वो भूल चुकी मनोरम कहानियाँ
By टी सिंह
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About this ebook
आभूषण चोरी
अफसरी
तुम्हारा स्वागत है
मोची से दोस्ती
रिश्ते तोड़ने वाले
अँतिम पाठ
साँसों की ज़रुरत
बहु ही बुरी क्यों
मैं गर्भ से नली से होकर बाहर आयी थी
फौजी की बेटी
हाय रे प्रेम
रहस्यमयी मुस्काने
आदेश देने वाले
आज के श्रवण कुमार
खेल खेल में
दूर मत जाइये, पास आइये
हर बात पूछिए
योग्यता का मूल्याँकन
एक नयी चीज
चाँद की रोटी
टाँग उठाकर
पढ़ाई दीवार पर लटक रही है
इंतज़ाम करना पड़ेगा
पाँच सितारा चाय
बुरी चीज़
गज़ब का परिवर्तन
आकर्षक, मादक, और कामुक
मुझे कौन पूछता है
आखरी यात्रा
आखिर ढह गयी
सम्मान की बात
"वो भूल चुकी मनोरम कहानियाँ" एक ऐसी पुस्तक है जो आपको समय के उस दौर में ले जाएगी, जहाँ संबंधों की गहराई, परिवार का महत्व और प्रेम की सच्चाई का एक अलग ही महत्व था। लेखक टी. सिंह ने अपने अद्वितीय लेखन शैली के माध्यम से इन कहानियों को इस तरह पिरोया है कि हर पाठक इनसे जुड़ाव महसूस करेगा।
पुस्तक की कहानियाँ समाज के विभिन्न पहलुओं पर आधारित हैं - परिवार, रिश्ते, प्रेम, संबंधों, तलाक, दोस्ती, और अन्य अनेक विषय। हर कहानी अपने आप में एक मोती है, जो पाठकों को न केवल मनोरंजन प्रदान करती है, बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर भी करती है।
आज की नई पीढ़ी भले ही इन कहानियों को पढ़ने में रुचि न दिखाए, लेकिन यह पुस्तक उन अनमोल मूल्यों और विचारों को पुनर्जीवित करती है जिन्हें हम भूलते जा रहे हैं। यह पुस्तक एक सेतु का काम करती है, जो अतीत की सच्चाईयों को वर्तमान के साथ जोड़ती है।
आइए, "वो भूल चुकी मनोरम कहानियाँ" के साथ एक अद्भुत यात्रा पर निकलें और उन भावनाओं, रिश्तों और संवेदनाओं को पुनः अनुभव करें, जिनका जादू कभी फीका नहीं पड़ता। इस पुस्तक में छुपी कहानियाँ आपके दिल को छू जाएंगी और आपकी आत्मा को एक नया दृष्टिकोण प्रदान करेंगी।
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वो भूल चुकी मनोरम कहानियाँ - टी सिंह
आभूषण चोरी
वो सर्दी की एक बहुत ही ठंडी और अंधेरी सुनसान रात थी। वातावरण बहुत ही शांत लेकिन रहस्यमयी लग रहा था।
वो उस अँधेरी रात में रात के सन्नाटे को भंग करती हुई तेज़ तेज़ कदमो से आगे बढ़ रही थी। वो धीरे धीरे और तेज़ चलने की कोशिश कर रही थी। सिर्फ उसके जूतों की एड़ियों की आवाज़ आ रही थी।
तभी अचानक वो कदम तेज़ तेज़ भागने लगे, लेकिन पीछा कर रहे कदम भी उसका पीछा करते हुए तेज़ तेज़ भागने लगे। आगे जा रहे कदम बचकर भागना चाहते थे लेकिन पीछे आ रहे कदम तेज़ निकले और कुछ ही पलों में उसने उसको दबोच लिया।
तभी पीछा कर रहे कदमो वाले की आवाज़ आयी,अरे मेरी जान, कहाँ भागी चली जा रही हो? अरे मेरी बुलबुल अब तो तुम मेरी बाहों में हो! अब कहाँ जाओगी?
आगे जा रहे कदमो वाली की दर्द भरी आवाज गूँज उठी,जाने दो मुझे! छोड़ो मेरे हाथ!
वो बुरी तरह से घबरा गयी थी और खुद को छुड़वाने का हर सम्भव प्रयास करने लगी।
उस अजनबी की गिरफ्त बहुत शक्तिशाली थी और उसने उस बेचारी को और भी कसकर पकड़ लिया। उस बेचारी की आँखों से आंसू गिरने लगे और वो उसके सामंने गिड़गिड़ाने लगी। लेकिन तभी उस अजनबी का एक हाथ उसकी पतली लचीली कमर पर सरकने लगा। वो उसकी कमर को जगह जगह पर बुरी तरह से निचोड़ने लगा।
वो फिर से गिड़गिड़ाई, प्लीज मुझे छोड़ दो। भगवान् के लिए मुझे जाने दो! मेरे पास कुछ भी नहीं है। हम लड़कियों की इज़्ज़त ही तो हमारा आभूषण होती है। प्लीज मुझे छोड़ दो मुझे देरी हो रही है!
तभी उस अजनबी ने मस्त आवाज में कहा,आज कैसा संजोग मिलाया है भगवान ने! तुम्हारी आबरू तुम्हारा आभूषण है और मैं आभूषणों को चुरा लेता हूँ। सोने चांदी के आभूषण तो मैंने बहुत बार चुराए और लूटे हैं पर आज इस प्रकार का आभूषण पहली बार चुराऊँगा!
वो उसको बाहों में कसकर सड़क के किनारे झाड़ियों में ले गया। कुछ ही पलों में एक जोर की चीख गूँजी। उस सन्नाटे को कुछ पलों के लिए तो उस चीख ने खंडित किया लेकिन फिर से सन्नाटा छा गया। उस अन्धकार रात में वो चीख किसी भी इंसान के कानो तक नहीं पहुँची।
रात की भयानकता और भी अधिक हो गयी और कुछ ही पलों में चीखों की आवाज सिसकियों में बदल गयी और फिर अगले ही पल वो आवाज मर गयी। आभूषण चोरी हो गया था। हालाँकि वो चोर की बाहों में थी लेकिन वो नहीं जानती थी के उसके आभूषण को चुराने वाला कौन था।
कपड़ों को समेटते हुए जब वो अपने घर की तरफ थके थके कदमो से जा रही थी तो उसके दिमाग में सरकार का दिया हुआ नारा गूँज रहा था,बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ!
वो नहीं जानती थी के कुछ ही पलों के बाद वो दरिंदा थाने में बैठा इंस्पेक्टर के साथ शराब पी रहा था और अपनी बहादुरी की कहानी मजे ले ले कर सुना रहा था।
Chapter 2
अफसरी
रमन बाबू की तबियत कुछ ठीक नहीं चल रही थी। उनकी बीमारी की खबर मुझे एक मित्र के माध्यम से मिली थी।
रमन बाबू उन दिनों में डायरेक्टर के पद पर काम कर रहे थे। ये बात २००७ की है। ये मेरा सौभाग्य ही था के मुझे भी कुछ वर्षों तक उनके साथ काम करने का मौका मिला था। उसके बाद मेरा किसी और विभाग में ट्रांसफर हो गया था।
मैं अक्सर ही छुट्टी के दिन या तीज त्योहारों पर उनके घर आया जाया करता था। दो वर्षो तक कोरोना के कारण मुझे उनके यहां जाने का मौका नहीं मिला। कुछ दिन पहले ही कोरोना का प्रभाव कुछ कम होने लगा तो मैंने भी इधर उधर जाना और लोगों से मिलना शुरू कर दिया। सरकारी पाबंदियां हटा दी गयी थी और सड़को पर लोगों का आना जाना शुरू हो गया था।
मुझे जैसे ही रमन बाबू की बीमारी की खबर मिली मैं उनका हलचल जानने को उत्सुक हो गया। अगले ही दिन मैं उनसे मिलने के लिए उनके घर की तरफ चल दिया। रमन बाबू का घर मेरे फ्लैट से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर था।
रमन बाबू का एक बेटा विवाहित था और वो अपने परिवार के साथ दिल्ली के पास गुड़गांव में रहता था। उन दिनों में रमन बाबू के साथ उनकी पत्नी और उनके तीसरे भाई का बेटा रहते थे। रमन बाबू के तीसरे भाई का बेटा आई ए एस की तैयारी कर रहा था।
उस दिन उनके घर जाने से पहले ही मैंने रमन बाबू को फ़ोन करके अपने आने की खबर दे दी थी। जैसे ही मैं उनके घर पहुंचा तो मैंने देखा के वो घर के दरवाजे पर ही खड़े मेरा इंतज़ार कर रहे थे। उनको प्रणाम करने के बाद मैं उनके साथ अंदर चला गया। उन्होंने मुझे आदर से एक सोफे पर बैठाया।
उनकी तबियत पूछने पर उन्होंने कहा,कोई गंभीर बात नहीं थी बस जरा सा बुखार था। और फिर इस उम्र में बदन दर्द होना तो स्वाभाविक ही है! लेकिन मेरी तो आवाज़ ही चली गयी है!
उनकी अंतिम पंक्ति सुनते ही मैं हैरान हो गया क्योंकि वो बात मुझे समझ नहीं आयी। मैंने देखा थे वो ठीक ठाक तो बोल रहे थे और उनकी आवाज़ भी ठीक थी पर वो कह रहे थे के