आपने प्रयोग कर लिए, आख़िरकार गुलक (शरीर) मिट्टी का है, मिट्टी हो जाएगा। इसी प्रकार 'जिसका कोई नहीं होता,उसका ख़ुदा होता है' , में लिखती हैं पतिदेव कहने लगे, तुम घर आने का लालच मत करना, बीनू की जगह ड्यूटी दे देना, यही सच्ची इबादत है!" यही वो संस्कार हैं जो परिवार से मिलते हैं और जो दान पुन से कहीं अधिक उत्तम हैं।

    प्रवीण साहिबा में कुछ सीखने की तलब बचपन से ही है जब वो एक मानचित्र का ज़िक्र करती हैं जो उनके अध्यापकों ने क्लास रुम में लगा दिया और कहा, देखिए आपका कुछ रह तो नहीं गया? आज भी वो घटना मेरे मन को एक सुखद एहसास करवाती है। इसी प्रकार की घटना 'थर्माकोल का छाता', 'कुछ हमारे बारे में भी कहिए न' एक संवेदनशील घटना को दर्शाते प्रसंग हैं। 'सलीका' घटना चुनाव ड्यूटी पर आधारित है, दो-तीन रिहर्सल का ज़िक्र व फ़िक्र है। मान्यवर ने बहुत सुलझे ढंग से काग़ज़ी जानकारी दी और मशीन चलाने का अवसर भी, वो शख़्स मुझे याद आता है। 'दूर की निगाह कमज़ोर हो नहीं सकती' संस्मरण की अंतिम पंक्तियाँ वाक्य ही बहुत सुंदर हैं, जी-जी, डाक्टर साहिब दीदी की दूर की निगाह कमज़ोर हो भी नहीं सकती, इन्होंने आज तक जिसको देखा है, नज़दीक से ही देखा है, भला दूर की निगाह कमज़ोर कैसे होगी..? परमात्मा के प्रति आस्था एक अच्छा संदर्भ बन पड़ा है, 'आपकी तो कितनी चिट्ठियाँ डल गईं', 'तुम्हारी अपनी बस कब जा रही है' और 'सिंहासन'।  'यह लड़की तो हमारा सिंहासन हिला कर रहेगी' वाक्य हृदय को स्पर्श करता है।

    'पेशा पीछा नहीं छोड़ता', प्रवीण साहिबा के पतिदेव पेशे से एक वकील हैं, उनका डायलोग देखिए, सर्वोच्चय न्यायलय से आज्ञा लेनी ज़रूरी है जहां भी हम कार्यरत होते हैं, वहाँ की कुछ आदतें हमारे दिल-ओ-दिमाग़ पर घर कर जाती हैं, तो यही है 'पेशा पीछा नहीं छोड़ता'। 'श्री मती शकुंतला डाबर पुरस्कार' घटना में लेखिका अपने मन की बात कहती है, प्रस्तुत पुरस्कार मेरे नाम हो, ऐसी आकांक्षा है। आदरणीय महोदय को संदेश भेज दिया, तुरंत जवाब आया, आप लिखने का सफ़र जारी रखिएगा, बाकी सब हो जायेगा। इस संग्रह में अनेक घटनाओं का ज़िक्र है, उन्हें पढ़ कर मुझे साहिर लुधियानवी जी का शेयर याद आ रहा है :---

    " दुनिया ने तज़ुर्बो-ओ-हवादिस की शक्ल में,

    जो कुछ मुझे दिया है, वोही लौटा रहा हूँ। "

    हर शख़्स की ज़िन्दगी में कुछ वाक्यात ऐसे होते हैं, जो उसे हमेशा याद रहते हैं। वो घटनाएँ उल्लासपूर्ण भी हो सकती हैं और उदासमयी भी हो सकती हैं। प्रवीण जी ने जिन घटनाओं को जिया है, उनको 'अनुभव बोलते हैं ' में बाख़ूबी पाठकों के लिए रकम किया है। एक अध्यापक होने के नाते उनका घटनाक्रम विशाल व विस्तृत है।

    यदि मैं हर संस्मरण के बारे में कहने लगूंगा तो बहुत वक़्त लग जायेगा। मुझे इससे आगे भी कुछ कहना है। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे लेखिका स्मृतियों की एक 'स्पेशलिस्ट' बन गई है। घटनाओं को कर्मवार लिखना व गहरे में उतर कर लिखना, यह अपने आप में बहुत बड़ा आर्ट है। मैं दिली मुबारक़बाद देता हूँ। इतने रंग कहाँ होते हैं, एक शख़्स की शख़्ससियत में....? मैं इतना ही कह सकता हूँ कि प्रवीण साहिबा के पास एक लम्बा अनुभव है और लफ़्ज़ों को एक माला में पिरोने का एक जादुई करिश्मा है। आपका परिचय, आपकी तस्वीर और किताब का टाइटल बहुत ही दिलकश है। भाषा-शैली बहुत ही सरल और स्पष्ट है। कहने में कोई बनाबटीपन नहीं है। यहाँ तक आलोचनात्मक टिप्पणी का योग या संयोग है, मैं इतना ही कह सकता हूँ, लोगों ने तो मिर्ज़ा ग़ालिब को नहीं बक्शा। जहां तक प्रवीण कुमारी साहिबा की बात है, उनके चौथे संस्मरण संग्रह 'अनुभव बोलते हैं ' , इसमें आलोचना का कोई चिन्ह नज़र नहीं आता क्योंकि यह स्मृतियों पर आधारित एक संग्रह है, जो लेखिका के अपने अनुभव हैं।

    आलोचना फिक्शन पर होती है, न कि परसनल इंसिडेंट्स पर।

    बर्नार्ड शाह ने अपने लेख में लिखा है कि जिस लेखन में तीन चीज़ें होंगी वो लेखन पूर्ण समझा जाएगा,

    Simplicity (सादगी) , sincerity (ईमानदारी) and sensuousnes (भावमयता अथवा भावनात्मकता)प्रवीण साहिबा जी के इस संग्रह में ये तीनों तत्व मौजूद हैं। मैं प्रवीण साहिबा को बहुत-बहुत मुबारक़बाद और शुभकामनाएँ देता हूँ। परमात्मा आपको अच्छी सेहत दें।

    आपका ख़ैर.अंदेश.

    9876865957

    नोट :- कोई शब्द ग़लत लिखा गया हो तो ख़ाकसार को मुआफ़ कर देना।

    सागर सियालकोटी..!

    आमुख..!

    'मेरा आकाश' की अद्भुत सफलता के पश्चात् पाठकों के आग्रह पर कुछेक अनुभव और साँझा करने की मंशा जागृत होते ही क़लम चलने लगी। अनुभव बोलने लगे। मैं लिखने लगी। देखते ही देखते साधारण किस्से विशेष बन गए। जीवन भावों का दरिया है। अनुभवों का समंदर है। मैंने महसूस किया कि छोटी-छोटी बातें, बड़े-बड़े सबक सिखा जाती हैं। जीवन में जाने-अनजाने घटित घटनाएँ भी संवेदनशील हृदय पर अपनी गहरी छाप छोड़ देती हैं। जिससे ज़िन्दगी के रास्ते बदल जाते हैं। आवश्यकता है, सकारात्मक रहने की। ज़िन्दगी एक ख़ूबसूरत पहेली है। जितना सकारात्मक देखोगे उतना उत्साह बढ़ता जायेगा वरना उलझने तो कहीं भी कम नहीं हैं। इसी तथ्य की पुष्टि करते हुए मैंने भावी जीवन में घटित घटनाओं के छोटे-छोटे प्रसंग अपनी पुस्तक  'अनुभव बोलते हैं' में साँझा करने की कोशिश की है।

    पुस्तक की भूमिका लिखने के लिए मैं उच्च कोटि के साहित्यकार आदरणीय 'सागर सियालकोटी ' जी की हृदयतल से आभारी हूँ, जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय इस पुस्तक की नज़र किया और मुझे कृतार्थ। तदुपरांत समय-समय पर मेरी लेखनी को जाँचते रहने व मेरा मार्गदर्शन करने के लिए मैं प्रीत साहित्य सदन के संचालक डॉ. मनोजप्रीत जी की भी आभारी हूँ। दोनों महानुभावों

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