मैकबेथ से मुलाकात: एक आत्मा की दास्तान
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आपने शायद शेक्सपियर द्वारा लिखित महान नाटक 'मैकबेथ' या तो पढ़ा होगा या फिर देखा होगा. वैसे तो इस नाटक पर बहुत सी फिल्में और टेलीविज़न नाटक भी बन चुके हैं, लेकिन आज हम आपको इस पुस्तक में मैकबेथ के जीवन की कहानी को एक बिलकुल ही नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रहे हैं.
हमारी कहानी का सूत्रधार कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य पढ़ाने वाला एक प्रोफेसर है. एक दिन उसकी मुलाक़ात मैकबेथ की आत्मा से होती है और वो उत्सुकतावश उसको अपने साथ अपने घर ले जाता है.
प्रोफेसर के घर में शुरू होता है मैकबेथ और प्रोफेसर के बीच बहुत से प्रश्नो का एक सिलसिला.
ये तो आप शायद जानते ही होंगे के 'मैकबेथ' नाम के नाटक को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नाटकों में से एक माना जाता है, लेकिन इस नाटक के कई और पक्ष भी हैं जो शायद आप ना जानते हों. हमारी इस किताब में हम उन सभी पक्षों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं जो शायद शेक्सपियर की किताब में नहीं थे या उजागर नहीं हो सके थे.
तो चलिए हमारे साथ उस यात्रा पर!
शुभकामना
प्रोफेसर राजकुमार शर्मा
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मैकबेथ से मुलाकात - प्रोफेसर राजकुमार शर्मा
पहली मुलाकात
वो एक बहुत ही सुन्दर सुनहरी शाम थी। मैं कॉलेज में छात्रों को पढ़ाकर विद्यालय के गेट से बाहर आ रहा था। उस दिन मैं बहुत खुश था क्योंकि मेरे पढ़ाने के तरीके से मेरे छात्र बहुत ही खुश और संतुष्ट थे। उस दिन मैंने उनको पुराने अंग्रेजी लेखकों की कुछ कहानियाँ भी सुनाई थी।
गेट के बाहर ही मैंने सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे एक दाढ़ी वाले बूढ़े से आदमी को देखा। मुझे वो व्यक्ति कुछ अजीब सा लगा क्योंकि उसकी पोशाक हम लोगों की पोशाक की तरह नहीं थी। उसने बहुत पहले के समय के कपडे पहने हुए थे और उसके शरीर पर एक कवच भी था। मुझे तो वो आदमी किसी नाटक कंपनी में किसी योद्धा की भूमिका निभाने वाला एक कलाकार ही लगा।
मैंने पास जाकर देखा तो पाया के उसकी आँखों में एक अजीब सा रहस्यमयी आकर्षण था। मैं धीरे धीरे उसके पास चला गया पर जब मैंने उसकी आँखों में देखा तो मुझे आभास हुआ के वो कोई आम आदमी नहीं था।
उसने मुझे इस तरह से घूरते हुए देखकर अचानक ही पूछा,तुम मुझे इस तरह से क्यों देख रहे हो?
मैंने जवाब में कहा,माफ़ कीजियेगा? आप कौन हैं? मैंने आपको पहचाना नहीं! मैंने आपको पहले तो कभी इस इलाके में देखा नहीं!
उसने मेरे प्रश्न का उत्तर ना देकर, मुझसे ही पूछ लिया,तुम्हारा नाम क्या है?
मैंने तुरंत ही कहा,मैं प्रोफेसर शर्मा हूँ!
प्रोफेसर शर्मा, मैं मैकबेथ हूँ!
इतना सुनते ही पहले तो मुझे हंसी ही आ गयी क्योंकि मुझे यकीन हो गया था के वो कोई कलाकार ही था जो किसी नाटक में मैकबेथ की भूमिका निभाकर सीधा ही मैकबेथ के कपड़ों में ही मेरे सामने आ गया था, लेकिन जब मैंने उसकी आँखों में गहराई देखी तो मुझे कुछ भय सा हो गया क्योंकि उसकी आंखें आम इंसानो की आँखों की तरह नहीं थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
वो मुझे घूरकर देख रहा था। उसकी आँखों की रोशनी में कुछ ऐसा था जो मैंने कभी किसी भी इंसान की आँखों में नहीं देखा था।
मैंने अपनी नजरें उसपर से हटा लीं लेकिन मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। मैं सोचने लगा के क्या यह वही मैकबेथ था, जिसे हम शेक्सपियर के नाटक में पढ़ाते हैं? उसकी आत्मा यहाँ कैसे हो सकती है?
"मुझे एक बात समझ नहीं आती है के तुम प्रोफेसर लोग मेरी जिंदगी की कहानी स्कूल और कॉलेज में क्यों पढ़ाते हो? तुम लोग मुझे बुरा व्यक्ति क्यों दिखाते हो? मैंने जो कुछ भी